-पंडित आयुष गौड़-
मज़ा अकेले ले रहे हो तो सजा भी अकेले झेलो बिरादरी से समर्थन क्यों माँग रहे हो? पत्रकारों के न जाने कितने ऐसे मामले होते हैं जिन्हें प्रशासन और शासन दबा देता है। जिस वक्त अर्णब गोस्वामी के ऊपर आत्महत्या के लिए उकसाने का मामला दर्ज हुआ था उस वक्त क्या प्रशासन ने अरनव का रसूख देखते हुए मामले में कोताही नहीं बरती होगी? छोटे-मोटे जिलों के स्ट्रिंगर भी अपनी सांठगांठ से अपने ऊपर लगने वाले कई मुकदमे मैनेज कर ले जाते हैं। लेकिन जो शासन और प्रशासन आपके रसूख के चलते आपके गुनाहों पर पर्दा डालता है या आप को बचाता है वही वक्त आने पर आपको आपकी औकात भी याद दिला देता है।
जब एक मजबूत व्यक्ति, संस्था, सरकार के लोग आपको किसी दूसरी सरकार, व्यक्ती के ऊपर कीचड़ उछालने के लिए पैसा देते हैं, फंड करते है तो जाहिर सी बात है जिस पर कीचड़ उछालेंगे वह भी डंडा लेकर खड़ा रहेगा आपको धोने।और जब आपकी धुलाई शुरू होती है तो आप कहते हैं की प्रेस की आजादी पर पहरा है। कौन सी प्रेस कैसी प्रेस वह प्रेस जो एक पार्टी से सुपारी लेकर दूसरे पर सवार हो जाए किसी मजलूम बेसहारा यह जमीनी आदमी की बात ना करें और सिर्फ एजेंडा चलाएं।
आज जो पत्रकार अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी की निंदा कर रहे हैं उन्हें पता भी नहीं है कि जब संपादकों को मोटा माल मिलता है धन मान सम्मान प्रतिष्ठा सरकार द्वारा उपलब्ध कराई जाती है तो उसका कितना बड़ा मेग्नीट्यूड होता है। (मैंने यह सब बहुत करीब से देखा है क्योंकि मैं एक ऐसे व्यक्ति के साथ काम कर चुका हूं) क्या वह आपसे यह पैसा नाम शोहरत बांटते हैं। अपना पर्सनल चॉपर लग्जरी गाड़ियां अकूत दौलत बेइंतेहा पावर 6 गाड़ियों की लंबी सुरक्षा क्या यह आपसे या आपके परिवार से शेयर की जाती हैं।
तो भाई मजा अकेले ले रहे हो तो सजा भी अकेले ही पाओगे फिर जमात के बाकी लोगों से हमदर्दी की उम्मीद क्यों ? क्या अर्णब गोस्वामी ने किसी पत्रकार की बहन की शादी कराई है? क्या किसी पत्रकार के मरने पर उसके घर वालों को कोई मदद दी है? हम सिर्फ पत्रकार है इसलिए पत्रकारों का समर्थन करें यह तो कोई मापदंड नहीं हुआ।
आपको याद है रिपब्लिक के रिपोर्टर किस तरह रिया और दीपिका पादुकोण की गाड़ी का पीछा करते थे क्या उन्हें इस बात का एहसास था कि यदि उनकी गाड़ी का एक्सीडेंट हो जाएगा तो वह उसमें मर भी सकते हैं लेकिन आप तो पत्रकारिता कर रहे थे। त्योहारों पर कई बार चेकिंग के दौरान जब पुलिसकर्मी लोगों को रोकने की कोशिश करते हैं और लाठी लेकर दौड़ाते हैं ऐसे में अगर व्यक्ति का एक्सीडेंट हो जाता है तो मुकदमा पुलिस वाले पर कायम होता है।पर आप पर नहीं हो सकता क्योंकि आप प्रेस हैं आप लोगों की हक की लड़ाई लड़ रहे हैं।
पत्रकारिता का कोर्स करने के साथ-साथ वकालत भी पढ़ लिया करो दोस्तों यह आगे काम आने वाली चीजें हैं माइक लेकर के कहीं भी घुस जाना चीखना चिल्लाना बेअदबी करना और न्यायपालिका से पहले ही आरोपी का जीवन जहन्नुम कर छीछालेतर कर देना पत्रकारिता नहीं होती।
इसलिए- idonotsupportarnab