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सियासत

इफको की कहानी (15) : दल बदले, नेता बदले लेकिन सहकारिता माफियाओं की लूट नहीं रूकी!

रविंद्र सिंह- 

लूट से कराह उठी इफको?
इफको की स्थापना में कृषि, उर्वरक और वित्त मंत्रालय का अभूतपूर्व योगदान है, इसलिए भारत सरकार ने तीनों मंत्रालय और किसानों के परस्पर सहयोग से देश की सरकारी नियंत्रण वाली सहकारी क्षेत्र की सबसे बडी उर्वरक उत्पादन कंपनी लगाया था। उक्त मंत्रालय का कार्य भी संस्था के संचालन के लिए अलग-अलग हैं। कृषि मंत्रालय का कार्य किसानों को फसलो के लिए पोषक तत्वों की मांग कर उपलब्ध कराना है। उर्वरक मंत्रालय नीति बनाकर किसानों को गुणवत्ता युक्त उर्वरक उपलब्ध कराने के लिए अपने निगरानी में निजी और सार्वजनिक कारखाने की स्थापना कराता है। 

उर्वरक विभाग को मोटे तौर पर 5 विंग में बांटा गया है।
1. यूरिया के लिए उर्वरक नीति, परियोजना और योजना।
2. पी.एंड. के उर्वरकों के लिए उर्वरक नीति और परियोजना की योजना बनाना।
3. उर्वरक आयात, संचालन, वितरण और सामान्य प्रशासन और सतर्कता 

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4. वित्त और लेखा।
5. आर्थिक एवं सांख्यिकी।
इन विंगों का काम एक अपर सचिव एवं वित्तीय सलाहकार, 3 संयुक्त सचिव और एक आर्थिक सलाहकार द्वारा देखा जाता है। आर्थिक सलाहकार की सहायतार्थ निदेशक ई.एंड.एस हैं-
1. वित्त और लेखा
2. उर्वरक नीति और परियोजनाएं
3. आर्थिक एवं सांख्यिकी 
4. उर्वरक संचालन
5. उर्वरक नीति यूरिया और प्रशासन

कृषि के निरंतर विकास और संतुलित पोषण तत्व प्रयोग को बढावा देने के लिए आवश्यक है कि किसानों को उर्वरक सामान्य मूल्य पर उपलब्ध कराया जाए। इसी उद्देश्य से एक मात्र नियंत्रित उर्वरक यूरिया को एक समान बिकी मूल्य पर बेचा जा रहा है। फास्फेटिक उर्वरक को मांग के तहत नियंत्रण मुक्त कर दिया गया है जिससे किसानों को आसानी से मिल सके। सरकार उर्वरक पर सब्सिडी देकर सस्ते दामों पर उपलब्ध कराकर कृषि मांग को पूरा कर रहा है। चूंकि देशी और विदेशी दोनों उर्वरकों का उपभोक्ता मूल्य समान रूप से निर्धारित किया जाता है इसलिए विदेशी यूरिया और नियंत्रण मुक्त फास्फेट और पोटाश युक्त उर्वरकों के लिए भी वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है।

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भारत कृषि प्रधान देश है और कृषि अर्थ व्यवस्था की रीढ़ है, देश की कुल 60 फीसदी गांवों में व 40 फीसदी आबादी शहरों में रहती है। गांवों में सबसे ज्यादा रोजगार प्रदान करने वाला क्षेत्र आज भी कृषि है। इस क्षेत्र में अपार संभावनाए हैं, साध्य हैं, लेकिन साधन विहीन हैं? इसके पीछे मुख्य कारण किसानों का असंगठित होना और शिक्षा का अभाव है। खेतों में सब कुछ पैदा हो रहा है फिर भी किसान गरीब और तंगहाल है, कारण उसे अपनी उपज का वाजिब दाम नहीं मिल पाता है। बिचौलिया मालामाल हो रहे हैं। किसान आर्थिक तंगी से आत्महत्या कर रहे हैं। कृषि मंत्रालय समय-समय पर किसानों की समस्याओं को कम करने के लिए अध्ययन कराने के बाद कृषि नीति बनाता है जिससे अन्न दाता के जीवन में समृद्धि आ सके। 

