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ज्ञानव्यापी को मुद्दा बनाने की कोशिश, टाइम्स ऑफ इंडिया सबसे आगे

संजय कुमार सिंह

इंडिया गठजोड़ को कमजोर दिखाने के मीडिया के लगभग घोषित और स्पष्ट प्रयासों के तहत नीतिश कुमार के दल बदलने (की तैयारी) की खबर आज भी प्रमुखता से छपी है। हालांकि, इससे महत्वपूर्ण है यह है कि विश्व हिन्दू परिषद ने ज्ञानव्यापी परिसर हिन्दुओं को सौंपने की मांग की है और टाइम्स ऑफ इंडिया ने इसे सेकेंड लीड बनाया है। इसके मुकाबले समाजवादी पार्टी ने उत्तर प्रदेश में कांग्रेस को 11 सीटें देने की घोषणा की है वह छोटी सी खबर है। मुझे लगता है कि अखिलेश की इस पेशकश या कांग्रेस से गठजोड़ के प्रति यह सकारात्मकता ज्यादा महत्वपूर्ण है। फिर भी इंडिया गठबंधन से संबंधित खबरों और उससे संबंधित संभावित राजनीति व उसके लाभ की रणनीति होने की संभावना को छोड़कर नीतिश कुमार को हीरो बनाने की कोशिशें चल रही हैं। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सकारात्मकता भाजपा की राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण है लेकिन मीडिया का सारा जोर नीतिश के नाराज होने के नुकसान बताने पर है।

नीतिश कुमार का वापस भाजपा का सहयोग करना उनकी अपनी राजनीति है और अगर वे अभी जा सकते हैं तो चुनाव के बाद क्यों नहीं जाते यह मुझे नहीं समझ में आता है। ऐसे में उन्हें अपने साथ चुनाव लड़वाने या रखने का कोई मतलब भी नहीं दिखता है। दल बदल और कुर्सी से चिपके रहने की उनकी राजनीति में सिद्धांत और जनहित बहुत पीछे रह गया है और सिर्फ कुर्सी पर बने रहने का सुशासन है। ऐसे में अगर कांग्रेस ने उन्हें भाव नहीं दिया, वापस भाजपा के साथ जाने को मजबूर कर दिया या जाने दिया तो यह कांग्रेस की रणनीति और राजनीति भी हो सकती है लेकिन मास्टर स्ट्रोक तो मोदी का ही होता है और खबर वही होती है। अभी यह नहीं बताया जा रहा है कि नीतिश खुद पार्टी छोड़ रहे हैं, भाजपा ने उन्हें पटा लिया है या कोई और कारण है। दूसरी ओर, राजद खेमा कह रहा है कि वह उनके कारण बताने का इंतजार कर रहा है।

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आपको याद होगा कि तेजस्वी यादव पर भ्रष्टाचार के कथित आरोपों के मद्देनजर नीतिश कुमार ने आदर्श की बड़ी-बड़ी बातें की थीं और कहा था कि उन्हें इस्तीफा दे देना चाहिये और नहीं देने पर दल बदल कर लिया। तेजस्वी बिना सत्ता के भी रहे पर उनके खिलाफ मामले में कार्रवाई का पता नहीं चला। इस बार तो ऐसा मुद्दा भी नहीं है। इसके बावजूद आज की खबरों के शीर्षक दिलचस्प हैं। अमर उजाला में पांच कॉलम की लीड का शीर्षक है, “नीतिश आज दे सकते हैं, मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा, भाजपा के नई सरकार संभव”। उपशीर्षक है, “बिहार में सियासी हलचल : राजद भी सक्रिय, विधायकों को पटना में रहने के निर्देश”। कहने की जरूरत नहीं है कि मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा देकर फिर मुख्यमंत्री बनना तय है तो खबर इस्तीफा नहीं है और जो खबर है वह शीर्षक में नहीं है। खबर यह है कि मुख्यमंत्री या नीतिश फिर दलबल करेंगे। इसे नहीं लिखना था तो खबर यही है कि बिहार में सियासी हलचल। पर वह सिंगल कॉलम की खबर होती।

