Sanjaya Kumar Singh : प्रशांत कनौजिया की पत्रकारिता से असहमत होना एक बात है। उसके लिखे को आपत्तिजनक मानना दूसरी और मुख्यमंत्री का बचाव करना इन सबसे अलग तीसरी बात है। तीनों तीन अलग काम है। आप अपनी पसंद के अनुसार कीजिए – दूसरों को बेवकूफ न समझिए, न बनाइए। पत्रकारिता में घुस आए घटिया लोग जब आम आदमी का मीडिया ट्रायल से लेकर अवमानना करते हैं तो कोई संगठन नहीं बोलता। आम आदमी के पास कोई चारा नहीं है। आप अगर सत्ता की मनमानी के खिलाफ नहीं बोल सकते, साथी पत्रकार के पक्ष में नहीं बोल सकते, पत्रकारों की मनमानी के खिलाफ नहीं बोल सकते तो अभी बोलने की जरूरत कहां है। सत्ता के पक्ष में बोलिए ना बोलिए, अपने लिए बोलिए। की फरक पैन्दा।
Ashok Das : प्रशांत कनौजिया की गिरफ्तारी के बाद जिस तरह से पत्रकारों के बीच फूट पड़ी है उसको ठीक से ऑब्जर्ब करने की जरूरत है। प्रेस क्लब के एक पदाधिकारी पत्रकार ने तो खुद को पूरे मामले से अलग कर लिया है। खबर है कि वो ‘सीएम साहेब’ के क्षेत्र से आते हैं और साहेब से उनका ‘करीबी’ रिश्ता है। एक वरिष्ठ पत्रकार ने तो प्रशांत का समर्थन करने वालों से ही 10 सवाल पूछ लिया है। ये भी कहा जा रहा है कि प्रशांत ने जो फेसबुक पर लिखा है, ऐसे लिखने वाले को पत्रकार नहीं कहना चाहिए। प्रशांत को एक विचारधारा से जुड़ा हुआ बताया जा रहा है और कहा जा रहा है कि प्रशांत जैसे लोग खुन्नस निकाल रहे हैं।
खास बात ये है कि उन्होंने ये सवाल पूछते हुए प्रशांत को बार-बार सिर्फ “कनौजिया” लिख कर संबोधित किया है। आखिर क्या वजह है कि वो वरिष्ठ पत्रकार महोदय पत्रकार प्रशांत को उसके सरनेम से संबोधित कर रहे हैं जो उसकी जातीय अस्मिता को भी बताता है। उनके लिखे पर जिन लोगों के कमेंट प्रशांत के खिलाफ आये हैं, उन सभी में एक “सामान्यता” है। आप उस ‘सामान्यता’ को समझ सकते हैं। हालांकि प्रशांत के समर्थन में काफी वरिष्ठ पत्रकार भी हैं, लेकिन ये घटना कई सवाल खड़ा करती है।
सवाल यह है कि क्या जो पत्रकार प्रशांत पर किसी खास ‘विचारधारा’ से जुड़ने का आरोप लगा रहे हैं क्या उनका किसी ‘विचारधारा’ से संबंध नहीं है? दूसरा सवाल, जिस तरह सोशल मीडिया का प्रभाव बढ़ा है और उसने सो कॉल्ड मेन स्ट्रीम मीडिया को चुनौती दिया है, उससे कई पत्रकार खुन्नस खाए हुए हैं। वो ये बात पचा नहीं पा रहे हैं कि कोई नया पत्रकार अपने बूते बिना किसी संस्थान की मदद के कैसे अपना मकाम बना रहे हैं और अपनी बात कह पा रहे हैं।
क्या Bhanwar Meghwanshi और H L Dusadh Dusadh जैसे लोग जो लगातार लिख रहे हैं, वो पत्रकारिता नहीं है? तीसरा सवाल, क्या ये मान लिया जाए कि जो लोग बड़े मीडिया संस्थानों में बैठे हुए हैं सिर्फ वही बेहतर कर रहे हैं, क्या उसी को मानक मान लिया जाये, और जो पत्रकार बिना किसी सत्ता और धनाढ्यों का सहारा लिए यूट्यूब या वेबसाइट के जरिये बड़ा काम कर रहे हैं क्या उनके लिखे-पढ़े को नकार देना चाहिए? आखिर यह कौन तय करेगा?
