Connect with us

Hi, what are you looking for?

सियासत

क्या चीन की तरफ झुक रहे हैं इस्लामी मुल्क?

चंद्र भूषण-

संयुक्त राष्ट्र के बाद दुनिया के दूसरे बड़े अंतरराष्ट्रीय मंच ‘ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन’ (ओआईसी) का वार्षिक आयोजन, इसके 57 सदस्य देशों के विदेशमंत्रियों का सम्मेलन इस बार पाकिस्तान में संपन्न हुआ। इस मंच का दुरुपयोग जम्मू-कश्मीर में मानवाधिकारों का मुद्दा उठाकर भारत के खिलाफ गर्जन-तर्जन में किया जाएगा, इसका अंदाजा सबको पहले से था। लिहाजा संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) के उद्योग-व्यापार प्रतिनिधियों के एक दल को ओआईसी सम्मेलन के समय ही श्रीनगर आमंत्रित किया गया था और यह दौरा राज्य की खबरों में भी खूब रहा।

Advertisement. Scroll to continue reading.

दूसरी तरफ भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने ठीक इसी समय इंडोनेशिया का कयाम किया और यह सुनिश्चित किया कि इस्लामाबाद में भारत विरोधी स्वर का एक तार्किक प्रतिवाद भी उपस्थित हो। बहरहाल, भारत के लिए चिंता की बात ओआईसी विदेशमंत्रियों के सम्मेलन में बतौर विशेष अतिथि चीनी विदेशमंत्री वांग यी की उपस्थिति रही, जिससे कुछ दूरगामी संकेत निकलते हैं। वांग यी ने सम्मेलन में पाकिस्तानी विदेशमंत्री शाह महमूद कुरैशी को ‘भाईजान’ कहकर संबोधित किया और कहा कि कश्मीर समेत पाकिस्तान की सभी ‘बुनियादी चिंताओं’ (कोर कन्सर्न्स) में उनके देश की बराबर की भागीदारी रहेगी।

पहली बार ओआईसी में चीन

Advertisement. Scroll to continue reading.

ध्यान रहे, यह पहला मौका है जब चीन के किसी प्रतिनिधि को ऑर्गनाइजेशन ऑफ इस्लामिक कोऑपरेशन के किसी आयोजन में बुलाया गया। एकबारगी किसी को लग सकता है कि इसमें चिंता की कोई बात नहीं है। इस्लामी देशों के विदेशमंत्रियों का सम्मेलन चूंकि पाकिस्तान में हो रहा है, और आयोजक देश को यह अधिकार होता है कि वह अपने मनचाहे देश के विदेशमंत्री को विशेष अतिथि के रूप में इसमें आमंत्रित कर ले। ऐसे में पाकिस्तान भाईचारे के नाम पर अगर चीन को नहीं तो और किसको बुलाएगा?

तीन साल पहले यूएई में हुए ऐसे ही सम्मेलन में अबूधाबी के शहजादे की पहल पर विशेष अतिथि के रूप में भारतीय विदेशमंत्री सुषमा स्वराज की भागीदारी हुई थी। नतीजा यह रहा कि पाकिस्तानी विदेशमंत्री ने सम्मेलन के संबंधित सत्र से बहिर्गमन किया और बाद में कश्मीर से जुड़ी भारत सरकार की एक बहुचर्चित पहल- संविधान के अनुच्छेद 370 का खात्मा- उस तरह से ओआईसी के निशान पर नहीं आ सकी, जिस तरह इसके आने की उम्मीद पाकिस्तान ने लगा रखी थी।

Advertisement. Scroll to continue reading.

सवाल यह है कि क्या वांग यी की इस बार के सम्मेलन में उपस्थिति इसके यूएई संस्करण में सुषमा स्वराज की मौजूदगी से ज्यादा मायने रखती है? क्या इसे भी ओआईसी की रवायती पीआर कसरत भर नहीं माना जाना चाहिए? गौर से देखें तो रूस पर यूक्रेन के हमले से बंटी हुई आज की दुनिया में इसके अलग मायने निकलते हैं।

इसे एक संयोग ही कहा जाएगा कि ओआईसी की पहल इजराइल में स्थित अल अक्सा मस्जिद पर 1969 में हुए एक ईसाई या यहूदी आतंकी हमले के विरोध में आयोजित इस्लामी देशों के विदेशमंत्रियों की बैठक से शुरू हुई थी, फिर भी इसकी छवि हाल-हाल तक अमेरिका के प्रति नरम रुख रखने वाले एक अंतरराष्ट्रीय संगठन की ही बनी रही। इसका कारण शायद यह है कि अधिकतर ताकतवर इस्लामी देश, चाहे वह सऊदी अरब हो या तुर्की या इजिप्ट या फिर इंडोनेशिया, अमेरिका के साथ नजदीकी रखते आए हैं।

Advertisement. Scroll to continue reading.

