माया बुआ भी सोचतै रहिगै बबुआ के संग होरी खेलब…

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आवा हो भइया होली मनाई

अब तो गावन कै लड़िका भी पप्पू टीपू जानि गएन,
‘यूपी को ये साथ पसन्द है’ ऐह जुम्ला का वो नकार दहेन,
माया बुआ भी सोचतै रहिगै बबुआ के संग होरी खेलब,
पर ‘मुल्ला यम ‘ कै साइकिलिया का लउड़ै हवा निकार देहेन,
बूढ़ी हाथी बैठ गई और साइकिल भी पंचर होइ गै,
जिद्दी दूनौ लड़िकै मिलिके माया मुलायम कै रंग अड़ाय गै,
राजनीति छोड़ा हो ननकऊ आवा हम सब गुलाल लगाई,
फगुनाहट कै गउनई गाय के आवा हो भइया होली मनाई,

भउजी कब से कहत रहीं कि आवा हो देवर होली खेली,
साल भरे के रखे रंगन कै तोहरे ऊपर खूब ढ़केली,
होली अऊतै अपने काका खटिया से तुरन्तै उठि गएन,
फगुनाहट कै गीत गाइकै सबका वो खूब मगन केहेन,
मोदी मोदी कै एकै धुन अब लउड़न में सवार अहै,
खूब खरीदेन केसरिया रंग सराबोर वो देखात अहै,
दिल कै दर्द भुलावा भइया आवा हम सब गले मिल जाई,
प्यार के रंग से रंगि के भइया आवा हो भइया होली मनाई,

साल भरे से लखतै रहिगै उनका रंग लगाउब ऐह बार,
नैना नैना चार करब और उनका बनाउब आपन ऐह बार,
फागुन कै गउनई सुनिके वो अपने आप निकरि आई,
देखतै देखत एक पलन मै वो हमका आपन बनाय गई,
अब तो घर से निकरा भइया आवा रंग गुलाल उड़ाई ,
मथुरा के पानी में रंगिके बनारसी लाल गुलाल लगाई,
मन का मैल छुडावा भइया आवा अब रंगीन बनाई,
अवधी रंग में रंगि जा भइया आवा हम सब होली मनाई…..!

अन्तू, प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश की निवासिनी शालिनी तिवारी स्वतंत्र लेखिका हैं। पानी, प्रकृति एवं समसामयिक मसलों पर स्वतंत्र लेखन के साथ साथ वर्षो से मूल्यपरक शिक्षा हेतु विशेष अभियान का संचालन भी करती है। सम्पर्क- shalinitiwari1129@gmail.com



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