Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

क्या सचमुच नहीं बची है नेताओं के लिए ईमानदारी की गुंजाइश

केपी सिंह-

बांदा के धुरंधर समाजवादी नेता जमुना प्रसाद बोस का 95 वर्ष की आयु में कोरोना संक्रमित होने के बाद गत दिनों निधन हो गया। उन्होंने लम्बा जीवन इस ढं़ग से जिया कि उनकी करनी और कथनी में किसी को अंतर न दिखे। इसलिए निधन पर उनकी व्यक्तित्व की चर्चा बहुत ज्यादा हुई है क्योंकि आज के समय राजनीतिज्ञों का ऐसा निस्पृह जीवन अकल्पनीय लगता है। हालांकि वे भी विरोधाभास से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाये। समाजवाद की परिभाषा में लम्पट पूंजीवाद को प्रतिष्ठा दिलाने वाले मुलायम सिंह यादव को उन्होंने अपना नेता माना था जो विडम्बना का नमूना लगता है। प्रतीत होता है कि मानवीय समाज में गिरोह बंध मानसिकता ऐसी दुखती रग है जो उदात्त जीवन जीने वालों को भी अपनी चपेट में ले लेती है। जमुना प्रसाद बोस की इस मामले में चूक इसी का नतीजा मालूम होती है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

बहरहाल जमुना प्रसाद बोस के निधन के अवसर पर उनके व्यक्तित्व की त्याग और सादगी की विशेषताओं को लेकर व्यापक चर्चायें हो रही हैं। चार बार विधायक और तीन बार मंत्री रहने के बावजूद वे अपना निजी मकान नहीं बनवा सके। इससे उनकी ईमानदारी की पराकाष्ठा का पता चलता है। हालांकि वे जिस पीढ़ी के नेता थे उसमें सार्वजनिक जीवन जीने वाले ज्यादातर राजनीति कर्मी ऐसे ही होते थे। आर्थिक मामलों में ही नहीं वे जीवन के हर पहलू में लोकलाज से डरकर रहने वाले होते थे। उनकी चर्चायें होती हैं तो जनमानस में हूक उठती है कि आज जमुना प्रसाद बोस की तरह नेता निष्कलंक जीवन का निर्वाह क्यों नहीं कर सकता। फिर नेताओं की तृष्णा के नमूने देखकर वितृष्णा होने लगती है। पर बाद में यह भी लगने लगता है कि आज के किसी नेता से ऐसी अपेक्षा करना उसके साथ ज्यादती है। नेता बदले हैं तो समाज भी तो बदला है।

सड़क पर चलने वाले राजनीतिक कार्यकर्ता को आज कौन सी पब्लिक अपना कंठहार बनायेगी। बसपा का मानक सामने है, जहां पैसे लेकर ऐसे लोगों को टिकट दिया गया था जो जनता के बीच कभी नहीं रहे थे। लेकिन धन साधन की बदौलत लोगों ने अपने लिए मरने खपने वाले खांटी नेताओं की तुलना में चुनाव में उन अनजान लोगों को वरेण्य माना। नेता नेतागीरी के लिए वैभव और ऐश्वर्य का ग्लैमर चाहिए। आज की पब्लिक तभी मान्यता देती है। नेता ईमानदारी से रहेगा और सादगी में विश्वास करेगा तो कभी आगे नहीं बढ़ पायेगा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

लेकिन सिक्के के दूसरे पहलू पर भी गौर करें। हाल की राजनीति में भाजपा इसकी उदाहरण बनकर सामने आयी है। जब खानदानी राजनीति का बोलबाला चरम पर पहुंच गया था तब भाजपा में उन लोगों की बदौलत चक्रवर्ती सफलता का कीर्तिमान स्थापित किया जिनके खानदान अनाम थे। प्रधानमंत्री से लेकर राज्यों तक में सत्तारूढ़ पार्टी में ऐसे नेता शिखर पर हैं न जिनके पास वंश प्रताप की पूंजी थी, न साधनों की चकाचैध और न ही चाकलेटी व्यक्तित्व। क्या कुदरत के इस स्वतःस्फूर्त बदलाव में कोई संदेश निहित था। पैनी दृष्टि डाली जाये तो इसमें निहित गुप्त संदेश की इबारत आसानी से डिकोड करके पढ़ी जा सकती है। संदेश यह था कि भाजपा सादगी के इस संदेश को आगे ले जाने की जिम्मेदारी स्वीकार करे।

इस जिम्मेदारी के लिए भाजपा को भ्रष्टाचार पर लगाम लगानी चाहिए थी। अपने नये नवेले सांसदों और विधायकों से लेकर निचले स्तर तक के जन प्रतिनिधियों को प्रेरित करना चाहिए था कि वे अंधाधुंध ढ़ंग से पैसा कमाने में लग जाने की बजाय स्वयं को स्वच्छ राजनीति के मानक के रूप में स्थापित करने की चेष्टायें दिखायें। ईमानदार राजनीति ही प्रशासन का भी शुद्धिकरण कर सकती है। आज अधिकारी, नेता और माफिया इतना धन बटोर रहे हैं कि अगर उनकी बेनामी संपत्ति जब्त करने का अभियान ढ़ंग से छेड़ दिया जाये तो इस कंगाली में भी जनता पर कर्ज का भारी बोझा लादने की जरूरत नहीं पड़ेगी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सत्ता में आने के पहले चुनाव अभियान में काले धन के खिलाफ जिहादी तेवर दिखाकर भाजपा ने ऐसा करने का जो आभास दिखाया था वह अंततोगत्वा पाखंड साबित हुआ। आज भाजपा भ्रष्टाचार का अंत करने की बजाय उसे पोषित करने का काम कर रही है क्योंकि संगठन और स्वच्छ कार्यशैली के आधार पर लोगों की श्रृद्धा हासिल करके चुनाव जीतने के प्रति आश्वस्त न रहकर वह महंगे प्रचार के मायावी तौर तरीकों से चुनाव में पार पाने की आश्रित नजर आ रही है जबकि उसे ऐसा कतई नहीं होना चाहिए। देश की खराब वित्तीय स्थिति के पीछे अन्य फैक्टरों के साथ-साथ सत्तारूढ़ पार्टी की यह सिद्धांतहीनता भी कहीं न कहीं जिम्मेदार है।

उत्सव धर्मिता, सुरूचिबोध, रससिक्तता आदि मनोवैज्ञानिक स्तर हैं जो सुसंस्कृत समाज बनाने से कब भ्रष्ट समाज बनाने में परिणित होने लगते हैं यह अंदाजा नहीं लग पाता है लेकिन न केवल नैतिक बल्कि पारिस्थितिक, पर्यावरणीय और अन्य जरूरी संतुलन के लिए भी अपरिग्रह, संयम और सादगी के मूल्यों में आस्था बनाये रखने की अपनी अहमियत है। जमुना प्रसाद बोस का स्मरण केवल अपनी श्रृद्धा भावना को संतृप्त करने के लिए पर्याप्त नहीं है बल्कि उनकी चर्चा से जो यह हूक उठती है कि आज जमुना प्रसाद जी जैसा व्रती जीवन सार्वजनिक जिंदगी में क्यों नहीं जिया जाता, इसे बलबती किया जाना चाहिए।

Advertisement. Scroll to continue reading.

K.P.Singh
Tulsi vihar Colony ORAI
Distt – Jalaun (U.P.)

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement