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सियासत

इफको की कहानी (25) : प्रबंधन ने पत्रकार, अफसरों व नेताओं के चहेतों को रेवड़ी की तरह नौकरी बांटी हैं!

रविंद्र सिंह- 

इफको एवं चंबल फर्टिलाइजर का तुलनात्मक अध्ययन 

इफको सहकारी क्षेत्र की विश्व में पहली ऐसी संस्था है जिसका किसानों के द्वारा, किसानों के लिए सिद्धांत पर कार्य करने का प्रचार-प्रसार किया रहा है। संस्था में शत् प्रतिशत् किसानों की हिस्सेदारी बताई जाती है। यह संस्था 1967 से आज तक किसानों के अंशधन में बढोतरी नहीं कर पाई है । इफको का उत्पादन एवं विपणन भारत में अन्य, उर्वरक कंपनी चंबल फर्टिलाइजर की तुलना में कई गुना ज्यादा है, परंतु मुनाफा घटता जा रहा है।

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क्या है इसका राज जानने के लिए दोनों ही कंपनी के उत्पादन, विपणन एवं लाभ का अध्ययन करना अति आवश्यक है। 

चंबल फर्टिलाइजर का उत्पादन कम है परंतु लाभ इफको की तुलना में बहुत ज्यादा है। इफको में कुप्रबंधन के चलते तुलन पत्र में हर वर्ष हेराफेरी कर करोडों का धन दोहन किया जा रहा है। अगर इफको को कच्चा माल महंगा मिल रहा है तो चंबल फर्टिलाइजर को भी महंगा मिलता होगा। क्योंकि यह माल विदेश से आयात किया जाता है।

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वजह यह भी है इफको में 25 वर्ष से उदय शंकर अवस्थी प्रबंध निदेशक की कुर्सी पर अपहरण कर बैठे हैं, सरकारी नियंत्रण खत्म कर कंपनी के मालिक बन गए हैं। अपने बेटों अनमोल एवं अमोल अवस्थी का गरीब किसानों के पैसे से कई देशों में कॉरपोरेट साम्राज्य स्थापित कर चुके हैं। चंबल फर्टिलाइजर में कुशल प्रबंधन है और तय सीमा से अधिक के निवेश एवं विपणन का निर्णय कमेटी के द्वारा गहन समीक्षा करने के बाद लिया जाता है। 

इफको इकाई आंवला फूलपुर में भूमि दान में देने वाले किसानों को 25 वर्ष बीत जाने के बाद भी शर्तों के अनुसार नौकरी नहीं दी गई है। इसके अलावा मनमानी करते हुए प्रबंधन ने पत्रकार, नौकरशाह एव नेताओं के रिश्तेदारों को पहले आओ, पहले पाओ के आधार पर रेवडी की भांति नौकरी बांटी हैं परंतु अन्नदाता अपनी भूमि दान में देने के बाद भुखमरी के कगार पर हैं। चंबल फर्टिलाइजर ने 32वीं वार्षिक रिपोर्ट प्रस्तुत कर 31 मार्च 2017 को बनाए गए तुलन पत्र में कहा है वित्त वर्ष 2016-17 पश्चात लाभ 434.39 करोड है। उक्त कंपनी का उत्पादन इफको की तुलनद पर कर के में 1/3 है। कंपनी ने अंश धारकों को डिविडेंट भी दिया है, इसके बावजूद बाद लाभ का प्रदर्शन बहुत ही सराहनीय है। 

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इफको ने वित्त वर्ष 2016-17 में यूरिया का उत्पादन 43.27 लाख मी. टन, डीएपी 17.87 लाख मी. टन एवं एन.पी. के 41.52 लाख मी. टन रिकॉर्ड उत्पादन किया है जो 102.66 लाख मी. टन है। इस तरह यह कहना उचित होगा कि इफको ने 3 गुना ज्यादा उत्पादन कर बिकी किया है, और लाभांश कर के पश्चात मात्र रु. 684.70 करोड़ है। इस तरह कुल उत्पादन पर लाभ 684.70 करोड के बजाए लगभग 2000 करोड होना चाहिए था।

सवाल यह उठता है विश्व की न. 1 कंपनी कहलाने वाली इफको का उत्पादन सयंत्र भी आधुनिक हैं, कार्य कुशलता में किसी तरह की कमी नहीं है, कच्चा माल भी अन्य कंपनी की तुलना में विदेश से आयात किया जा रहा है, फिर मुनाफा 3 गुना कम कैसे है? यह सोचनीय विषय है। 

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अवस्थी ने जब से इफको को अपनी जेब की जागीर गैर कानूनी अवैध तरीके से बनाया है तब से राजनीतिक दल, नौकरशाह एवं मीडिया बार-बार घोटाले को पाइप लाइन से बाहर निकालने के लिए प्रयासरत् हैं, परंतु गरीब किसानों की मेहनत की कमाई को अवस्थी एंड कंपनी द्वारा खुद को सुरक्षित करने के लिए पानी की तरह बहाया जा रहा है। कहने के लिए इफको का 31 सदस्यीय निदेशक मंडल है। वह भी पूरी तरह से हमाम में नंगा हो चुका है। वरना अब तक किसी ने गरीब किसानों की इफको को बचाने के लिए आवाज क्यों नहीं उठाई है।

