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सियासत

It is hard to be loved by Idiots… मूर्खों से प्यार पाना मुश्किल है…

Arun Maheshwari : ग्यारह जनवरी को दस श्रेष्ठ कार्टूनिस्टों के हत्याकांड के बाद आज सारी दुनिया में चर्चा का विषय बन चुकी फ्रांसीसी व्यंग्य पत्रिका ‘शार्ली एब्दो’ पर सन् 2007 एक मुकदमा चला था। तब इस पत्रिका में डैनिस अखबार ‘जिलैट पोस्तन’ में छपे इस्लामी उग्रपंथियों पर व्यंग्य करने वाले कार्टूनों को पुनर्प्रकाशित किया गया था। इसपर पूरे पश्चिम एशिया में भारी बवाल मचा था। फ्रांस के कई मुस्लिम संगठनों ने, जिनमें पेरिस की जामा मस्जिद भी शामिल थी, शार्ली एब्दो पर यह कह कर मुकदमा किया कि इसमें इस्लाम का सरेआम अपमान किया गया है। लेकिन, न्यायाधीशों ने इस मुकदमे को खारिज करते हुए साफ राय दी कि इसमें मुसलमानों के खिलाफ नहीं, इस्लामी उग्रपंथियों के खिलाफ व्यंग्य किया गया है।

<p>Arun Maheshwari : ग्यारह जनवरी को दस श्रेष्ठ कार्टूनिस्टों के हत्याकांड के बाद आज सारी दुनिया में चर्चा का विषय बन चुकी फ्रांसीसी व्यंग्य पत्रिका ‘शार्ली एब्दो’ पर सन् 2007 एक मुकदमा चला था। तब इस पत्रिका में डैनिस अखबार ‘जिलैट पोस्तन’ में छपे इस्लामी उग्रपंथियों पर व्यंग्य करने वाले कार्टूनों को पुनर्प्रकाशित किया गया था। इसपर पूरे पश्चिम एशिया में भारी बवाल मचा था। फ्रांस के कई मुस्लिम संगठनों ने, जिनमें पेरिस की जामा मस्जिद भी शामिल थी, शार्ली एब्दो पर यह कह कर मुकदमा किया कि इसमें इस्लाम का सरेआम अपमान किया गया है। लेकिन, न्यायाधीशों ने इस मुकदमे को खारिज करते हुए साफ राय दी कि इसमें मुसलमानों के खिलाफ नहीं, इस्लामी उग्रपंथियों के खिलाफ व्यंग्य किया गया है।</p>

Arun Maheshwari : ग्यारह जनवरी को दस श्रेष्ठ कार्टूनिस्टों के हत्याकांड के बाद आज सारी दुनिया में चर्चा का विषय बन चुकी फ्रांसीसी व्यंग्य पत्रिका ‘शार्ली एब्दो’ पर सन् 2007 एक मुकदमा चला था। तब इस पत्रिका में डैनिस अखबार ‘जिलैट पोस्तन’ में छपे इस्लामी उग्रपंथियों पर व्यंग्य करने वाले कार्टूनों को पुनर्प्रकाशित किया गया था। इसपर पूरे पश्चिम एशिया में भारी बवाल मचा था। फ्रांस के कई मुस्लिम संगठनों ने, जिनमें पेरिस की जामा मस्जिद भी शामिल थी, शार्ली एब्दो पर यह कह कर मुकदमा किया कि इसमें इस्लाम का सरेआम अपमान किया गया है। लेकिन, न्यायाधीशों ने इस मुकदमे को खारिज करते हुए साफ राय दी कि इसमें मुसलमानों के खिलाफ नहीं, इस्लामी उग्रपंथियों के खिलाफ व्यंग्य किया गया है।

उसी समय, सन् 2008 में फिल्मकार डैनियला लिकोंत ने इस मुकदमे पर एक डाक्यूमेंट्री बनाई – It is hard to be loved by Idiots ( मूर्खों से प्यार पाना मुश्किल है)। फ्रांस के वर्तमान राष़्ट्रपति फ्रांस्वा ओलेंद ने उसी डाक्यूमेंट्री में यह बात कही थी – ‘कुछ स्वतंत्रताएं ऐसी है जिन पर कोई बात नहीं हो सकती है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर किसी प्रकार की सौदेबाजी नहीं की जा सकती है।’’

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डैनियला लिकोंत की इस डाक्यूमेंट्री पर तब लोगों का विशेष ध्यान नहीं गया था। लेकिन आज यही डाक्यूमेंट्री फ्रांस के लोगों के प्रतिवाद और ‘शार्ली एब्दो’ के प्रति एकजुटता का प्रतीक बन गयी है। वहां के फिल्म समाज ने यह निर्णय लिया है कि देश भर के सौ से भी ज्यादा सिनेमागृहों में इस डाक्यूमेंट्री का पूरे एक हफ्ते तक प्रदर्शन किया जायेगा। इसमें पेरिस, मार्सै, स्ट्रासबेरी, ले हाफ्रे की तरह के बड़े शहरों से लेकर वहां के ब्रिटेनी की प्लुएस्केत जैसे छोटे शहरों के सिनेमागृह भी शामिल है। इससे होने वाली आमदनी को ‘शार्ली एब्दो’ को सौंप दिया जायेगा।

अरुण माहेश्वरी के फेसबुक वॉल से.

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Mukesh Kumar : ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कैमरून ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की वकालत करते हुए पोप के तर्क को खुले आम खारिज़ कर दिया है। पोप ने आस्था के अपमान का सवाल उठाकर अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का विरोध किया था। कैमरून का कहना है कि किसी स्वतंत्र समाज में किसी धार्मिक आस्था को आहत करने का अधिकार होना चाहिए। फ्रांस के राष्ट्रपति ने शार्ली एब्दो पर हुए हमले के बाद भी यही रुख़ अख़्तियार किया ता। विडंबना देखिए कि ऐसा साहस छप्पन इंच की छाती वाले नहीं दिखाते। साधु-संतों के ऊल-जलूल बयानों पर मनमोहन सिंह और नरसिम्हा राव टाइप चुप्पी साध जाते हैं।

मुकेश कुमार के फेसबुक वॉल से.

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