चूंकि झूठ के पैर नहीं होते… बात तीन साल पुरानी है अगर आप अपने मस्तिष्क पर ज़रा सा जोर देंगे तो आपको भी याद आ जाएगी. 30 मई 2016 को पश्चिम उत्तर प्रदेश के कैराना के तत्कालीन सांसद हुकुम सिंह ने कैराना और कांधला से ‘हिन्दुओ के पलायन’ का मुद्दा उठाया। चूंकि झूठ के पैर नहीं होते इसलिए मीडिया ने हुकुम सिंह द्वारा उठाए गए मुद्दे को हाथो हाथ लिया। भाजपा सांसद के दावो की हकीकत जानने के लिए RSS की विचारधारा वाले दैनिक जागरण ने अपने संवाददाता अवनींद्र कमल को कैराना भेजा, अवनींद्र कमल का रिपोर्ताज 20 जून 2016 के दैनिक जागरण में ”फिलहाल कलेजा थामकर बैठा है कैराना” के शीर्षक के साथ प्रकाशित भी हो गया. उन्होंने कैराना का “कलेजा थामते’ हुए लिखा कि ”दोपहर की चिलचिलाती धूप में पानीपत रोड पर लकड़ी की गुमटी में अपने कुतुबखाने के सामने बैठे मियां मुस्तकीम मुकद्दस रमजान महीने में रोज़े से हैं। पलायन प्रकरण को लेकर उनके जेहन में खदबदाहट है। चाय की चुस्कियों में रह-रहकर चिंताएं घुल रही हैं, मुस्तकीम की।” चूंकी झूठ के पैर नहीं होते इसलिए दैनिक जागरण संवाददाता अवनींद्र कमल ने मुस्तकीम मियां को रोज़े की हालत में चाय की चुस्की लेते हुए बता दिया।
वर्तमान में कैराना के हालात कैसे हैं? यह जानने के लिए दैनिक जागरण ने इस बार अपने किसी संवाददाता के बजाय मेरठ संस्करण के संपादक जय प्रकाश पांडेय कैराना गऐ, उनकी ग्राउंड रिपोर्ट ‘लौटने लगे परिंदे’ के शीर्षक के साथ 13 मार्च के दैनिक जागरण में प्रकाशित हुई है। चूंकि झूठ के पैर नहीं होते यह बताने के लिऐ जय प्रकाश पांडेय की रिपोर्ट का इंट्रो ही काफी है। इंट्रो मे जय प्रकाश पांडेय बताते हैं कि “2014 के लोकसभा चुनाव में कैराना पलायन एक बड़ा मुद्दा था, वहां से चली हवा का असर पूरे प्रदेश के चुनाव पर नजर आया था। संपादक महोदय आगे बताते हैं कि उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी का शासन था. और वह तारीख थी 30 मई 2016 जब तत्कालीन सांसद हुकुम सिंह ने मीडिया के सामने यह बात रखी कि कैराना से 346 जबकि कांधला से 63 परिवार पलायन कर चुके हैं. चूंकि झूठ के पैर नहीं होते इसलिए संपादक महोदय को कौन बताए कि कराना पलायन का तथाकथित मुद्दा 2014 नहीं बल्कि 2016 में सामने आया था? जय प्रकाश पांडेय का मानना है की कैराना में मुकीम काला गैंग को तत्कालीन सरकार का संरक्षण प्राप्त था लेकिन वे यह नहीं बताते कि तत्कालीन सरकार ने ही उसे गिरफ्तार किया था जो आज तक जेल में है और जहां तक मुकीम काला गैंग के अपराधों का सवाल है तो संपादक महोदय की जानकारी के लिऐ बता दे कि इस गैंग पर हत्या के लगभग 22 मुकदमे दर्ज हैं जिनमें से 17 मुकदमे मुस्लिम समाज के लोगों की हत्या के हैं और पांच हिंदू समाज से हैं।
क्योंकि झूठ के पैर नहीं होते इसलिए जय प्रकाश पांडे बताते हैं कि कैराना पलायन से चली हवा का असर पूरे प्रदेश में नजर आया था लेकिन वह नहीं बताते की 2017 के विधानसभा चुनाव में कैराना पलायन का मुद्दा उठाने वाले हुकुम सिंह अपनी बेटी मृगांका सिंह को कैराना से ही विधानसभा का चुनाव नहीं जीता पाए थे, और 2018 में हुकुम सिंह के दुनिया से ‘पलायन’ कर जाने के बाद मृगांका सिंह पिता की छवि और पिता के देहांत की सहानुभूति मिलने के बावजूद लोकसभा का उप चुनाव नहीं जीत पाई थी। चूंकि झूठ के पैर नहीं होते इसलिए संपादक महोदय बताते हैं कि कैराना में देर रात तक बाजार सजे हुए हैं, दुकानें खुली हुई है, रात के 9 बजे चांट की दुकानें सजी हुई हैं। संपादक महोदय चाट शाम में खाई जाती है रात के 9 बजे नहीं, क्या आप इतना भी नही जानते?
