जवान बने रहने की तरकीब!

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ओशो-

बूढ़ा होने का राज है: जीवन पर ध्यान मत रखो, मौत पर ध्यान रखो। यह पहला सीक्रेट है। जिंदगी की खोज मत करना, खोज करना मोक्ष की। इस पृथ्वी की फिक्र मत करना, फिक्र करना परलोक की, स्वर्ग की। यह बूढ़ा होने का पहला सीक्रेट है। जिन—जिन को बूढ़ा होना हो, इसे नोट कर लें। कभी जिंदगी की तरफ मत देखना। अगर फूल खिल रहा हो तो तुम खिलते फूल की तरफ मत देखना, तुम बैठकर सोचना कि जल्द ही यह मुरझा जायेगा। यह बूढ़े होने की तरकीब है।

अगर एक गुलाब के पौधे के पास खड़े हों तो फूलों की गिनती मत करना, कांटों की गिनती करना की सब असार है, कांटे ही कांटे पैदा होते हैं। एक फूल खिलता है, मुश्किल से हजार कांटों में। हजार कांटों की गिनती कर लेना। उससे जिंदगी असार सिद्ध करने में बड़ी आसानी मिलेगी।

अगर दिन और रात को देखो, तो कभी मत देखना कि दो दिन के बीच एक रात है। हमेशा ऐसा देखना कि दो रातों के बीच में एक छोटा—सा दिन है।

मैंने सुना है कि न्यूयार्क की सौवीं मंजिल से एक आदमी गिर रहा था। जब वह पचासवीं मंजिल के पास से गुजर रहा था, तो खिड़की से एक आदमी ने चिल्लाकर उससे पूछा कि दोस्त क्या हाल है? उसने कहा कि अभी तक तो सब ठीक है। यह आदमी गड़बड़ आदमी है। यह आदमी जवान होने का ढंग जानता है।

लेकिन यह ठीक नहीं है। उस आदमी ने कहा, अभी तक सब ठीक है, अभी जमीन तक पहुंचे नहीं हैं, जब पहुंचेंगे तब देखेंगे। अभी पचासवीं खिड़की तक सब ठीक चल रहा है, एकदम ओके। यह आदमी जवान होने की तरकीब जानता है।

बूढे का जिंदगी को देखने का ढंग है–दुखद को देखना, अंधेरे को देखना, मौत को देखना, कांटे को देखना।

हिंदुस्तान हजारों साल से दुखद को देख रहा है। जन्म भी दुख है, जीवन भी दुख है, मरण भी दुख है! प्रियजन का बिछुड़ना दुख है, अप्रियजन का मिलना दुख है, सब दुख है! मां के पेट का दुख झेलो, फिर जन्म का दुख झेलो, फिर बड़े होने का दुख झेलो, फिर जिंदगी में गृहस्थी के चक्कर झेलो, फिर बुढ़ापे की बिमारियां झेलो, फिर मौत झेलो, फिर जलने की आस में अंतिम पीड़ा झेलो! ऐसे जीवन की एक दुख की लम्बी कथा है। बूढ़ा होना हो तो इसका स्मरण बने रहना चाहिए।

इस जीवन को एक वेटिंग रूम समझना चाहिए।

जैसे बड़ौदा के स्टेशन पर एक वेटिग रूम हो और आप उसमें कुछ देर बैठते हैं। वहीं छिलके फेंक रहे हैं, वहीं पान थूक रहे हैं, क्योंकि हमको क्या करना है, अभी थोड़ी देर में हमारी ट्रेन आयेगी और फिर हम चले जायेंगे। तुमसे पहले जो बैठा था, वह भी वेटिंग रूम के साथ यही सदव्यवहार कर रहा था, तुम भी वही सदव्यवहार करो, तुम्हारे बाद वाला भी वही करेगा।