क्या वरिष्ठ पत्रकार Urmilesh Urmil सर, आशुतोष जी, अभिसार शर्मा, Dilip C Mandal या फिर पुण्य प्रसून वाजपेयी जब तक बड़े संस्थानों में थे और संपादक थे तो उनका लिखा ठीक था, लेकिन क्या जब वो यूट्यूब और वेबसाइट में लिख रहे हैं तो क्या वो “पत्रकारिता’ की कसौटी पर खरा नहीं है? भड़ास फ़ॉर मीडिया के संस्थापक Yashwant Singh जब तक बड़े मीडिया संस्थानों में थे तो वो पत्रकार थे लेकिन जब वो एक अनोखा काम कर रहे हैं तो क्या अब उनको पत्रकार न माना जाए? जाहिर है कि ये सब बड़ा योगदान दे रहे हैं।
पत्रकारिता कंटेंट का खेल है, जिसने बेहतर लिखा है उसको पढ़ा ही जाएगा, चाहे वो किसी पत्र-पत्रिका में लिखे, किसी चैनल पर बोले या फिर वेबसाइट या यूट्यूब पर बोले और लिखे। ये हक सिर्फ पाठक का है कि वो किसको पढ़ना और देखना-सुनना चाहते हैं। पाठक ही ये तय करेगा कि कौन कैसा लिख रहा है। कोई “पत्रकार” सिर्फ अपने को और ‘अपने जैसों’ को ही पत्रकार माने और बाकी सबको नकार दे ये क्या बात हुई? प्रशांत एक पत्रकार है और उसको कमतर समझना सिर्फ अहम है और कुछ नहीं। अगर बड़े पत्रकारों ने पत्रकारिता को संभाला होता और इसकी गरिमा को बनाये रखा होता तो आज पत्रकारिता की विश्वसनीयता पर इतना बड़ा संकट नहीं होता।
Jai Prakash Singh : वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह के सवालों का जवाब… वरिष्ठ पत्रकार प्रदीप सिंह ने गिरफ्तार पत्रकार प्रशांत कनौजिया के समर्थन में खड़े पत्रकारों से 10 सवाल पूछा है.. उनके स वाल और मेरे जवाब पढ़ें-
सवाल 1) कनौजिया की ट्वीट देखने के बाद क्या उसे पत्रकार कहा जा सकता है?
जवाब 1) क्या अर्णव गोस्वामी, सुधीर चौधरी जैसों को पत्रकार कहा जा सकता है? क्या आरोप लगाने वाली महिला के विरुद्ध कोई कार्रवाई हुई, नहीं तो क्यों? क्या यह मामला जबरा मारे रोवे न दे का नहीं है?
सवाल 2) क्या कनौजिया के समर्थन में खड़े होने वाले लोग यह मानते हैं कि वाजिब प्रतिबंध की यह संवैधानिक व्यवस्था पत्रकारों पर लागू नहीं होती?
जवाब 2) अभी तक आधिकारिक वर्जन क्यों नहीं दिया गया, नहीं तो क्यों? यदि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को लगा कि ट्वीट अपमानजनक हैं तो उन्हें एक केस फ़ाइल करना चाहिए था। अभियुक्त को बुलाया जाता और शायद उसे सज़ा होती। लेकिन उसके पहले आरोप लगाने वाली महिला पर कार्रवाई करनी चाहिए थी जैसा मी टू के मामलों में किया जा रहा है? क्या इससे आप असहमत हैं?
सवाल 3) उसे बचाने के लिए अभिव्यक्ति की आजादी की दुहाई दी जा रही है। जिसकी प्रतिष्ठा पर हमला हुआ है क्या उसका कोई संवैधानिक अधिकार नहीं है?