आप नहीं जानते कि कैराना मुस्लिम बहुल कस्बा है और मुस्लिम इलाकों में देर रात तक खाने पीने की दुकानें खुली रहती हैं, हालांकि यह जानने के लिऐ कैराना जाने की जरूरत नहीं थी बल्कि मेरठ के घंटाघर इमलियान, मछेरान जैसे मुस्लिम बाहुल्य इलाक़ो में घूम आते तो अंदाजा हो जाता। चूंकि झूठ के पैर नहीं होते इसलिऐ जय प्रकाश पांडेय अपने पाठकों को गुमराह करने की कोशिश करते हुए बताते हैं कि कैराना में लगने वाले पेट्रोल पंप के लिए 200 से ज्यादा आवेदन किए गए हैं। सवाल यही से पैदा होता है क्या 200 पेट्रोल पंप कैराना में लगाए जाएंगे ? आवेदन करना और पेट्रोल पंप लगाने का अधिकार मिलना दोनों अलग अलग प्रक्रिया हैं।
क्या संपादक महोदय इतना भी नहीं जानते? चूंकि झूठ के पैर नहीं होते इसलिऐ बताते चलें कि पहले कैराना से तीन किलोमीटर दूर यमुना पुल पार करते ही हरियाणा मे पेट्रोल और डीजल तीन रुपए लीटर सस्ता मिलता था, इसीलिए कैराना मे पहले से लगा पेट्रोल पंप भी बिक्री ना होने की वजह से दो दशक पहले राजनाथ सिंह की भाजपा सरकार के दौरान ही बंद हो चुका था. अब नई तेल नीती की वजह उत्तर प्रदेश और हरियाणा मे तेल का मूल्य समान होने की वजह से लोग आवेदन कर रहे हैं। चूंकि झूठ के पैर नही होते इसलिऐ जयप्रकाश पांडेय लिख देते हैं की कैराना का सिनेमा हॉल अभी चार महीने पहले फिर से चालू हो गया है। सवाल यह है कि यह सिनेमा हाल बंद ही कब हुआ था?
चूंकि झूठ के पैर नहीं होते इसलिऐ इस ‘हवा हवाई’ रिपोर्ट को ‘ग्राऊंड रिपोर्ट’ बताकर प्रकाशित किया गया, और पाठकों को गुमराह करते हुऐ यह बताने की कोशिश कि सपा सरकार में कैराना मे ‘जंगलराज’ था लेकिन भाजपा सरकार में ‘कानून का राज’ है। अगर इस ग्राऊंड रिपोर्ट के हवा हवाई तथ्यों की बात करें तो यह रिपोर्ट जैसे जैसे आगे बढती है वैसे वैसे अपने तथ्य को खुद ही गलत साबित कर देती है। इंट्रो कहता है कि 2014 के लोकसभा चुनाव में पलायन का मुद्दे ने चुनावी फिज़ा को बदल डाला, लेकिन बाडी कहती है कि 30 मई 2016 को हुकुम सिंह ने कैराना के 346 और कांधला के 63 परिवारों की सूची जारी करके बताया कि ये परिवार पलायन कर चुके हैं।
चूंकि झूठ के पैर नहीं होते तभी तो दैनिक जागरण चार लोगों के वक्तव्य के आधार पर यह दावा कर देता है कि कैराना में अब सब कुछ सही है। चूंकि झूठ के पैर नहीं होते इसलिए दैनिक जागरण के जय प्रकाश पांडेय अपने पाठकों को यह भी नहीं बताते की कैराना पलायन का मुद्दा उठाने वाले वरिष्ठ भाजपा नेता हुकुम सिंह की बेटी जब 2017 में कैराना विधानसभा से चुनाव हार गईं थीं तब हुकुम सिंह ने ‘कैराना पलायन’ पर माफी भी मांगी थी जिसका वीडियो यूट्यूब पर मौजूद है। चूंकि झूठ के पैर नही होते …..इसीलिए संपादक जैसी संस्था ने ‘लौटने लगे परिंदे’ की ‘महत्वकांक्षा’ के चलते पत्रकारिता को ही ‘पलायन’ करा दिया। मंटो ने ठीक ही कहा था ‘वे लोग बेवकूफ हैं जो अख़बार पढते हैं, और वे उनसे भी बङे बेवकूफ हैं जो उन ख़बरों पर यक़ीन करते हैं। लेकिन मैं बेवकूफ हूं पर बङा वाला नहीं क्योंकि मैं अख़बार तो पढता हूं मगर ख़बरों पर यक़ीन करने से पहले पुष्टी कर लेता हूं। याद रखिऐगा चूंकि झूठ के पैर नही होते….
लेखक वसीम अकरम त्यागी युवा पत्रकर हैं. उनसे संपर्क [email protected] के जरिए किया जा सकता है.