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सियासत

इफको की कहानी (16) : सरकार और मंत्री से ज्यादा शक्तिशाली है सहकारिता माफिया बोर्ड?

रविंद्र सिंह-

लूट से कराह उठी इफको?

31 मार्च 2002 को इफको की कुल कार्यशील पूंजी में से 290 करोड अंकित नाम मात्र धन 35 साल बाद वापस करने को इफको प्रबंधन अडिग हो गया था। इधर संयुक्त सचिव ने विस्तार से विरोध करते हुए लिखा है इफको बोर्ड बार-बार कानून का मजाक उड़ाकर जनहित की बात कर रहा है तो भी सरकार का धन जनहित के तौर पर निवेश किया गया है और एमएससीएस एक्ट की धारा 122, 123 के तहत शेयर को कम कर सकता है लेकिन पूरी तरह से वापस नहीं? उन्होने आगे लिखा है सरकार को इफको बोर्ड से ज्यादा अधिकार हैं और केंद्रीय रजिस्ट्रार सरकार का अंग हैं, इसलिए इफको बोर्ड को तत्काल तलब कर मनमानी करने से रोकने पर विचार करें। क्योंकि रजिस्ट्रार के समक्ष कोर्ट की तरह शक्ति प्राप्त है।

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यह बात उन्होने 29 जनवरी 2003 को आंतरिक नोटशीट में पृष्ठ संख्या 32 पर अंकित की है। इफको प्रबंधन ने 28 जनवरी 2003 को शेयर की राशि वापस करने के लिए बायलॉज के नियम 6-7 का हवाला देते हुए उर्वरक मंत्रालय को पत्र लिखा। इसके बाद ढुलमुल नीति अपनाते हुए उर्वरक मंत्रालय की ओर से इफको प्रबंधन को चेक वापस करते हुए बोर्ड से पहले मंजूरी लेने के निर्देश दिए।

बताते चलें मंत्रालय यह पहले से जानता था कि बोर्ड की मंशा ईमानदार नहीं है फिर भी उनको ही पत्र लिखकर निर्णय लेने को कहा जाना औचित्यहीन था। अब सरकार के निदेशक भी बायलॉज संशोधन पर आपत्ति तो लगा रहे थे लेकिन यह अंतर विरोध इफको, कृषि और उर्वरक मंत्रालय तक ही सीमित था अगर एक भी नौकरशाह की नीयत और नीति साफ होती तो वह पत्र की प्रति पीएमओ को भी भेज सकते थे लेकिन ऐसा नहीं किया गया। 

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इफको बोर्ड ने सरकार का शेयर तिमाही किश्त के आधार पर वापस किया वो भी अपनी सुविधा के तहत। आंतरिक नोटशीट के पृष्ठ पक्ष लिखते हुए कहा है केंद्रीय रजिस्ट्रार ने उनका पक्ष जाने बिना इफकों का संशोधित बायलॉज मंजूर कर दिया है। उर्वरक मंत्रालय ने इफको, कभको के प्रबंध निदेशक को 27 दिसंबर 2002 (फ्लैग एक्स) को पत्र लिखकर आपसी सहमती के आधार पर निर्णय लेने का अनुरोध किया और मांग की सरकार का शेयर पूरी तरह से खत्म नहीं किया जा सकता। सरकार का कम से कम 51 फीसदी शेयर अंकित मूल्य के बजाए बुक वैल्यू पर होना चाहिए। क्योंकि एमएससीएस एक्ट में सरकार के शेयर को खत्म करने की मंशा संसद की भी नहीं रही है। अध्ययन में भी सामने आया है 14 जनवरी 2003 को उर्वरक मंत्रालय के पत्र को कृषि एवं सहकारिता सचिव ने दर किनार करते हुए बायलॉज में इफको, कृभको की बात को बल देकर मंजूरी दी है जो गंभीर मुद्दा है।

यह बात उर्वरक एवं रसायन मंत्री ने पृष्ठ संख्या 34 पर लिखी है और उनके हस्ताक्षर के नीचे 5 फरवरी 2003 भी अंकित है। अब सवाल यह उठ रहा है सरकार के मंत्री से क्या इफको बोर्ड ज्यादा शक्तिशाली था? जो बायलॉज संशोधन और शेयर वापसी पर मनमानी कर रहा था यह सोचनीय विषय है?