इसीलिये नवोदय टाइम्स का उपशीर्षक है, “नीतीश आज पहले इस्तीफा देंगे, फिर नौवी बार लेंगे सीएम पद की शपथ”। मुख्य शीर्षक है, उलट-पलट बिहार। हालांकि, मुझे नहीं लगता कि बिहार में कोई उलट-पलट भी होना है। मुख्यमंत्री नीतिश ही रहेंगे (अभी तक की खबरों के अनुसार) और बाकी मंत्रियों का अब कोई महत्व नहीं रह गया है। नरेन्द्र मोदी ने केंद्र में दिखा दिया है। राज्यों में हर बार साथ और समर्थक दल बदलने वालों के बारे में दिखाने की जरूरत भी नहीं है। फिर भी इस खबर का शीर्षक अमूमन नीतिश के प्रति सकारात्मक ही है। टेलीग्राफ में भी – चौथे टूट की उल्टी गिनती। फ्लैग शीर्षक है – नीतिश एक बार फिर पार्टनर बदलने की तैयारी में। हिन्दुस्तान टाइम्स की सेकेंड लीड का शीर्षक है, आज जनतादल (यू) की प्रमुख बैठक से पहले बिहार में सरगर्मी। टाइम्स ऑफ इंडिया – नीतिश दल बदल को तैयार तो बिहार में सभी संबद्ध इकट्ठा हुए। इंडियन एक्सप्रेस का शीर्षक है, नीतिश का अलग होना तय, भाजपा के साथ दावा करेंगे तो आज सबकी नजरें पटना पर।

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कहने की जरूरत नहीं है कि नीतिश की खबर अभी पक्की नहीं है, पहली बार नहीं है इसलिए गंभीर नहीं है फिर भी है तो यह दिखाने के लिए इंडिया गठबंधन अपनी कोशिशों में कामयाब नहीं हो पाया। भाजपा को उसके रास्ते पर चलते रहने में मदद करने के लिए सपा और कांग्रेस के साथ की अच्छी खबर को कम महत्व दिया गया है और ज्ञान व्यापी के मामले को ज्यादा महत्व दिया गया है। वह भी तब जब पहले पन्ने पर विज्ञापन था और खबरों के लिए जगह कम थी। ऐसे में इंडियन एक्सप्रेस ने केरल के राज्यपाल के धरने की खबर को पहले पन्ने पर फोटो के साथ प्रमुखता से छापा है। खबर के अनुसार उनका आरोप है कि एसएफआई ने उनकी कार को टक्कर मारने की कोशिश की और राज्यसरकार से भिड़ंत के बाद उन्हें सीआरपीएफ की सुरक्षा मिल गई। इंडियन एक्सप्रेस में ज्ञानव्यापी की खबर पहले पन्ने पर नहीं है जबकि द टेलीग्राफ में सिंगल कॉलम में है।

उम्मीद की जा रही थी कि मंदिर के बाद भाजपा और प्रचारकों के पास चुनाव के लिए कोई मुद्दा नहीं बचेगा और इंडिया गठबंधन की न्याय यात्रा जनता पर अच्छा छाप छोड़ेगी। इससे मुकाबले के लिए मीडिया ने यह बताना शुरू किया कि इंडिया गठबंधन में सब ठीक नहीं है। इसमें ममता बनर्जी की कथित नाराजगी और कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न घोषित कर उनके समर्थकों के साथ ‘न्याय’ का नाटक और उसके फल या लाभ के रूप में नीतिश की दल बदल की तैयारी अगर सामान्य भी हो तो मीडिया ने ट्रेलर को तीन दिन पहले पन्ने पर रखा है। इस तरह भाजपा की ओर से न्याय यात्रा पर चोट और ज्ञानव्यापी को मुद्दा बनाने की कोशिशें साफ दिख रही हैं। भाजपा की राजनीति उसकी अपनी है, अगर कोई देखने वाला है तो वह मतदाता है ही पर मंदिर की सफलता के बाद ज्ञानव्यापी को मुद्दा बनाया जाये तथा उसमें मीडिया का इस पैमाने पर सहयोग हो सकता है तो 80-20 की राजनीति में इंडिया गठबंधन को जीतने या भाजपा के चुनाव हारने की संभावना भी कहां है। उसपर ईवीएम है ही।

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