1979 की इस्लामी क्रांति के बाद से ईरान इसका अपवाद बना हुआ है, फिर वक्त बीतने के साथ अमेरिका विरोधी मुस्लिम देशों की सूची में इराक, सीरिया, अफगानिस्तान और मलयेशिया जैसे देशों का नाम जुड़ता गया। इधर यह बदलाव अचानक चमत्कारिक हो चला है।तुर्की अमेरिकी दबदबे वाले रणनीतिक संगठन नाटो का सदस्य देश है, फिर भी अलग-अलग मामलों में उसके अमेरिका विरोधी बयान आते रहते हैं। ऊपरी तौर पर यह सऊदी अरब से इस्लामी दुनिया का नेतृत्व छीनने का प्रयास लगता है, क्योंकि सऊदी शासक खुद को अमेरिका का ज्यादा सगा दिखाने की कोशिश में जब-तब इस्लामी भावनाओं के खिलाफ भी चले जाते रहे हैं।

अभी, यूक्रेन पर रूस की चढ़ाई के बाद, सऊदी अरब और उसके निकट कूटनीतिक सहयोगी यूएई के साथ एक ऐसा कमाल हो गया, जिसकी कुछ समय पहले तक कोई कल्पना भी नहीं कर सकता था। अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात के शासकों को यह समझाने के लिए कई बार फोन मिलाया कि वे अपना कच्चे तेल का उत्पादन बढ़ाकर कोरोना के बाद वाली दुनिया को महंगाई और मंदी के दुष्चक्र से बचा लें। लेकिन उन्होंने तो बाइडन का फोन उठाने से ही मना कर दिया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

ध्रुवीकरण में पश्चिम से दूर

दोनों शासकों के रवैये में आए इस बदलाव का कारण यह है कि अमेरिका पिछले सात-आठ वर्षों में एक स्थायी तेल आयातक देश से दुनिया का सबसे बड़ा तेल उत्पादक और शीर्ष तेल निर्यातक देशों में से एक बन गया है। अभी तक खाड़ी क्षेत्र से उसका जुड़ाव ‘विश्व व्यवस्था की जवाबदेही’ से ज्यादा इस इलाके पर उसकी तेल निर्भरता से बनता था, जो अभी खत्म हो चुकी है। लोकतांत्रिक मूल्यों की बहाली के नाम पर पश्चिमी एशिया और उत्तरी अफ्रीका के लगभग हर देश में चले ‘अरब स्प्रिंग’ आंदोलनों ने कई पुराने तानाशाहों का तख्तापलट सुनिश्चित किया, लेकिन इस समूचे इलाके को बदहाली, अराजकता और पलायन का नमूना भी बना दिया।

Advertisement. Scroll to continue reading.

यह कहना गलत होगा कि ये आंदोलन अमेरिका की शह पर चले थे। लेकिन ओबामा के अमेरिका ने शुरू में इनपर दम साधे रखा, फिर जहां-तहां इन्हें समर्थन दिया, और कुछ जगहों पर इन्हें आइसिस की तरफ मुड़ जाने दिया, ताकि इराक और सीरिया में बढ़ रहे ईरान के प्रभाव को नियंत्रित किया जा सके। घोलमट्ठा ऐसा कि यहां के शासकों का अमेरिका से दिल टूट गया। ऐसे में यह संदेह होना स्वाभाविक है कि चीनी विदेशमंत्री वांग यी को ओआईसी विदेशमंत्रियों के सम्मेलन में बुलाकर कहीं इस्लामी देश अभी के ध्रुवीकृत माहौल में खुद को अमेरिका के खिलाफ और चीन-रूस के पक्ष में झुकते हुए तो नहीं दिखाना चाहते।

ध्यान रहे, बाइडन के राष्ट्रपति बनने के बाद से ही अमेरिका ने चीन के शिनच्यांग प्रांत में उइगुर जाति के धार्मिक उत्पीड़न का मुद्दा उठा रखा है। उइगुर धर्म से मुसलमान और जाति से तुर्क हैं और चीन में कम्युनिज्म आने के पहले से खुद को अलग देश की तरह संगठित करने का मन बनाए हुए हैं। उनकी धार्मिक स्वतंत्रता के मुद्दे को लेकर अमेरिका ने चीन के खिलाफ कई व्यापारिक प्रतिबंध लगा रखे हैं और कुछ चीनी अफसरों पर रोक उसने इस्लामाबाद में चल रही ओआईसी कॉन्फ्रेंस के दौरान भी लगाई है।

Advertisement. Scroll to continue reading.

जाहिर है, उसकी इस कसरत का एक मकसद खुद को दुनिया भर में मुसलमानों के खैरख्वाह के रूप में पेश करने का रहा है। लेकिन इस्लामी मुल्कों पर चीन की ग्रिप इतनी गहरी निकली कि सम्मेलन में तुर्की के अलावा और किसी ने भी उइगुरों की तकलीफ पर एक शब्द नहीं कहा।

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement