गुजरात में मोदी के मुख्यमंत्री काल से सरकार, अधिकारियों और व्यापारियों की मिलीभगत से देश का एक बड़ा कोयला घोटाला चल रहा है!

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सुनील सिंह बघेल-

गुजरात में मोदी के मुख्यमंत्री काल से सरकार,अधिकारियों और व्यापारियों की मिलीभगत से देश का एक बड़ा कोयला घोटाला चल रहा है। यह गठजोड़ पहले कोल इंडिया लिमिटेड से कागजों पर बनी कंपनियों के नाम पर सब्सिडी वाला लाखो टन सस्ता कोयला एलाट करवाता है। फिर इसे दो-तीन गुने महंगे दामों पर मध्य प्रदेश महाराष्ट्र आदि के खुले बाजार में बेच देते हैं।

घोटाले की शुरुआत 2008 में हुई। तत्कालीन मनमोहन सरकार ने लघु और मध्यम उद्योगों (MSME) को मदद करने के लिए सस्ता कोयला देने के लिए नई कोल वितरण नीति लागू की थी। इसमें राज्य सरकारों को एक नोडल एजेंसी बनाकर छोटे उद्योगों को रजिस्टर करने और मांग अनुसार कोयला वितरण करने के लिए कहा गया था। मध्य प्रदेश महाराष्ट्र जैसे कई राज्यों ने तो लघु उद्योग निगम जैसे सरकारी उपक्रमों को ही नोडल एजेंसी बनाया, जो कोल इंडिया की खदानों से कोयला अपना हैंडलिंग चार्ज लेकर छोटे उद्योगों को कोयला जारी करती थी।

लेकिन गुजरात सरकार ने ना तो योजना का प्रचार प्रसार किया, नाही गुजरात लघु उद्योग निगम को नोडल एजेंसी बनाया। इसके बजाय उन्होंने 3-4 गैर सरकारी एजेंसियों को नोडल एजेंसी बनाया और इन्हें कोल इंडिया लिमिटेड की खदानों से कोयला उठाने के लिए अधिकृत कर दिया। नियमानुसार होना यह था कि इन एजेंसियों को खदानों से सब्सिडी वाला कोयला लेकर अपने सदस्य उद्योगों को मांग अनुसार( अधिकतम सीमा 4200 टन) देना था। बस यही घोटाले की जड़ है।

हमारे पास मौजूद दस्तावेजों के मुताबिक गुजरात सरकार ने, काठियावाड़ कोल एंड कोक ट्रेडर्स एसोसिएशन ,साउथ गुजरात फेडरेशन ऑफ इंडस्ट्रीज, काठियावाड़ कोल एंड को एसोसिएशन को नोडल एजेंसी बनाया। इन्हें हर हर साल बाजार भाव से आधे से भी कम कीमत पर लाखो टन सस्ता कोयल एलॉट होना बताया गया है। पड़ताल में इनके दिए पते पर इन एजेंसियों का कोई अस्तित्व ही नहीं निकला। अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह अपने जिन सदस्यों को कोयला देना दिखाते होंगे उनमें से भी ज्यादातर कागजों पर ही हैं।

हमने जब पड़ताल शुरू की तो पाया कि सब्सिडी वाला यह कोयला गुजरात पहुंचता ही नहीं। खदानों से निकलकर यह इंदौर भोपाल बड़वाह बुरहानपुर महाराष्ट्र के चंद्रपुर क्षेत्र में पहुंच जाता है। नागपुर में बैठे इन कागजी कंपनियों के एजेंट अवैध कारोबारियों को सीधे डिलीवरी ऑर्डर ही बेंच देते हैं।

मध्य प्रदेश सरकार का दामन भी इस मामले में साफ नहीं है। अधिकारियों के नाक के नीचे 30% से ज्यादा की टैक्स चोरी कर खुलेआम लाखो टन कोयला प्रदेश के बाजारों में खपाया जा रहा है। इसका एक दुष्परिणाम यह भी हुआ है कि मध्य प्रदेश के सैकड़ों व्यापारी इस दो नंबर के कोयला कारोबार के आगे टिक नहीं पाए और बेरोजगारी की कगार पर पहुंच गए हैं..



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