जावेद आलम-
उर्दू ख़बरनामा… पत्रकारिता को किसी ने अपमानित किया है तो वह गोदी मीडिया है! गोदी मीडिया का सवाल यह होता था कि तुम क्यों क़त्ल हुए!
विपक्षी दलों के गठबंधन ‘इंडिया’ द्वारा मीडिया के पक्षपाती एंकर्स का बहिष्कार कर दिया गया है। इस पर दैनिक ‘उर्दू टाइम्स’ ने जो संपादकीय लिखा है, उसके महत्वपूर्ण हिस्से मुलाहिज़ा फ़रमाइये।
संपादकीय के मुताबिक़ बहिष्कार के फ़ैसले ने गोदी मीडिया को लाल-पीला कर के रख दिया और आश्चर्यजनक तौर पर गोदी मीडिया से ज़्यादा भाजपा को इस फ़ैसले का बुरा लगा है और उसने इसे लोकतंत्र पर हमला तक क़रार दे दिया। संबित पात्रा ने जिस तरह बयानबाज़ी की और सवाल उठाया कि अगर इन एंकरों को कुछ होता है तो इसका ज़िम्मेदार कौन होगा? तो क्या संबित पात्रा यह चाहते हैं कि कंगना रानावत की तरह इन 14 एंकरों को भी सिक्योरिटी दी जाए? आज पात्रा पत्रकारिता की दुहाई देने में आगे-आगे हैं तो वह यह भूल रहे हैं कि पत्रकारिता को यह डगर भाजपा ने ही दिखाई है, जिसे गोदी मीडिया कहा जाने लगा।
याद रहे कि सन् 2014 में भाजपा ने बाक़ायदा ‘एनडीटीवी’ के बायकॉट का ऐलान अपने ट्वीटर अकाउंट से किया था। भगवा पार्टी का वह ट्वीट सोशल मीडिया पर एक बार फिर वायरल हो रहा है। भाजपा ने ही ‘आम आदमी पार्टी’ के सदस्यों को चैनलों पर बुलाने के संबंध में आपत्ती ली। भाजपा सरकार में पत्रकारों के साथ क्या-क्या हुआ, वह किसी से छुपा नहीं है। इसके पचासों उदाहरण दिए जा सकते हैं और पन्ने भरे जा सकते हैं; मिड डे मील के नमक से ले कर सिद्दीक़ कुप्पन तक। पत्रकारिता पर असल हमला यह था।
संपादकीय के अनुसार मीडिया का काम सरकार से सवाल पूछना होता है, लेकिन गोदी मीडिया सरकार के बजाय विपक्ष से सवाल पूछता है। देश में पत्रकारिता को अगर किसी ने वाक़ई अपमानित किया है तो वह, यही गोदी मीडिया है। लॉक डाउन के दौरान तब्लीग़ी जमाअत के ख़िलाफ़ इसने जिस तरह की मनगढ़त और झूठी ख़बरें दिखाईं, वे ख़बरें सहाफ़त (पत्रकारिता) के दामन पर बदनुमा दाग़ हैं।
‘इंडिया’ गठबंधन ने गोदी मीडिया के बायकॉट का काम अब किया है, जबकि मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने तो यह काम पहले ही कर दिया था और मुसलमानों से कहा था कि गोदी मीडिया के बहसों में हिस्सा मत लो। …चैनलों पर हिंदू-मुस्लिम चलता रहा और विपक्ष ने इस प्रकार की पत्रकारिता की रोकथाम में 9 साल लगा दिए। 9 साल का हिंदू-मुस्लिम सफ़र कोई आसान सफ़र नहीं रहा। कई बेगुनाह मारे गए। जिन मृतकों को यह नहीं पता था कि उन्हें क्यों क़त्ल किया जा रहा है, लेकिन बहस में गोदी मीडिया का सवाल यह होता था कि तुम क्यों क़त्ल हुए।
देश के घोटाले अंतरराष्ट्रीय मीडिया द्वारा उजागर किए गए लेकिन गोदी मीडिया ने उन पर बहस करना मुनासिब नहीं समझा। करोड़ों की मनी लाँड्रिंग पर बहस नहीं हुई लेकिन (पत्रकार) सिद्दीक़ कप्पन के पाँच हज़ार को मनी लाँड्रिंग क़रार दे कर ख़बरों में प्रस्तुत किया गया। किसानों ने भी अपने आंदोलन से गोदी मीडिया को दौड़ाया, यहाँ तक कि सुप्रीम कोर्ट भी गोदी मीडिया की ख़बरों (बहसों) से तंग नज़र आया। आज विपक्ष के गठबंधन ने जो फ़ैसला लिया है, उससे अवाम को शिकायत नहीं है, लेकिन सरकार को शिकायत है। (भाजपा का) आईटी सेल अपने भाई गोदी मीडिया के पक्ष में खड़ा हो गया है। आईटी सेल ने गोदी मीडिया और विपक्ष को आमने-सामने खड़ा कर दिया है, लेकिन अब इसका भी ध्यान रखना होगा कि विपक्षी गठबंधन अपने निर्णय पर कितना कामयाब होता है और गोदी मीडिया की ख़बरें अवाम कितनी सच्चाई से लेती हैं या उसे झूठ का पिटारा समझ कर बायकॉट करती हैं।