मंत्रालय के अधीन सहकारिता विभाग भी आता है और मंत्रालय के संयुक्त सचिव सहकारिता विभाग के केंद्रीय रजिस्ट्रार होते हैं जिनका कार्य बहुराज्यीय सहकारी समिति का पंजीकरण और समय-समय पर उप विधि की निगरानी व संचालक मंडल का चुनाव कराना एवं कार्यों को परखना भी होता है। इसलिए कृषि क्षेत्र को विकसित करने की जिम्मेदारी भी मंत्रालय के अधीन है। सरकार के कृषि उर्वरक और वित्त मंत्रालय से एक-एक निदेशक को इफको बोर्ड में रखा गया था बाकी निदेशक को राज्यों के प्राइमरी सहकारी समिति से किसान सदस्यों द्वारा चुनकर भेजा जाता था। इसी आधार पर इफको में किसानों की कुल हिस्सेदारी 120 करोड यानी 30 फीसदी थी और सरकार की हिस्सेदारी 290 करोड यानी 70 फीसदी थी संस्था में इससे बडा और लोकतंत्र क्या होना था जहां सरकार और किसानों के प्रतिनिधि पटल पर बैठकर कृषि और उर्वरक नीति के निर्णय लेते थे।

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हां इतना जरूर था सरकार का नियंत्रण होने से सीबीआई, सीवीसी, ईडी का निगरानी हस्तक्षेप था और सीएजी आय-व्यय का ऑडिट करता था, सबकी अपनी-अपनी वित्तीय एवं प्रशासनिक व्यवस्थाओं का संचालन करने के लिए सीमाएं थी जिनका पालन कर संविधान की मान मर्यादाओं को रखना था। अवस्थी की नौकरशाही में मजबूत पकड थी इसलिए सरकार का कोई भी अफसर इसकी बात न मानने से पहले कई बार सोचता था। यह वह था जब संचार कांति और आरटीआई हथियार आम आदमी के हाथ में नहीं थे। सरकारी योजना और नीति पूरी तरह से पारदर्शी नहीं थी। 

उदय शंकर लंबे समय से इस फिराक में था कि एमएससीएस एक्ट में किसी तरह से परिवर्तन करा लिया जाए। फिर सरकार में अपने प्रभाव का इस्तेमाल संशोधन करने के लिए कृषि सचिव को मसौदा के निर्देश दिला दिए। इधर कृषि, उर्वक, वित्त और कानून सचिव से पहले ही सांठ-गांठ कर रखी थी जिससे मसौदा (ड्राफ्ट रूल जल्द से जल्द तैयार होकर संसद के पटल पर आ जाए। सन् 1998 में केंद्र में अटल सरकार आई, दल बदले, नेता बदले, लेकिन फीताशाही नहीं बदले और न ही उनकी कार्यशैली में बदलाव आया। इस बात का फायदा उठाते हुए उदय शंकर ने 3 जुलाई 2002 को संसद से उक्त एक्ट को मंजूरी दिलाकर कानून लागू करा लिया। भ्रष्ट तंत्र में नौकरशाह राजनैतिक इच्छा शक्ति के तहत ही नीति बनाने और कार्य करने पर जोर देते हैं। 

