नैनीताल। उत्तराखंड हाईकोर्ट ने नैनीताल की हिफाजत और सूखाताल के सौंदर्यीकरण के लिए कड़ा रुख अख्तियार कर लिया है। अदालत ने सूखाताल झील के सौंदर्यीकरण और नाले-नालियों के अतिक्रमण हटाने के मामले में शुक्रवार को जिला मिजस्ट्रेट, कुमाऊँ मंडल विकास निगम के एमडी, कुमाऊँ के एडिशनल कमिश्नर और नगर पालिका परिषद के अधिशासी अधिकारी को निजी तौर पर कोर्ट में तलब किया। इन अधिकारियों ने उत्तराखंड हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति आलोक सिंह और न्यायमूर्ति सर्वेश कुमार गुप्ता की खंडपीठ के सामने सूखाताल की वीडियोग्राफी और फोटो पेश की। अधिकारियों ने अदालत को आश्वस्त किया कि सरकारी अमला सूखाताल को अतिक्रमण मुक्त कर विशेषज्ञों के राय-मशविरे से इसके सौंदर्यीकरण का प्रस्ताव फौरन तैयार कर लेगा।
मालूम हो कि इन दिनों उत्तराखंड हाईकोर्ट के न्यायमूर्ति आलोक सिंह और न्यायमूर्ति सर्वेश कुमार गुप्ता की खंडपीठ में नैनीताल के पर्यावरण और पारिस्थितिकी को लेकर एक जनहित याचिका में सुनवाई चल रही है। तीन जुलाई को इस जनहित याचिका की सुनवाई के दौरान न्यायमूर्ति आलोक सिंह और न्यायमूर्ति एसके गुप्ता की खंडपीठ ने नैनीताल के तालाब समेत जिले की दूसरी झीलों की कुदरती खूबसरती और सुरक्षा को लेकर कड़ा रुख अपनाते हुए नैनीताल के नालो से तत्काल अतिक्रमण हटाने, नैनीताल के सूखाताल क्षेत्र को अतिक्रमण से मुक्त कर इस झील के संरक्षण और सौंदर्यीकरण के लिए कारगर योजना बनाने, नैनीताल समेत जिलें के सभी झील क्षेत्रों और नगरो को पॉलीथिन मुक्त करने, भवन निर्माण उपविधियों का कड़ाई से पालन सुनिश्चित्त करने और जनपद की सभी झीलों के तीस मीटर परिधि में निर्माण कार्यों पर पाबंदी लगाने के अंतरिम आदेश दिए थे। तब से हाईकोर्ट में हर हफ्ते इस जनहित याचिका में सुनवाई हो रही है। हाईकोर्ट के सख्त रुख के चलते अब तक कई इलाकों की सड़कें और नाले अतिक्रमण से मुक्त कराए जा चुके हैं। बाजार क्षेत्र के व्यापारी इन दिनों अपनी दूकानों के आगे उनके द्वारा किया गया अतिक्रमण खुद ही हटा रहे हैं। इस अभियान से दिन-ब-दिन संकरी होती बाजारों का पुराना स्वरूप लौटने लगा है। बाजारों की पुरानी रौनक भी।
हाईकोर्ट नैनीताल के मुख्य जल संग्रहण क्षेत्र सूखाताल के संरक्षण और सौंदर्यीकरण के प्रति बेहद संजीदा है। दरअसल सूखाताल प्राकृतिक बरसाती झील है। यह नैनीताल के तालाब का कुदरती जल स्रोत का काम करती है। इस झील को अंग्रेजी शासनकाल के दस्तावेजों में “मल्ला पोखर” और मुख्य तालाब को “तल्ला पोखर” कहा गया है। नैनी झील के समूचे जल संग्रहण क्षेत्र में से तकरीबन अट्ठारह फीसद सूखाताल के हिस्से आता है। बाकी करीब बयासी फीसद जल संग्रहण क्षेत्र का पानी बरसात में नालों के जरिये सीधे तालाब में पहुँचता है, जो कि तालाब का पानी का स्तर तयशुदा सीमा से अधिक होने की सूरत में बाहर निकाल दिया जाता है। इसके उलट सूखाताल का पानी धीरे-धीरे रिस कर तालाब में पहुँचता है। इस लिहाज से इसे नैनीताल के तालाब का प्राकृतिक जल भंडारण क्षेत्र कहा जा सकता है।
इधर पिछले कुछ दशकों से सूखाताल की खूब अनदेखी और बेकद्री हुई है। एक दौर में निर्माण कामों से निकले नगर के मिट्टी-मलुवे से सूखाताल के उदर को जमकर भर दिया गया। फिर तालाब के अंदर और उसकी सीमा में खूब वैध और अवैध निर्माण कार्य हुए। तालाब के स्वरूप को नष्ट करने में सरकारी अमले भी पीछे नहीं रहे। वन विकास निगम, जल निगम और जल संस्थान ने भी तालाब में अवैध निर्माण कर रखे हैं। इधर पिछले कुछ सालों में तालाब और उससे लगा एक बड़ा इलाका किसी संस्था ने कई लोगों को बेच भी दिया है। बेची गई जमीनों में नगर पालिका ने दाखिल-ख़ारिज और झील प्राधिकरण ने मकानों के नक़्शे भी पास किए हैं। आज वहां कई मकान हैं। अब सरकारी अमले के सामने सूखाताल के तालाब क्षेत्र और उससे लगी जमीन के असल स्वामित्व के सवाल को सुलझाना एक बड़ी चुनौती है।
लेखक प्रयाग पांडेय उत्तराखंड के वरिष्ठ पत्रकार हैं। संपर्कः [email protected]
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