विकास मिश्र-
अगर आपने इलाहाबाद विश्वविद्यालय में पढ़ाई की है तो आप कहीं भी चले जाएं, किसी भी पद पर पहुंच जाएं, इलाहाबाद आपके भीतर धड़कता ही रहता है। अपने भीतर धड़कते इलाहाबाद को अंजनी कुमार पांडेय ने अपनी किताब ‘इलाहाबाद ब्लूज’ में उकेरा है।
किताब की पहली ही पंक्ति है- ‘इलाहाबाद एक शहर नहीं, बल्कि एक रोमांटिक कविता है, एक जीवन शैली है, एक दर्शन है।’
अंजनी कुमार पांडेय यूं तो भारतीय राजस्व सेवा के अफसर हैं, लेकिन ये किताब बताती है कि वे गजब के लिक्खाड़ भी हैं। ‘इलाहाबाद ब्लूज’ में अंजनी कुमार पांडेय ने अपने बचपन से लेकर अब तक के संस्मरणों को पिरोया है।
मध्यांतर से पहले कहानी इलाहाबाद की चलती है। सरल-सहज भाषा में कहानी बढ़ती है तो सामने चलचित्र की तरह इलाहाबाद चलने लगता है। लेडीज सैंडल के आकार के यमुना पुल की कहानी के साथ ही इलाहाबाद में रहे और पढ़े लोग, किताब के साथ हो लेते हैं।
सिविल लाइन का इडली-डोसा, विश्वविद्यालय की आत्मा यूनिवर्सिटी रोड, बकइती का अड्डा ठाकुर की दुकान। हर इलाहाबादी का इंतजार माघ मेला। मनोकामना मंदिर के महादेव। सबसे अलबेले लेटे हुए हनुमान जी। गौतम-संगीत- दर्पण सिनेमा। लक्ष्मी टाकीज..। ‘इलाहाबाद ब्लूज’ तो जैसे इलाहाबाद की परिक्रमा करवा देता है। डीबीसी यानी दाल-भात-चोखा का जिक्र वाकई इलाहाबाद के उन दिनों में पहुंचा देता है।
इलाहाबाद में अगर किसी ने नौजवानी में ‘गुनाहों का देवता’ नहीं पढ़ी, तो समझो कुछ नहीं पढ़ा। इलाहाबाद में रहने वाला हर नौजवान खुद को ‘चंदर’ समझता है और अपनी ‘सुधा’ की तलाश करता है। अंजनी कुमार पांडेय में भी ‘चंदर’ बसता था और एक ‘सुधा’ भी थी। जिसके बारे में लिखते हैं-‘मुझे उसकी और उसे मेरी आदत पड़ गई थी। मैं उसका इंतजार था और वह मेरी चाहत। वह चमकती थी गुलाब की पंखुड़ियों की तरह और मैं फरफराता था अमलतास के फूलों जैसा।’
इलाहाबाद से कहानी पहुंचती है दिल्ली, जहां सिविल सर्विसेज की तैयारी और संघर्ष की दास्तान है। जहां पहली बार ‘कमीना’ शब्द को चरितार्थ करने वाले प्रॉपर्टी के दलाल और मकान मालिक से भेंट हुई।
मध्यांतर के बाद कहानी फ्लैश बैक में पहुंचती है। इस हिस्से में भावुक संस्मरण हैं। खास तौर पर मां की जुबानी जो बाते कही गईं, वो दिल को छू जाती हैं। इस हिस्से में पारिवारिक मूल्य, रिश्तों की गहराई से जुड़ी बातें हैं, जो बरबस बांध लेती हैं। कुछ चुहलबाजियां हैं, मसलन-‘कभी-कभी वाटरलू घर में ही शुरू हो जाता है और यहां भी नेपोलियन ही हारता है। मुझे पूरा विश्वास है कि हिंदुस्तान के हर शादीशुदा इंसान का घर वाटरलू ही है, जहां पुरुष रोज हारता ही नहीं, कभी-कभी शहीद भी हो जाता है।’
‘इलाहाबाद ब्लूज’ 132 पेज की किताब है। भाषा बहुत ही सहज है और तथ्य बहुत ही रोचक। किताब कब खत्म हो जाती है, पता ही नहीं चलता। हालांकि व्यक्तिगत रूप से मुझे लगता है कि अंजनी कुमार पांडेय ने इलाहाबाद के अपने प्रवास को थोड़ा जल्दी समेट दिया। वजह संभवतः ये भी हो कि किताब उन्हें भी रोचक लगे, जिनका इलाहाबाद से कोई वास्ता न रहा हो।
अंजनी कुमार पांडेय की इस किताब को हिंदयुग्म प्रकाशन ने प्रकाशित किया है। ये किताब एक मध्यमवर्गीय नौजवान की संघर्ष गाथा है, जिसमें तमाम रस मिलते रहते हैं। किताब रोचक तो है ही, तमाम जानकारियां भी इसमें समाहित है। जो छात्र प्रतियोगिता की परीक्षाओं की तैयारी कर रहे हैं, उनके लिए भी ये किताब बेहद उपयोगी है, क्योंकि इसके लेखक खुद जिन राहों से गुजरकर इस मुकाम पर पहुंचे हैं, वो राहें इस किताब में बाकायदा नजर आती हैं।
पुस्तक – इलाहाबाद ब्लूज
लेखक – अंजनी कुमार पांडेय
प्रकाशक – हिंदयुग्म प्रकाशन
मूल्य- 125/-
ये किताब अमेजन पर भी उपलब्ध है। मंगाने के लिए क्लिक करें- Allahabad Blues
इस किताब से संबंधित ये वीडियो देखें-
इविवि से शिक्षा-दीक्षा प्राप्त और आजतक न्यूज चैनल में वरिष्ठ पद पर कार्यरत वरिष्ठ पत्रकार विकास मिश्र की एफबी वॉल से.
विकास मिश्र की उपरोक्त एफबी पोस्ट पर किताब लेखक अंजनी कुमार पांडेय की प्रतिक्रिया देखें-
इस समीक्षा से आपने किताब की नब्ज़ पकड़ ली है। नि:संदेह मुझे यह अब तक की सबसे बेहतरीन समीक्षा लगी है। आपका बहुत बहुत आभार सर कि आपने व्यस्त होते हुये भी किताब को समय दिया। मानवीय संबंधों पर आप जो भी लिखते रहते हैं, उनसे भी यह किताब जरूर प्रभावित है, ख़ासकर मध्यांतर वाला हिस्सा। जाने अनजाने मे आप मेरी ही तरह तमाम लोगों को प्रभावित करते रहते हैं। पुन: आपका दिल से आभार….