इफको के दस वर्षों के लाभांश का अध्ययन करने से साफ होता है कि वित्त वर्ष 2007-08 में कुल लाभांश 257. 59 करोड था अचानक ऐसा क्या हुआ कि घाटा दोगुना हो गया, बजह यह है अवस्थी एंड कंपनी की सरकार बार-बार जांच बैठा रही थी, सांसद संसद में सवाल उठा रहे थे और मीडिया में घोटाले की खबरें आने लगीं थी। फिर पूरे प्रकरण को प्रबंध करने के लिए धन की जरूरत थी और यह धन लाभांश में कटौती कर हासिल किया जा सकता था।

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अवस्थी ने अपनी सोची समझी साजिश के तहत तुलन पत्र में यह दिखाते हुए कि विदेश से कच्चा माल महंगा आयात हुआ है और गैस की आपूर्ति मांग के अनुसार नहीं हो पाई है यही बजह रही की मांग और लक्ष्य के अनुसार उत्पादन नहीं हो पाया जिसका प्रभाव सीधे तौर पर इफको के लाभांश पर पड़ा है। इसी तरह वित्त वर्ष 2008-09 में लाभांश 360.01 दिखाकर बांकी धन हडप लिया और सरकार में बैठे नेता व नौकरशाह को बांट दिया जिससे बल पूर्वक सरकार के नियंत्रण को खत्म करने की चल रही जांच को प्रभावित कराया जा सके। सन् 2009-10 में लोकसभा के चुनाव हुए जिसमें अवस्थी ने राजनीतिक दलों को मोटा चंदा दिया। अब सस्था का लाभ घटकर 401.10 करोड रह गया। 

शरद पवार के पार्टी गठबंधन की सरकार बनी और वह जानते थे कृषि मंत्रालय मलाईदार है इसलिए मई 2004 से मई 2014 तक उक्त पद पर बने रहे। चुनाव के बाद संसद सदस्य निशिकांत दुबे व अन्य ने इफको घोटाला को संसद में मुद्दा बनाया तो अवस्थी ने घबराकर अचानक वित्त वर्ष 2010-11 में लाभांश 791.49 करोड दिखा दिया। 

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हालांकि वित्त वर्ष 2011-12 अवस्थी के लिए काफी तनाव पूर्ण रहा। एक-एक कर इफको में किए गए घोटाले मीडिया और नेता देश के सामने रखने लगे तो उसने घबराकर हर किसी को पैसे के बल पर प्रबंध किया। इस तरह उक्त वर्ष में 772.18 करोड का ही लाभाश हुआ।

अब अवस्थी को लगने लगा अगर इफको घोटाला को देश के सामने आने से रोकना है तो हर किसी को मुंह मांगी रकम देना ही होगी। 2012-13 में शरद पवार से नजदीकियों का फायदा उठाते हुए कार्मिक, पेंशन एवं लोक मंत्रालय से इस आशय का ओ.एम. जारी कराया कि इफको पर अब भी भारत सरकार का नियंत्रण है। इसी ओ.एम. को आधार बनाकर बोर्ड द्वारा बायलॉज संशोधन को मुद्दा बनाकर दिल्ली उच्च न्यायलय में इफको बनाम यूनियन ऑफ इंडिया याचिका दायर कर एक्स पार्टी स्टे ले लिया। सरकार ने अवस्थी की मद्द करते हुए कोर्ट में पैरवी पर ध्यान नहीं दिया। अन्त में इस वित्त वर्ष लाभांश घटकर 728.72 करोड पर सिमट गया। 

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वित्त वर्ष 2013-14 में केंद्र सरकार की भ्रष्टाचार के मुद्दों पर काफी फजीहत हो रही थी फिर सहयोगी दल भी पूरी तरह से बेचैन थे। सत्ता से दूर भाजपा की तेज तर्रार नेत्री सांसद सुषमा स्वराज पूरे दम-खम से संसद में सरकार को बार-बार घेरकर मुश्किलें पैदा कर रही थी। ऐसे में अवस्थी भी पूरी तरह से हताश हो चुके थे।

अब अवस्थी ने भाजपा को आगामी चुनाव के लिए मुंह मांगा चंदा दिया और इफको मुद्दा न उठाने का आश्वासन लिया। इस वित्त वर्ष में इफको का शुद्ध लाभांश घटकर 318.81 करोड रह गया। भाजपा ने भी वायदे के मुताबिक इफको घोटाला चुनावी मुद्दे से दूर रखा। 

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बरेली के पत्रकार रविंद्र सिंह द्वारा लिखी किताब ‘इफको किसकी’ का 25वां पार्ट..

पिछला भाग.. इफको की कहानी (24) : भाई को कैश कर उदय शंकर देश का सबसे बड़ा सहकारिता माफिया बन गया!

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