रविंद्र सिंह-
उदय शंकर ने किया इफको का अपहरण..
आज देश में लगभग 36666 सहकारी समिति हैं और उनके सदस्य का अंश धन जो शुरूआत में था वही 21 रूपये है इससे साफ होता है किसानों के नाम पर देश से बहुत बडा धोखा किया गया है। अगर किसानों का अंश धन बढा दिया जाता तो उनकी तरक्की की राह कब की खुल गयी होती। शेयर वापसी तो एक बहाना था इफको पर पूरी तरह से माफिया अपना साम्राज्य कायम करने की जुगत में था।
उदय शंकर ने देश का हर वह नौकरशाह और नेता जिसने इफको घोटाले पर अपनी आवाज मुखर की उसे धन और बल से वहीं दबा दिया। कई नौकरशाह ऐसे भी आए जो अपनी इच्छा शक्ति से अपहरण देख नहीं सकते थे। वे हैं उर्वरक मंत्रालय के कुछ ईमानदार नौकरशाह? अगर यह भी फाइलों में लिखा पढी नहीं करते तो इफको घोटाला देश में 14 साल से रहस्य बना हुआ है और इसी तरह हमेश रहस्य ही रहता…? भारत में राजनीति गांव, किसान और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर होती है परंतु हर बार यह मुद्दा चुनाव में आते-आते क्यों अपहृत होता रहा यह भी सोचनीय है?
उदय शंकर ने भारत सरकार का शेयर 14,86,64000, किश्तों में वापस करना प्रारंभ कर दिया। इसके बाद उर्वरक मंत्रालय ने रुपये 274,74,36000 विभाग के खाते में जमा कर दिए। यह तथ्य नोटशीट के पृष्ठ 41 के पैरा 2, 3 और 4 में अंकित हैं। शेयर वापसी के बाद उक्त शेयर सहकारिता सदस्यों को देने की बात कही गई है। अब उदय शंकर ने देखा शेयर तो वापस हो गया किसी तरह का मंत्रालय के नौकरशाह अडंगा लगाएं उससे पहले सरकार द्वारा जारी शेयर प्रमाण पत्र भी निरस्त करा दिए जाएं। इसी कड़ी में प्रमाण पत्र संख्या 18, 36, 90, 234 व 235 जो 16 अक्टूबर 1968 से 11 जनवरी 1972 तक जारी किए गए थे।
पत्रावली पर टिप्पणी करते हुए उर्वरक मंत्रालय के अधिकारी ने एफसीए द्वितीय से अनुरोध करते हुए कहा है कि शीघ्र रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया से पत्राचार कर शेयर प्रमाण पत्र निरस्त कर कार्रवाई की जाए। उर्वरक सचिव ने पृष्ठ 44 पर टिप्पणी करते हुए कहा है एम.एस.सी.एस एक्ट 2002 का परीक्षण करते हुए शेयर वापसी और प्रमाण पत्र निरस्त करने का निर्णय सही है उनके हस्ताक्षकर के नीचे 31 मार्च 2003 दिनांक भी अंकित है।
फरवरी 2003 के अंत में उर्वरक मंत्री ने नोटशीट के पृष्ठ 41 पर टिप्पणी करते हुए लिखा है जब एम.एस.सी.एस एक्ट 2002 लागू हो जाने से बायलॉज संशोधन कर दिया गया है इफको ने भारत सरकार का रुपये 14. 86 करोड शेयर वापस भी कर दिया है। ऐसे में शेयर वापसी का निर्णय किसानों के हित में सही प्रतीत होता है। उदय शंकर, कृषि सचिव व उर्वरक मंत्री ने षड्यंत्र के तहत 449 सहकारी समिति से भारत सरकार का शेयर वापसी के लिए इफको के नाम 3 अप्रैल 2003 को पत्र लिखा लिया था। यह पत्र उन समितियों से लिखाया गया था जिनके निदेशक भ्रष्टाचार में शामिल थे। सवाल यह उठता है लगभग 36666 समिति इफको की सदस्य हैं तो यह पत्र 449 समिति से ही क्यों लिखाया गया।
