Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

पश्चिम बंगाल के तीन प्रमुख राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव!

वाराणसी : शोध छात्रा प्रोमा रे चौधरी ने शुक्रवार शाम को यहाँ आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि पश्चिम बंगाल के तीन प्रमुख राजनीतिक दलों में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव है। जहाँ तृणमूल कांग्रेस नेता केंद्रित पार्टी है और वहाँ पर केवल निचले स्तर पर ही लोकतंत्र है वहीं कैडर आधारित पार्टियाँ होने के कारण भाजपा और माकपा में आंतरिक लोकतंत्र का सिरे से अभाव है। उन्होंने कहा कि भाजपा में भी राज्य स्तर पर नेता केंद्रित पार्टी होने के कुछ लक्षण उभर रहे हैं।

अभी तक राजनीति में महिलाओं की भागीदारी को राजनीतिशास्त्र की दृष्टि से नहीं देखा गया है। हालांकि इस विषय पर कुछ प्रसिद्ध समाज वैज्ञानिकों ने शोध किया है पर उनके काम का दायरा समाजशास्त्रीय था।

Advertisement. Scroll to continue reading.

वह मानवाधिकार जन निगरानी समिति, इनफॉर्मल सेक्टर सर्विस सेंटर, नोरेक, यूनाइटेड नेशनल ट्रस्ट फण्ड फॉर टार्चर विक्टिम और सेण्टर फॉर पीस एंड डेवलपमेंट के संयुक्त तत्वाधान में मूलगादी कबीर मठ में “भारतीय राजनीतिक दलों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाना” विषय पर अपनी बात रख रही थीं। स्कूल ऑफ़ लॉ एंड गवर्नमेंट, डबलिन यूनिवर्सिटी की शोध छात्रा प्रोमा ने बताया कि उनके शोध में प. बंगाल के तीन राजनैतिक दल तृणमूल कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी शामिल है| उन्होंने कहा कि जमीनी स्तर पर महिला कार्यकर्ताओं की सक्रिय भागीदारी तो दिखती है लेकिन उच्च स्तर पर अभी भी इनकी भागीदारी नाकाफी है। उन्होंने कहा कि संसद और राज्य की विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण दिए जाने की बात तो कही जा रही है लेकिन धरातल पर इसका कहीं कोई अस्तित्व नहीं है।

उन्होंने कहा कि समाज में व्याप्त पितृसत्तात्मक सोच के कारण पंचायती स्तर पर महिलाओं की बढ़ी हुई भागीदारी भी कोई सार्थक बदलाव नहीं ला पा रही है। अपने शोध के दौरान बंगाल की ग्रामीण महिलाओं से बात करते हुए उन्होंने पाया कि चुनावों प्रचार के दौरान वे अपने पतियों की अनुमति से घर के बाहर निकलती तो हैं पर चुनाव जीतते ही सारा कामकाज उनकी तरफ से उनके पति करने लगते हैं। उन्होंने कहा कि प. बंगाल के तीन बड़े राजनीतिक दलों भाजपा, तृणमूल कांग्रेस और माकपा में आंतरिक लोकतंत्र का अभाव है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए पीवीसीएचआर के संयोजक डॉ. लेनिन रघुवंशी ने कहा कि पुरुषवादी सोच ने दुनिया में हिंसा व युद्ध को बढ़ावा दिया है, जिसका कष्ट स्त्री-पुरुष दोनों झेल रहे है| इसलिए हमारी लड़ाई पुरुषो से नहीं है बल्कि पुरुषवादी सोच से है। उन्होंने आगे कहा कि यदि हम महिलाओ को सक्रिय भागीदारी व निर्णय प्रक्रिया में शामिल नहीं करते तो हम आधी आबादी की क्षमता व ज्ञान का उपयोग देश व समाज के विकास के लिए नहीं कर पाएंगे। उन्होंने कहा कि हम ब्राह्मणवाद के खिलाफ हैं ब्राह्मण के नहीं, हम पुरुषवाद के खिलाफ हैं पुरुष के लिए। उन्होंने कहा कि स्त्री-पुरुष दो किनारे नहीं वरन उनका आपस में सह-अस्तित्व है और साथ मिलकर ही वे कोई सार्थक बदलाव ला सकते हैं।

अभी प्रोमा रे का शोध अभी पूर्ण नहीं हुआ है। वह वाराणसी में आयोजित ग्लोबल इंडिया की छठवीं नेटवर्किंग मीटिंग में भाग लेने के लिए यहाँ आई हुई हैं। विदित हो कि ग्लोबल इंडिया, यूरोपियन यूनियन द्वारा वित्तपोषित ट्रेनिंग व शोध परियोजना है, जिसमें यूरोप के 6 प्रसिद्ध विश्वविद्यालय और भारत के 6 विश्वविद्यालय शामिल हैं। इसमें नॉन अकादमिक पार्टनर के रूप में मानवाधिकार जन निगरानी समिति भी शामिल है| सुश्री प्रोमा रे के शोध को ग्लोबल इंडिया से फ़ेलोशिप मिली हुई है|

Advertisement. Scroll to continue reading.