वेटिंग रूम गंदगी का एक घर बन जायेगा, क्योंकि किसी को क्या मतलब है। हमको थोड़ी देर रुकना है तो आंख बंद करके, राम-राम जप के गुजार देंगे। अभी ट्रेन आती होगी, हम चले जायेंगे।

जिंदगी के साथ जिन लोगों की आंखें मौत के पार लगी हैं, उनका जिंदगी के साथ व्यवहार, वेटिंग रूम के व्यवहार सा है। वे कहते हैं, क्षण भर की तो जिंदगी है; अभी चले जाना है, हमें क्या करना है। हिंदुस्तान के संत-महात्मा यही समझा रहे हैं लोगों को, क्षणभंगुर है जिंदगी, इसके मायामोह में मत पड़ना। ध्यान आगे रखना, मौत के बाद। इस छाया में सारा देश बूढा हो गया है।

अगर जवान होना है तो जिंदगी को देखना, मौत को लात मार देना। मौत से क्या प्रयोजन है? जब तक जिंदा हैं, तब तक जिंदा हैं, तब तक मौत नहीं है। सुकरात मर रहा था। ठीक मरते वक्त जब उसके लिए बाहर जहर घोला जा रहा था। वह जहर घोलने वाला धीरे-धीरे घोल रहा है। वह सोचता है, जितने देर सुकरात और जिंदा रह ले, अच्छा है। जितनी देर लग जाय।

वक्त हो गया है, जहर आना चाहिए। सुकरात उठकर बाहर जाता है और पूछता है मित्र, कितनी देर और?

उस आदमी ने कहा, तुम पागल हो गये हो सुकरात? मैं देर लगा रहा हूं इसलिए कि थोड़ी देर तुम और रह लो, थोड़ी देर सांस तुम्हारे भीतर और आ जाय, थोड़ी देर सूरज की रोशनी और देख लो, थोड़ी देर और मित्रों की आंखों को में झांक लो, बस थोड़ी देर और। नदी भी समुद्र में गिरने के पहले पीछे लौटकर देखती है। तुम थोड़ी देर लौटकर देख लो। तुम जल्दी क्यों कर रहे हो? तुम इतनी उतावली क्यों किये जा रहे हो?

सुकरात ने कहा, मैं जल्दी क्यों किये जा रहा हूं? मेरे प्राण तड़पे जा रहे हैं मौत को जानने के लिए। नयी चीज को जानने की मेरी हमेशा से इच्छा रही है। मेरे लिए मौत बहुत नयी चीज है। सोचता हूं, देखूं क्या चीज है!

यह आदमी जवान है ! मौत को भी देखने के लिए इसकी आतुरता है। मित्र कहने लगा कि थोड़ी देर और जी लो।

सुकरात ने कहा, जब तक मैं जिन्दा हूं, मैं यह देखना चाहता हूं कि जहर पीने से मरता हूं कि जिंदा रहता हूं। लोगों ने कहा कि अगर मर गये तो?

उसने कहा कि यदि मर ही गये तो फिक्र ही खत्म हो गयी, चिंता का कोई कारण न रहा। और जब तक जिंदा हूं जिंदा हूं।। जब मर ही गये, तब चिंता की कोई बात नहीं। लेकिन जब तक मैं जिंदा हूं, जिंदा हूं, तब तक मैं मरा हुआ नहीं हूं और पहले से क्यों मर जाऊं? मित्र सब डरे हुए बैठे हैं पास, रो रहे हैं, जहर की घबराहट आ रही है।

उधर सुकरात प्रसन्न है! वह कहता है, जब तक मैं जिन्दा हूं तब तक मैं जिंदा हूं, तब तक जिंदगी को जानूं। और सोचता हूं कि शायद मौत भी जिंदगी में एक घटना है।

सुकरात को बूढ़ा नहीं किया जा सकता। मौत सामने खड़ी हो जाय तो भी यह बूढ़ा नहीं होता।

ओशो : युवक कौन

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