अगर किसानों का हित था तो सभी समिति के किसानों के बीच जाकर राय क्यों नहीं ली गई। उदय शंकर जानता था जब सरकार का शेयर वापस हो जाएगा तो स्वतः नियन्त्रण भी समाप्त हो जाएगा। सीईओ की नियुक्ति की अनुमति सरकार से लेने की जरूरत नहीं होगी। बोर्ड से सरकार के निदेशक वापस चले जाएंगे। जिस तरह से सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी है वह अब निजी हाथों में पहुंच जाएगी। इसीलिए 420 करोड़ शेयर में से भारत सरकार के शेयर 200 करोड़ से कम किसी भी हाल में एमएससीएस एक्ट के तहत भी नहीं किए जा सकते हैं।
तत्कालीन उर्वरक मंत्री ने अपने प्रभाव से कैबिनेट सचिवालय की जानकारी में यह प्रकरण देकर कह दिया शेयर वापसी का निर्णय पूरी तरह से अधिनियम के तहत और किसानों के हित में किया गया है। इसी तरह यह उर्वरक एवं रसायन मंत्रालय में आन्तरिक नोटशीट पृष्ठ 50 पर अंकित है यह निर्णय उर्वरक एवं रसायन मंत्री का है इसलिए मानना पड रहा है। इसी लिखते कम में उर्वरक सचिव ने 1 अप्रैल 2003 को कृषि सचिव को पत्र कहा है इस बात पर सहकारिता रजिस्ट्रार ध्यान क्यों नहीं दे रहे हैं। इफको कृभको की सरकारी पृष्ठ भूमि है एमएससीएस एक्ट 2002 के प्रभाव जाने से दोनों ही कंपनी में नए परिदृश्य की शुरूआत हो जाएगी। इस बात को लेकर उर्वरक और सहकारिता सचिव के बीच बहस भी हुई है जो इस प्रकार है- उर्वरक मंत्रालय ने सवाल उठाते हुए कहा है 2 सहकारी समिति से सरकार के द्वारा नामित निदेशक को हटा दिया गया है वहीं गैर सरकारी निदेशक प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।
इस पर कृषि एवं सहकारिता मंत्रालय का जबाव इस तरह है एमएससीएस एक्ट की धारा 48 के अनुसार समिति में कुल पूंजी का 51 फीसदी शेयर सरकार का होता तो 3 निदेशक सरकार द्वारा नामित कर बोर्ड में भेजे जा सकते थे लेकिन अधिनियम के तहत शेयर वापसी होने से निदेशक का भी वासप होना लाजिमी है। शेयर वापसी के खेल के पीछे उदय शंकर का उद्देश्य था प्रबंध निदेशक के पद पर रहते हुए सरकार से अनुमति लिए बगैर संस्था का निवेश देश और विदेश में किसी हाल में नहीं किया जा सकता। अब तक जो कार्य सरकार के अनुमति से किए जाते थे वह उदय शंकर स्वयं निर्णय लेकर कर सकते हैं। बहाना बोर्ड का है बोर्ड में हर बार वह लोग चुनकर लाए जाएंगे जो उसकी हां में हां मिलाएंगे।
सबसे चौकाने वाली बात यह है 60 फीसदी लोग गांवों में और 40 फीसदी लोग शहरों में रहते हैं हर न्याय पंचायत पर सहकारी समिति का मुख्यालय बनाया गया है। उक्त समिति में पंचायत के अधीन आने वाले गांवों में रहने वाले किसानों को सदस्य बनाया जाता है समिति पर नियंत्रण प्रदेश सरकार का होता है। ताकि कृषि निवेश संबन्धी जरूरतें किसानों को बिना भेद भाव के समय-समय पर उपलब्ध हो सकें। वर्तमान में भ्रष्ट तंत्र और बोर्ड के चलते अधिकतर किसानों की अपनी सहकारी समिति मृत घोषित हो चुकी हैं।
बरेली के पत्रकार रविंद्र सिंह द्वारा लिखी किताब इफको किसकी का 18वां पार्ट..
जारी है…
पिछला भाग.. इफको की कहानी (17) : 16 वर्ष पहले किए गए अपहरण पर राजनैतिक इच्छा शक्ति भी मौन रही!