Mohd Zahid : चकला घर :- मीडिया और वैश्या…. भारत की मीडिया को देखता हूँ तो पटाया और लाॅस वेगास की वह वैश्याएँ इज़्ज़तदार लगने लगती हैं जो अपनी छाती पर टैग लगाए किसी शोरूम में खड़ी रहती हैं। ग्राहक उनकी कीमत चुकाता है और लेकर चला जाता है।
भारत की मीडिया का ऐसा किरदार भी नहीं , वह चोरी छिपे पत्रकारिता कि आड़ में अपने शरीर और आत्मा का सौदा करती है और पवित्रता का ढोंग भी करती है।
हमेशा देखा गया है कि भगवा एजेन्डे पर चलती उसकी खबरें और पैनल डिस्कशन सदैव झूठे सिद्ध हुए हैं। इसके बावजूद मीडिया ने कभी इस झूठ को लेकर खेद व्यक्त नहीं किया।
वह समय और था जब छपे झूठ पकड़े जाने पर मीडिया क्षमा या भूल सुधार छापा करता था। अब का मीडिया “सैंया भये कोतवाल तो डर काहे का” की तर्ज पर थेथरई पर उतारू है।
चंद दिनों पहले ही देश के सैकड़ों चैनलों और प्रिंट मीडिया पर यह खबर और पैनल डिस्कशन ब्रेकिंग न्यूज़ के साथ चलाई गयी कि भारत का मोस्ट वांटेड “दाऊद इब्राहिम” मर गया। हिन्दी अंग्रेजी और विभिन्न भाषाओं के 1000 चैनलों और समाचार पत्रों ने इस खबर को प्रमुखता से छापा और दिखाया।
आज पाकिस्तान स्वीकार कर रहा है कि “दाऊद इब्राहिम उसके यहाँ है और जीवित है”।
झूठा कौन हुआ ? भारत की मीडिया।
पर इस झूठ को 24×7 चलाने वाली मीडिया ने झूठी खबर और झूठी डिबेट चलाने के लिए माफी मांगी ?
दरअसल मीडिया यह सब झूठ एक एजेन्डे के तहत फैलाती है। और झूठ खुल जाने पर चुप्पी साध लेती है।
तबलीगी जमात को लेकर मीडिया का 60 दिनों तक चलाया गया झूठ भी इसी का उदाहरण है। मीडिया ने तबलीगी जमात को तब अलकायदा जैसा बना दिया और “मौलाना साद” को “ओसामा बिन लादेन” जिन्होंने 9/11 की तरह देश पर कोरोना का आक्रमण कर दिया हो।
बांबे हाईकोर्ट के तमाचे के बाद मीडिया ने अब चुप्पी साध ली है , तब प्रतिदिन मुख्य हेडलाइन के साथ जमातियों को अलकायदा के आतंकी जैसा बताता “अमर उजाला” , बांबे हाईकोर्ट के फैसले को अपने 12 वें पेज के एक कोने में छापता है तो “हिन्दुस्तान” इस खबर को ही गायब कर देता है। इलेक्ट्रानिक मीडिया इस खबर पर ना तो पैनल डिस्कशन कराता है ना बिग ब्रेकिंग चलाता है।
इसीलिए कहता हूँ कि पटाया और लाॅस वेगास की वह वैश्याएँ कहीं अधिक चरित्रवान हैं जिनका खुल्लमखुल्ला एक रेटकार्ड और मीनू होता है।
मुझे याद है मीडिया का बनाया वह दौर जब बेकसूर “जमाती” छिप छिप कर रह रहे थे। तमाम मस्जिद मदरसों और शहर के मरकज़ में पुलिस के छापे पड़ रहे थे और मीडिया इसे हाईलाईट कर रही थी।
मेरे घर के ही सामने पेंशनभोगी एक 80 साल के वृद्ध उसी दौर में आकर ठहरे थे जिनका संबन्ध मरकज़ से था , मैं उनके चेहरे पर खौफ साफ साफ देख रहा था। वह 3 महीने घर से बाहर नहीं निकले , कहते थे इस उम्र में पुलिस और थाना देखना नहीं चाहता हूँ।
तभी अगले दिन इलाहाबाद विश्वविद्यालय के सबसे सम्मानित प्रोफेसर मुहम्मद शाहिद की गिरफ्तारी और फिर उनके इलाहाबाद विश्वविद्यालय से निलंबन की खबर छपती है। वह बुज़ुर्ग डरे सहमें मुझसे पेपर माँगते हैं कि वह इस खबर को पढ़ सकें।
प्रोफेसर मुहम्मद शाहिद कौन ?
इलाहाबाद विश्वविद्यालय की एक हस्ती , जिनके दम पर इलाहाबाद विश्वविद्यालय का पालिटिकल सांइस विभाग चलता है , जिनके पढ़ाए लोगों में सैकड़ों आइएएस सैकड़ों आइपीएस बन चुके होंगे। मैं खुद इनका एक स्टूडेन्ट रहा हूँ। जिनका लेक्चर अटेन्ड करने छात्र सब छोड़कर आते रहे हैं।
उन प्रोफेसर शाहिद सिद्दीकी को चोरों की तरह फोटो अखबार में छापी गयी क्युँकि उनके मेहमान जमात से आए 5-6 विदेशी , फंस गये माहौल में उनके घर पर ठहरे थे।
उनको गिरफ्तार करके जेल भेज दिया गया।
आज बांबे हाईकोर्ट ने मीडिया के ज़रिए खेले इस खेल को जब नंगा कर दिया तो मीडिया चुप्पी साध चुकी है।
उन बुज़ुर्ग से कल इस खबर को सुनाने के बाद पूछा कि कैसा लग रहा है ? वह बोले “इन्नल्लाह मा अस साबरीन”।
बेहतर तो होगा कि भारत की मीडिया टैग लगाकर शोकेस में खड़ी हो जाए , जिससे उनके द्वारा चलाया जा रहा चकलाघर कम से कम कुछ तो पारदर्शी हो जाता।