प्रो. शाहीना रिज़वी ने कहा कि समाज में व्याप्त पितृसत्तात्मक सोच के कारण अभी तक राजनीति में महिलाओ की सक्रिय भागीदारी नहीं हो पा रही है। उन्होंने आगे कहा कि आदिम काल के बाद सत्ता पर कब्ज़ा के लिए पुरुषवादी सोच ने महिलाओ को एक सीमित दायरे में रख दिया है। कुछ महिलाओ ने इस बंधन को तोड़कर अपनी पहचान बनाई है, लेकिन अभी इस क्षेत्र में बहुत कुछ करना बाकी है|

सामाजिक कार्यकर्ता और इतिहासकार डा. मोहम्मद आरिफ ने कहा कि देश के उन राज्यों में भी राजनीति में महिलाओं की भागीदारी का स्तर चिंताजनक है, जहाँ पर शिक्षा का स्तर काफी अच्छा है। उन्होंने कहा कि जहाँ पर दलितों और आदिवासियों की आरक्षित सीटें हैं वहाँ पर भी महिलाओं की भागीदारी उनके अनुपात के हिसाब से नहीं है। तमाम राजनीतिक दलों में महिला शाखाएं हैं पर उनमें राजनीतिक परिवार की महिलाओं का ही वर्चस्व है और साधारण घरों की महिलाएं शीर्ष नेतृत्व तक नहीं पहुँच पातीं। पितृसत्तात्मक समाज होने के कारण वे राजनीतिक घराने जिनका अपनी पार्टियों पर वर्चस्व है, वहाँ पर भी महिला वर्चस्व कायम करने की स्थिति में नहीं है या उन्हें राजनीति में मुख्य भूमिका में नहीं रखा जाता। इसके बावजूद भी हालात थोड़े-बहुत अवश्य बदल रहे हैं, जिनमें महिलाएं अपने परिवार की राय से अलग हटकर वोट करती हैं। मौजूदा लोकसभा में 78 महिलाएं चुनकर आई हैं जो एक रिकार्ड है। इसी के साथ महिलाओं के मतदान करने की प्रवृत्ति में बदलाव देखने को मिल रहा है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

मानवाधिकार कार्यकर्ता और सावित्री बाई फुले महिला पंचायत की संयोजक श्रुति नागवंशी ने कहा कि हम सब जानते हैं कि सभ्यता की शुरुआत में मातृसत्ता रही है जो कि उत्तराधिकार के सवाल पर पितृसत्ता में बदली है। महिलाओं की राजनीति में भागीदारी से पुरुष को अपनी सत्ता डांवाडोल होती नजर आ रही है। महिलाओ की राजनीति में सिर्फ भीड़ के रूप में भागीदारी नहीं होनी चाहिए। निर्वाचित महिला प्रतिनिधियों को दबी-कुचली महिलाओं के हक में आवाज उठानी चाहिए।

कार्तिकेय शुक्ला, पोलिटिकल राईट एक्टिविस्ट और पब्लिक पालिसी एनालिस्ट ने कहा कि सरकार ने सामाजिक फ्रेम तो बना लिए हैं जिसकी वजह से महिलाओं के लिए योजना बनाई गयी है और उसी आधार पर जेंडर बजटिंग होती है, लेकिन अभी भी भारतीय राजनीति में महिलाओ की भागीदारी के लिए पोलिटिकल फ्रेमवर्क बनाना बहुत जरूरी है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

इस कार्यक्रम में राकेश रंजन त्रिपाठी, हरीश मिश्रा, इदरीस अंसारी, नूर फातमा, आरिफ अंसारी, रिजवाना तबस्सुम, प्रतिमा पाण्डेय, शिरीन शबाना खान, फरहत, छाया, सितारा, ज्योति, अनामिका, जैनब, वरुण, धीरज, गौरव, डा. राजीव, आनंद, अनूप, सुशिल, बलिंदर, अरविन्द, घनश्याम, राजेंद्र, ब्रिजेश, विनोद, संजय, सुमन इत्याति शामिल हुए।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement