गोरखपुर। मजीठिया वेज बोर्ड की लड़ाई के कारण हिन्दुस्तान प्रबन्धन से जान से मारने की धमकी मामले में दोनों पीड़ित पत्रकारों की तीसरे पत्रकार के माध्यम से ट्विटर द्वारा भेजी गई तहरीर पर डीआईजी रेंज गोरखपुर ने जांच और कार्रवाई का आदेश दिया है। हांलाकि मामला संज्ञेय (Cognizable) है और सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार ऐसे मामलों में फौरन मुकदमा लिखा जाना चाहिये। चूंकि अखबार का प्रकरण है लिहाजा खासा दबाव में आए पुलिस अफसर कोर्ट के आदेश की भी धज्जियां उड़ा रहे हैं।
हालांकि वरिष्ठ पत्रकार व सोशल एक्टिविस्ट वेद प्रकाश पाठक ने डीआईजी के ट्विट के जबाब में सुप्रीम कोर्ट के आदेश की प्रति भेजा है। उन्होंने सीजेएम न्यायालय गोरखपुर का वह आदेश भी अफसरों को ट्विट किया है जिसमें जज ने जान से मारने की धमकी को Cognizable अपराध की श्रेणी में माना है।
07 अक्टूबर 2016 को सीनियर कापी एडिटर सुरेंद्र बहादुर और आशीष बिंदलकर को एचआर मैनेजर मो. आशिक लारी ने गालियां दीं और जान से मारने की धमकी दी। आशीष को कंपनी गेट पर सेक्योरिटी से धमकी दिलवाकर खदेड़वा दिया गया। सुरेंद्र को धमकी के साथ देहरादून का ट्रांसफर आर्डर पकड़वाकर गेट से बाहर करवा दिया गया। दोनों पीड़ित चिलुआताल थाने में तहरीर लेकर पहुंचे लेकिन उनकी तहरीर थाने में रिसीव नहीं हुई।
इस मामले में वरिष्ठ पत्रकार व सोशल एक्टिविस्ट वेद प्रकाश पाठक ने यूपी पुलिस ट्विटर सेवा पर तहरीर भेजकर मुकदमे की मांग की थी। तीनो पत्रकार सीओ गोरखनाथ से भी मिल चुके हैं, लेकिन पुलिस अखबार के प्रभाव के सामने खुद को लाचार दिखा रही है। अभी तक मामले में मुकदमा नहीं लिखा गया और Cognizable अपराध में पुलिस जांच-जांच का खेल करके सुप्रीम कोर्ट के ललिता कुमारी बनाम यूपी स्टेट के मामले में दिये आदेश की अवमानना कर रही है। तीनों पत्रकारों ने खुद पर फर्जी मुकदमे लिखवाने, फर्जी साजिश में जेल भिजवाने और जान से मरवाने की आशंका भी सार्वजनिक की है।