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इसी तरह फाइल के गहन अध्ययन से पता चलता है उर्वरक सचिव ने लिखा है वह कृषि और सहकारिता मंत्रालय को सितंबर 1997 में अधिनियम में संशोधन करने के लिए पहले ही सुझाव देते हुए साफ कर चुके हैं इफको पूर्ण संपत्ति के आधार पर शेयर वापस कर सकता है लेकिन सरकार के नही? इफको और कृभको ने सबसे पहले उर्वरक और कानून मंत्रालय से कृषि सचिव का विरोध कराया फिर पैसा के बल पर बिना पक्ष जाने उप नियम संशोधन का प्रस्ताव रख दिया। सितंबर के दूसरे सप्ताह में उर्वरक सचिव ने फिर सुझाव दिया इफको और कृभको बायलॉज संशोधन में गलत निर्णय ले रहे हैं जिसे मंजूरी के समय गंभीरता पूर्वक परीक्षण करने की आवश्यकता है।

कृषि सचिव ने मसौदा (ड्राफ्ट रूल) की प्रति कानून मंत्रालय को भेज दी लेकिन उर्वरक सचिव को उपलब्ध नहीं कराई। इससे सरकार का पक्ष इसलिए कमजोर हो गया क्योंकि नीति बनाने वाला मंत्रालय उर्वरक था और उसे ही जानकारी न दी जाए कि उसको आने वाले समय में संस्था से बाहर कर दिया जाएगा। इफको के एम.डी उदय शंकर पूरी तरह से केंद्रीय रजिस्ट्रार सुझाव को धन और बल से कब्जे में किए हुए थे इसलिए 90 दिन में तीनों मंत्रालय लेकर मसौदा (ड्राफ्ट रूल ) तैयार करने के बजाए 88 दिन तक कृषि और सहकारिता मंत्रालय स्वयं ही मनमानी कर मसौदा (ड्राफ्ट रूल) तैयार कर लिया। इसके बाद 2 दिन पहले फोन पर सुझाव देने को कहा गया जिस पर उर्वरक मंत्रालय ने कहा 2 दिन के भीतर सुझाव देना संभव नहीं है, और 12 फरवरी 2002 को प्रेषित पत्र में अंकित सुझावों के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाए।

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उल्लेखनीय है केंद्रीय रजिस्टार की उक्त एक्ट के मसौदा (ड्राफ्ट रूल) तैयार और परीक्षण करने की जिम्मेदारी थी। सरकार का शेयर पूर्ण रूप से वापस करने के बजाए सहकारी समिति का शेयर बढाया जा सकता था। यह केंद्रीय रजिस्ट्रार की जानकारी में भली भांती था। उर्वरक सचिव ने केंद्रीय रजिस्ट्रार और उदय शंकर की मनमानी की चर्चा नोटशीट के पृष्ठ 37 पर की है। जब उदय शंकर को पता चल गया कि उर्वरक सचिव उक्त मसौदा ( ड्राफ्ट रूल ) पर राष्ट्रपति से हस्तक्षेप करने की बात लिख चुके हैं फिर उन्होने उर्वरक मंत्री से सांठ-गांठ कर ली।

उक्त प्रकरण मंत्री ने तलब कर लिया और मंत्रालय का पक्ष रखते हुए पृष्ठ 38 पर कहा है निचले स्तर के अधिकारियों में अंतर विरोध है इसलिए कृषि और सहकारिता व उर्वरक सचिव आपसी सहमती से मसौदा (ड्राफ्ट रूल) पर जल्द निर्णय लें। लेकिन सांठ-गांठ होने के कारण कृषि सचिव ने कोई बात नहीं मानी और बिवाद बोर्ड की बैठक में सुलझाने पर सहमति बनी लेकिन बोर्ड सदस्यों को भी धन बल से पूरी तरह से मैनेज कर लिया गया था इसलिए उन्होने सरकार का शेयर वापस करने के लिए अपनी सहमती जता दी और 19 अगस्त 2002 को संशोधित बायलॉज प्रभाव में आने पर एक बार फिर विवाद के हालात बन गए इस पर सामान्य आम सभा की बैठक 26 दिसम्बर 2002 को बुलाई गई और बायलॉज को स्वीकृत करा लिया इसके बाद इसी दिन से संशोधित बायलॉज प्रभाव में आ गया।

