Sarfaraz Nazeer : एबीपी न्यूज बता रहा है कि 8 देशों के संयुक्त सैन्य अभ्यास में सपना चौधरी के गाने ‘तेरी अख्यां का ये काजल’ पर सबसे ज्यादा थिरकने वाले सैनिक पाकिस्तान के थे। सनद रहे कि मथुरा से भाजपा उम्मीदवार हेमामालिनी के खिलाफ कांग्रेस सपना चौधरी को बतौर उम्मीदवार उतार सकती है। मीठी छुरी से ज़िबह करना समझते हैं? सुपारी उठ चुकी है, बस आपको फर्क़ करना आना चाहिए कि ये क़त्ल है या कारामात? जिन्हें न समझ आया, उनके लिए बता रहा हूं। ये एक तरह से इमेज किलिंग है। सपना चौधरी को खूबसूरती से पाकिस्तान से जोड़ दिया।
Naved Shikoh : टिकट चाहिए है तो खिलाड़ी बनें। अभिनेता बनें। डांसर बनें। कवि-शायर बनें। डाकू भी चलेगा। कुछ नहीं बन पायें तो दौलतमंद बन जाइये। सियासत में ज्यादा अनुभव आडवाणी बना देता है।
सपना ..हेमा.. नग़मा ..सबकी पसंद निरमा .. रन और फन वालों की क्यों मोहताज हुई सियासत! सैलिब्रिटी ग्लेमर से मिलेगा रेडीमेड जनाधार… नेता बनने के लिए अभिनेता, खिलाड़ी या बड़े कलमकार बनो! ये सच है कि सस्ता साबुन कपड़े पर ज्यादा गहरे दाग़ों को आसानी से धो देता है। हमारे ज़माने में बंदरछाप काला साबुन और कमांडर भूरा साबुन होता था जो कपड़े पर तारकोल के दाग भी मिटा देता था।ये बात अलग है कि कभी-कभी ऐसे साबुन से दाग़ धोने के साथ कपड़े से भी हाथ धोना पड़ते थे।
धर्म-जाति और फर्जी राष्ट्रवाद जैसे डिसपोजिबिल मुद्दों से सियासत अपनी नाकामी के दाग छिपाना चाहती है। अस्ल मुद्दों को भटकाना चाहती हैं। तब भी काम नहीं बनता तो चुनाव में सैलीब्रेटी प्रत्याशियों के ग्लैमर की चमक से पार्टी के दागों को मिटाने की कोशिश की जाती है। ये चमक राजनीति दलों के अतीत के कलंक को छिपाने का काम करती है। हरदिल अज़ीज़ अदाकारा हेमामालिनी का चेहरा और सपना चौधरी के ठुमके हमारे ज़ेहनों से राजनीतिक दलों की वादाखिलाफी और झूठ को भुला देते हैं। गौतम गंभीर और श्रीसंत जैसों की क्रिकेट फरमारमेंस का अतीत लोकतंत्र की गंभीरता पर हावी हो जाता है। इनके ग्लेमर की चमक वाला असरदार साबुन लोकतंत्र की ताकत ऐसे कमजोर करता है जैसे तेज़ाबयुक्त साबुन दाग़ मिटाने की कोशिश में कपड़ा कमजोर कर देता है।
इन दिनों लोकसभा चुनाव के लिये हर कोई राजनीतिक दल सशक्त और तठस्थ विचारधारा वाले गंभीर लोगों के बजाय ऐसे लोगों को टिकट दे रहे हैं जो अपने किसी फन की वजह से जनता के दुलारे हैं। या फिर करोड़ों की रक़म लेकर दौलतमंदों को टिकट दिये जा रहे हैं। यानी देश के सबसे बड़े सदन संसद जाने का टिकट पाने के लिए कोई विचारधारा, जनहित की भावना या समाजसेवा का बैकग्राउंड जरूरी नहीं। पार्टी से टिकट पाकर चुनाव जीतने और संसद जाने वालेे को बड़ा नेता समझा जाता है। आज के सियासी सिस्टम में नेता बनने के लिए अभिनेता होना जरूरी है। क्योंकि अभिनेता अमल और हक़ीकत से नहीं एक्टिंग’ स्क्रिप्ट और तकनीक से जनता को प्रभावित करता है।
अच्छे खिलाड़ी को भी टिकट मिल जाता है। क्योंकि आज की राजनीति में जनता की भावनाओं से खेलने के लिए खिलाड़ी की लोकप्रियता कैश करने में देर नहीं लगती। कवि-शायर कल्पनाओं के तानेबानों में उलझाना जानता है। आसमान से चांद तारे तोड़ने का जज्बा दिखाना भी सियासत का एक टूल है। अपने ठुमकों से नौजवानों को मदहोश कर देने वाली किसी डांसर की सियायत में अहमियत होना लाजमी है। क्योंकि सियासतदा भले ही खुद नहीं नाचें लेकिन झूठ और भावनाओं के सहारे जनता को अपनी उंगलियों पर नचाने के हुनर को तो वो भी जानते हैं। नाचने की कला वाले भी नचाने का काम कर ही सकते हैं। इसलिए राजनीतिक दलों के लिए डांसर भी मुफीद है।
तमाम चुनावों में टिकट तो पूर्व डाकुओं को भी दिया गया है। डाकू भय पैदा करता है फिर लूटता है। कमोवेश कुछ राजनीतिक दल भी सत्ता पाकर डराते हैं फिर लूटते हैं। तो क्यों ना हममिजाज डाकुओं को पार्टियां टिकट दें। धनबल भी चुनावी वैतरणी पार करने का हथियार रहा है। यही कारण है कि धनकुबेरों को टिकट बेचने का रिवाज भी खूब फलता फूलता रहा है। समाजसेवा का संघर्ष, आम जनता के लिए काम करने का अनुभव, राष्ट्रहित और मानवहित की विचारधारा में अब इतना बूता नहीं कि किसी सशक्त राजनीतिक दल से चुनाव का टिकट दिलवा दे।
जनता की नुमाइंदगी करने वाले देश के सबसे बड़े सदन संसद का रास्ता तय करने वाला टिकट पाने वाले ज्यादातर नामों पर विचार कीजिए। जो पार्टी इन्हें चुनाव लड़ने का टिकट दे रही है उस पार्टी में ये कितने दिन रहे हैं! टिकट पाने वालों की क्या विचारधारा है! इन लोगों ने निस्वार्थ भावना और गैर व्यवसायिक तौर पर जनहित में कितना काम किया है! प्रभावित करने वाली विचारधारा टांगे कन्हैया कुमार और योगेंद्र यादव जैसे देश के सैकड़ों रत्न राजनीति के बाजार में पत्थर के भाव भी नहीं बिकते। और, सियासत में ज्यादा अनुभव आडवाणी बना देता है।
सरफराज नज़ीर और नवेद शिकोह की एफबी वॉल से.