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26 सितंबर 2016 के पत्र संख्या 18022/25/2016-ए.एफ.सी.ए रसायन एवं उर्वरक मंत्रालय के जबाव का अध्ययन करने से जो तथ्य सामने आए है वह बेहद गंभीर हैं। व्यवस्था में लंबे समय से चले आ रहे दोष को समझकर बहुत ही सूझ-बूझ के साथ तीनों मंत्रालय को अपने कुशल प्रबंधन धन-बल) से प्रभावित किया। सहकारिता माफिया उदय शंकर ने फायदा उठाते हुए कृषि, उर्वरक और कानून मंत्रालय से ऐसी आन्तरिक रिपोर्ट (नोटशीट) तैयार करवाई है जिससे उद्देश्य की पूर्ति यानी भारत सरकार को संस्था से बाहर करने पर सीधे तौर पर किसी भी नौकरशाह पर जांच की आंच न आए? नोटशीट के गहन अध्ययन से साफ होता है इफको सीएस एक्ट में सरकार के 3 निदेशक मौजूद थे और सरकार भी मालिक इसलिए थी कि लेकिन पूरी 69.11 फीसदी शेयर था जो 290 करोड के लगभग है। इफको में कुल निवेश 420 करोड़ था ऐसे में इफको चाह कर भी बल पूर्वक सरकार का अंशधन वापस नहीं कर सकता था और सरकार से मंजूरी लेना अति आवश्यक था। लेकिन केंद्र सरकार ने उक्त एक्ट का मसौदा (ड्राफ्ट रूल) कृषि सचिव को इस शर्त के साथ तैयार करने को कहा वह उर्वरक, वित्त और मंत्रालय से परस्पर राय लेंगे।

यद्धपि इफको बोर्ड ने बायलॉज के उप नियम 6–7 में सरकार का शेयर वापस करने के लिए परिवर्तन कर दिया तो भी केंद्रीय रजिस्ट्रार को मंजूर करने से पहले तीनों मंत्रालय से राय लेना जरूरी था। क्योंकि वह जानते थे उप नियम के मंजूर होने से सरकार का अहित होने जा रहा है जिससे देश के 5.5 करोड किसान प्रभावित होंगे और जब संस्था से सरकार का नियंत्रण हट जाएगा तो धन गलत हाथों में जाकर भ्रष्टाचार के भेंट चढ सकता है। उर्वरक मंत्रालय ने आंतरिक नोटशीट में कई बार कृषि सहकारिता मंत्रालय की कार्यशैली पर सवाल तो उठाएं हैं लेकिन वे कारगर इसलिए साबित नहीं हुए तीनों मंत्रालय की मंशा कहीं न कहीं भ्रष्ट थी। जब मंत्रालयों में देश की सबसे बडी उर्वरक उत्पादन संस्था विरुद्ध साजिश रची जा रही थी तो नौकरशाह और राजनैतिक लोगों के मन मे बार-बार यह सवाल गूंज रहा था कि आज नही तो कल देश के सामने जरूर आएगा और गलत पाए जाने पर कार्रवाई भी होगी। 

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यही वजह थी नोटशीट तैयार कर एक दूसरे के प्रति महज विरोध पैदा कर दिखावा क्यों न किया जाए जिससे अपना-अपना पक्ष सही साबित करते उपनियम मंजूर करते समय रजिस्ट्रार ने इस बात पर जोर क्यों नहीं दिया हुए बचा जा सके। उर्वरक मंत्रालय ने सवाल उठाते हुए कहा है कि सरकार का शेयर वापस करने के बजाए राज्य सहकारी समिति एवं प्राइमरी सहकारी समिति का शेयर और बडा दिया जाए। इस तरह का पत्र 27 दिसंबर 2002 को संयुक्त सचिव ने इफको और कृभको प्रबंधन को लिखते हुए सुझाव दिया था। संस्थाओं द्वारा उक्त निर्देश का किसी भी तरह से पालन न कर मनमानी शुरू कर दी गई।

बरेली के पत्रकार रविंद्र सिंह द्वारा लिखी किताब इफको किसकी का 15वां पार्ट..

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पिछला पार्ट.. इफको की कहानी (14) : संसद में अवस्थी के भ्रष्टाचार पर आवाज उठी तो सरकार ने कान बंद कर लिए!

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