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सियासत

हज यात्रा किसी दूसरे की मदद से करना इस्लाम के खिलाफ है

हज-यात्रा में दी जानेवाली सरकारी सहायता को खत्म करने का विरोध कुछ मुस्लिम नेता और संगठन जरुर करेंगे और यह प्रचार भी करेंगे कि आरएसएस के प्रधानमंत्री से इसके अलावा क्या उम्मीद की जा सकती है लेकिन ऐसा करना बिल्कुल गलत होगा। यह सहायता खत्म की जाए, ऐसा फैसला 2012 में सर्वोच्च न्यायालय ने किया था। यह फैसला दो जजों ने दिया था, जिसमें से एक हिंदू था और दूसरा मुसलमान!

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हज-यात्रा में दी जानेवाली सरकारी सहायता को खत्म करने का विरोध कुछ मुस्लिम नेता और संगठन जरुर करेंगे और यह प्रचार भी करेंगे कि आरएसएस के प्रधानमंत्री से इसके अलावा क्या उम्मीद की जा सकती है लेकिन ऐसा करना बिल्कुल गलत होगा। यह सहायता खत्म की जाए, ऐसा फैसला 2012 में सर्वोच्च न्यायालय ने किया था। यह फैसला दो जजों ने दिया था, जिसमें से एक हिंदू था और दूसरा मुसलमान!

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दोनों जजों ने कुरान शरीफ, इस्लामी ग्रंथों और रिवाजों का गहरा अध्ययन किया और वे इस नतीजे पर पहुंचे कि हज-यात्रा किसी और की मदद से करना इस्लाम के खिलाफ है। मुख्य जज आफताब आलम ने कुरान के तीसरे अध्याय के 97 मंत्र को उदधृत करते हुए सरकार से हज-यात्रा की सब्सिडी खत्म करने के लिए कहा। उस समय कांग्रेस की सरकार थी और उसे दस साल का समय दिया गया था। अब भाजपा सरकार ने इसे खत्म करने का फैसला किया है तो देश के मुसलमानों का इसका स्वागत करना चाहिए।

इस फैसले का सुझाव अफजल अमानुल्लाह कमेटी ने सारी जांच के बाद अक्तूबर 2017 में दिया था। हज-सहायता पर खर्च होनेवाले लगभग 700 करोड़ रु. अब मुस्लिम बच्चों की शिक्षा पर खर्च होंगे, ऐसा आश्वासन अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने दिया है। यदि सरकार अपनी कथनी को करनी में बदल सके तो देश के मुसलमानों की अगली पीढ़ियों की किस्मत चमक उठेगी।

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नकवी ने बयान में यही बताया है कि सरकारी सहायता के ज्यादातर का फायदा हाजियों को मिलने की बजाय हवाई कंपनियों और दलालों को मिलता था। अब लोग पानी के जहाज से भी हज-यात्रा पर जा सकेंगे। पहले यह जल-यात्रा सिर्फ 1600 रुपए में हो जाती थी। अब भी यह काफी सस्ती होगी। महिलाओं को अब अकेले हज-यात्रा की सुविधा सरकार ने दे दी है। जो लोग हवाई जहाज से जाना चाहें और पांच सितारा-यात्रा करना चाहें, जरुर करें। कई प्रांतीय सरकारों ने हिंदुओं की तीर्थ-यात्रा का जो जिम्मा लिया है, उस पर पुनर्विचार की जरुरत है। कानून तो कानून है। वह सबके लिए समान होना चाहिए। तीर्थ-यात्राएं अपने दम पर ही की जानी चाहिए।

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लेखक वेद प्रताप वैदिक देश के वरिष्ठ पत्रकार और स्तंभकार हैं.

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