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इधर इफको एम.डी और कृषि सचिव व अन्य भ्रष्ट नौकरशाह सरकार का अंश धन वापस कराने की जल्दबाजी करने लगे। इसके पीछे यह माना जा रहा है अगर मीडिया या फिर सरकार में शेयर वापसी का मुद्दा उछल गया तो पूरा षडयंत्र खुल जायेगा। बायलॉज उपनियम 6-7 को इफको बोर्ड और सामान्य आम सभा ने स्वीकृत कर दिया तो एम.डी उदय शंकर ने तत्काल 28 फरवरी 2003 को उर्वरक मंत्रालय और उसके द्वारा नामित निदेशकों को पत्र लिखकर शेयर वापसी का आग्रह किया जिस पर निदेशकों ने विरोध जताते हुए कहा यह कानूनी विषय है। सरकार का शेयर वापसी करने से पहले सरकार और सहकारी समितियों का शेयर बढाकर कुल पूंजी बढा ली जाए जिससे दोनों का हित सध जाएगा लेकिन उदय शंकर ने बोर्ड की 299वीं आपात बैठक बुलाकर बल पूर्वक सरकार का शेयर वापस करते हुए तिमाही किश्त के आधार पर प्रस्ताव पारित करा लिया।

यहां चौंकाने वाली बात यह है सरकार ने अपना शेयर वापस लेने की बात तो कभी की नहीं है। सिर्फ कृषि सचिव और उदय शंकर का जो अब तक सरकारी नौकरशाह हैं दोनों ही रहे थे। प्रस्ताव पास होने के बाद सरकार से शेयर प्रमाण पत्र वापस देने का अनुरोध किया गया। यह बात आंतरिक नोटशीट के पृष्ठ 40 पर अंकित है।

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संस्था में सरकार का शेयर कम कर सहकारी समिति का शेयर बढाया जाता तो किसानों की समृद्धि होती और उनकी आय में बढोतरी भी दिखाई देती। 28 फरवरी 2003 बोर्ड प्रस्ताव के आधार पर एम.डी ने उर्वरक मंत्रालय को 1486.64 लाख रुपये का भुगतान चेक द्वारा कर दिया जो शेयर वापसी की मद में उर्वरक मंत्रालय ने स्वीकार भी कर लिया। भुगतान लेने के बाद उर्वरक मंत्रालय ने पुनः विरोध करते हुए इफको से कहा, ऐसे तो सरकार का नियंत्रण पूरी तरह से खत्म हो जाएगा, ऐसा एमएससीएस एक्ट 2002 में कहीं नहीं है और सरकार के बोर्ड निदेशक भी बार-बार 69.11 से 51 फीसदी और बाकी शेयर सहकारी समिति व किसानों को देने के लिए जोर देते रहे हैं और आपसी सहमती से बिवाद को सुलझाने की बार-बार बात कही गई है।

सवाल यह उठता है उदय शंकर जबरन सरकार का शेयर वापसी पर क्यों अडा था? उसका क्या उद्देश्य था? क्या वह किसानों की बात कर संस्था का अपहरण करना चाहता था जो उर्वरक मंत्रालय पर जबरन शेयर वापसी का निर्णय थोप रहा था। यह बात संयुक्त सचिव उर्वरक ने पृष्ठ 41 पर टिप्पणी करते हुए लिखी हैं। हस्ताक्षर के नीचे 5 मार्च 2003 दिनांक भी अंकित है। अहम् बात यह है सरकार का शेयर वापस करने के बाद मार्केट दर पर बचा धन लोकप्रहरी राजनीतिक दल, नौकरशाह और अवस्थी एंड कंपनी बांट कर खा गए।

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बरेली के पत्रकार रविंद्र सिंह द्वारा लिखी किताब इफको किसकी का 16वां पार्ट..

पिछला पार्ट.. इफको की कहानी (15) : दल बदले, नेता बदले लेकिन सहकारिता माफियाओं की लूट नहीं रूकी!

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