जवाब 3) क्या हमारे देश में संविधान और कानून का शासन है?
सवाल 4) आखिर इस बात पर विचार होगा कि नहीं कि कनौजिया ने जो किया है वह कानून की नजर में सही है या गलत?
जवाब 4) क्या सरकार में बैठे लोग कानून से ऊपर हैं?
सवाल 5) वह गलत है तो कानून को अपना काम क्यों नहीं करना चाहिए?
जवाब 5) क्या आपने देखा कि उच्चतम न्यायालय ने प्रशांत की गिरफ्तारी को संविधानेत्तर, गैर कानूनी, सत्ता और ताकत का बेजा इस्तेमाल माना है और यूपी पुलिस को फटकार लगाई है? उच्चतम न्यायालय ने ऐसा रुख क्यों अख्तियार किया?
सवाल 6) सवाल यह भी है कि जब इस तरह के ट्वीट, खबरें लिखी और दिखाई जाती हैं, तब वे कहां होते हैं जो आज कनौजिया के समर्थन में खड़े हैं?
जवाब 6) आपने आजतक क्या कभी फेक न्यूज़ प्लांट करने वालों पर सोशल मीडिया में कभी सवाल उठाया? मसलन पंडित जवाहर लाल नेहरु के पितामह का नाम गयासुद्दीन गाजी बताये जाने पर कभी सवाल उठाया? कभी मीडिया के भक्तिकाल पर सवाल उठाया? आप जिन जिन चैनलों के बहस में भाग लेते हैं क्या वे पूर्वाग्रह से ग्रस्त नहीं हैं?
सवाल 7) क्या ऐसे संगठनों की यह जिम्मेदारी नहीं है कि इस प्रवृत्ति पर रोक लगाने के लिए कोई सांस्थानिक व्यवस्था करें?
जवाब 7) बकौल आपके प्रदीप कनोजिया पत्रकार खलने के लायक नहीं है, फिर भी क्या आप उसे देश का एक सामान्य नागरिक मानते हैं या नहीं?
सवाल 8) कनौजिया जैसे व्यक्ति के बचाव में खड़े होने वाले क्या संदेश दे रहे हैं?
जवाब 8) एक सामान्य नागरिक की गिरफ्तारी के लिए उच्चतम न्यायालय ने डीके बसु मामले में व्यापक दिशानिर्देश दिए हैं. क्या क्या प्रशांत की गिरफ्तारी में डीके बसु के निर्देशों का पालन हुआ है?
सवाल 9) इन संगठनों के दबाव से कनौजिया बच गया तो ऐसे दूसरे लोगों का जो हौसला बढ़ेगा उसके लिए जिम्मेदार कौन होगा?
जवाब 9) आपने कहा है कि वह गलत है तो कानून को अपना काम क्यों नहीं करना चाहिए लेकिन कानून को अपने प्रावधानों के अनुसार काम करना चाहिए. क्या आप जानते हैं कि पुलिस ने आईपीसी की धारा 500 के तहत प्रशांत को गिरफ्तार किया है और कानून के प्रावधान के अनुसार पुलिस को यह अधिकार नहीं है कि वह इस धारा के तहत किसी भी नागरिक को बिना कोर्ट के आदेश के गिरफ्तार कर सके?क्या आप जानते हैं कि मानहानि का मामला ऐसा मसला नहीं है जिसमें पुलिस स्वतः संज्ञान ले सके?यह भी उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है?
सवाल 10) कानूनी कार्रवाई का विरोध करने से पहले क्या अपने अंदर झांकने की जरूरत नहीं है?
जवाब 10) किसी पर सवाल उठाने से पहले अपने दामन में भी जरुर झांकना चाहिए क्यों कि बात निकलती है तो बहुत दूर तक जाती है. क्या आप जानते हैं कि धारा 66 आईटी एक्ट हैकिंग जैसे मामलों में लगाई जाती है न कि किसी ट्वीट पर?
वरिष्ठ पत्रकार संजय कुमार सिंह, अशोक दास और जेपी सिंह की एफबी वॉल से.