Connect with us

Hi, what are you looking for?

टीवी

वरिष्ठ पत्रकार विनोद वर्मा छत्तीसगढ़ कांग्रेस का सोशल मीडिया देखते हैं, उनकी गिरफ्तारी सियासी!

Nadim S. Akhter : वरिष्ठ पत्रकार विनोद वर्मा की हिरासत पे मेरा स्टैंड क्लियर है। कहीं कोई confusion नहीं। अगर वर्मा साहब छत्तीसगढ़ कांग्रेस से किसी भी रूप में जुड़ गए हैं और उनका सोशल मीडिया वगैरह देखते हैं, तो उनकी गिरफ्तारी सियासी है। राजनीति के अपने रंग होते हैं विरोधियों को चुप कराने को। और अगर वो अभी भी विशुद्ध पत्रकार हैं, किसी राजनीतिक दल के हित के लिए वो काम नहीं करते, तो वर्मा जी की गिरफ्तारी ना सिर्फ निंदनीय है बल्कि सभी पत्रकारों को मिलकर इसका विरोध करना चाहिए।

<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({ google_ad_client: "ca-pub-7095147807319647", enable_page_level_ads: true }); </script><p>Nadim S. Akhter : वरिष्ठ पत्रकार विनोद वर्मा की हिरासत पे मेरा स्टैंड क्लियर है। कहीं कोई confusion नहीं। अगर वर्मा साहब छत्तीसगढ़ कांग्रेस से किसी भी रूप में जुड़ गए हैं और उनका सोशल मीडिया वगैरह देखते हैं, तो उनकी गिरफ्तारी सियासी है। राजनीति के अपने रंग होते हैं विरोधियों को चुप कराने को। और अगर वो अभी भी विशुद्ध पत्रकार हैं, किसी राजनीतिक दल के हित के लिए वो काम नहीं करते, तो वर्मा जी की गिरफ्तारी ना सिर्फ निंदनीय है बल्कि सभी पत्रकारों को मिलकर इसका विरोध करना चाहिए।</p>

Nadim S. Akhter : वरिष्ठ पत्रकार विनोद वर्मा की हिरासत पे मेरा स्टैंड क्लियर है। कहीं कोई confusion नहीं। अगर वर्मा साहब छत्तीसगढ़ कांग्रेस से किसी भी रूप में जुड़ गए हैं और उनका सोशल मीडिया वगैरह देखते हैं, तो उनकी गिरफ्तारी सियासी है। राजनीति के अपने रंग होते हैं विरोधियों को चुप कराने को। और अगर वो अभी भी विशुद्ध पत्रकार हैं, किसी राजनीतिक दल के हित के लिए वो काम नहीं करते, तो वर्मा जी की गिरफ्तारी ना सिर्फ निंदनीय है बल्कि सभी पत्रकारों को मिलकर इसका विरोध करना चाहिए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

वरिष्ठ पत्रकार विनोद वर्मा को हिरासत में लिए जाने की मैं भर्त्सना करता हूँ। उन्हें छत्तीसगढ़ पुलिस ने यूपी पुलिस की मदद से तड़के तीन बजे घर से हिरासत में लिया। बहाना बना कि छत्तीसगढ़ के किसी मंत्री की कोई सीडी उनके पास है। मुझे इंदिरा गांधी की इमरजेंसी याद आ रही है। लेकिन इंदिरा तो बापू की इंदु थीं, सो जनता ने फिर सिर माथे बिठा लिया।
आप का क्या होगा?? बीजेपी जिस इमरजेंसी के ऑक्सीजन पे सवार होकर देश में लोकतंत्र का डंका पीटती रही और सत्ता में आई, आज उसका रवैय्या भी इमरजेंसी वाला ही है। के पत्रकार को डरा दो। पत्रकार किसी भी खेमे का हो, राज्य सत्ता को उसे डराने धमकाने का कोई हक नहीं। बीजेपी को ये बहुत महंगा पड़ेगा। पता नहीं, पार्टी के नई पीढ़ी वाले नेता इमरजेंसी को कैसे भूल गए??!! Power corrupts and absolute power corrupts absolutely.

Advertisement. Scroll to continue reading.

Rakesh Kayasth : पत्रकार के तौर पर मैं विनोद वर्मा को लंबे समय से जानता हूं। मेरे परिचय उस वक्त से है, जब वर्माजी दिल्ली में मध्य प्रदेश से निकलने वाले अखबार देशबंधु अखबार के ब्यूरो चीफ हुआ करते थे। मैने उन्हे हमेशा एक संजीदा, संवेदनशील और गहरी साहित्यिक अभिरूचि वाले व्यक्ति के तौर पर जाना है। आज सुबह-सुबह उन्हे हिरासत में लिये जाने की ख़बर आई तो मैं हतप्रभ रह गया।

विनोद वर्मा हिंदी के कई बड़े संस्थानों में संपादक रह चुके हैं। बीबीसी लंदन से भी वे लंबे समय तक जुड़े रहे हैं। सामाजिक, सांस्कृतिक सवालों के साथ मानवाधिकार संबंधित मुद्धों में भी उनकी गहरी रुचि रही है। ख़बर है कि छत्तीसगढ़ पुलिस की टीम विशेष रूप से गाजियाबाद आई और यूपी पुलिस की मदद से उन्हे हिरासत में लिया गया। उनके पास छत्तीसगढ़ के किसी नेता की आपत्तिजनक सीडी होने की बात कही जा रही है। आपत्तिजनक शब्द एक बहुत ही रिलेटिव टर्म है। अंग्रेजी के मशहूर लेखक जॉर्ज ऑरवेल ने कहा है- ख़बर वह नहीं होती है, जो हर कोई बताना चाहता है। ख़बर वह होती है, जिसे छिपाने की कोशिश की जाती है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सीडी में क्या था, नेता कौन है, छत्तीसगढ़ पुलिस का आरोप क्या है। इन बातों की मुझे कोई जानकारी नहीं है। इसलिए मैं इन बातों पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा। लेकिन पहली नज़र में यह एक सम्मानित पत्रकार के उत्पीड़न का मामला लगता है, इसलिए मैं खुलकर अपना विरोध दर्ज करना चाहता हूं। छत्तीसगढ़ सरकार को इस मामले पारदर्शिता दिखाते हुए बताना चाहिए उसका पक्ष क्या है और सुबह चार बजे असंदिग्ध ट्रैक रिकॉर्ड वाले एक पत्रकार के घर छापा मारकर उसे हिरासत में क्यों लिया गया। यह ठीक है कि पत्रकार बिरादरी अब पूरी तरह बंट चुकी है। लेकिन सरकारी तंत्र के हावी होने का समर्थन किसी भी आधार पर नहीं किया जाना चाहिए। सरकारे आती और जाती रहेंगी लेकिन इंस्टीट्यूशन के तौर पर मीडिया हमेशा रहेगा। मैं उम्मीद करता हूं कि पत्रकार समुदाय इस घटना पर एकजुटता दिखाएगा।

पत्रकार नदीम अख्तर और राकेश कायस्थ की एफबी वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement