सामूहिक दुष्कर्म के आरोपी पूर्व कैबिनेट मंत्री गायत्री प्रसाद प्रजापति को जमानत देने वाले पाक्सो अदालत के अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश ओम प्रकाश मिश्र को हाईकोर्ट की प्रशासनिक समिति ने निलंबित कर दिया था। उनके अधिकार भी सीज कर दिए गए थे। ओम प्रकाश 30 अप्रैल 2017 को सेवानिवृत्त होने जा रहे थे। मिश्रा के खिलाफ विभागीय जांच के भी आदेश दिए गये थे। लेकिन इसके साथ ही लखनऊ के जिला जज राजेन्द्र सिंह को भी बिना किसी गुनाह के इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दंडित कर दिया और उच्चतम न्यायालय के कालेजियम द्वारा प्रेषित जज की नियुक्ति की सिफारिश को रुकवा दिया।
गायत्री को मिली जमानत के खिलाफ सरकार की अपील पर सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश जस्टिस दिलीप बाबा साहेब भोसले ने ओमप्रकाश मिश्रा के खिलाफ सख्त टिप्पणियां की थीं। मुख्य न्यायाधीश ने कहा था कि गायत्री के मामले में खुद सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बाद एफआईआर दर्ज हुई थी, जिसके बाद उसकी गिरफ्तारी हुई। जांच के दौरान एक बेहद गंभीर मामले में आरोपी को जमानत पर रिहा करने का आदेश जल्दबाजी में दिया गया निर्णय है। पुलिस और सरकारी वकील को अपना पक्ष रखने का मौका भी नहीं मिल सका। हाईकोर्ट के निर्णय और जमानत देने में की गई जल्दबाजी को देखते हुए मिश्रा को निलंबित किया गया और उन्हें चार्जशीट दिया गया।
दरअसल गायत्री प्रजापति की जमानत अर्जी 24 अप्रैल को दाखिल की गई थी। स्पेशल जज ने उस पर अगले ही दिन सुनवाई की तारीख लगा दी। 25 अप्रैल को विवेचक ने पूरी केस डायरी पेश करने के लिए समय मांगा लेकिन स्पेशल जज ने अर्जी खारिज करते हुए कहा कि एडीजीसी उपलब्ध केस डायरी से बहस के लिए तैयार हैं। जबकि उनकी ओर से भी मामले में समुचित निर्देश लेने के लिए तीन दिन का समय मांगा गया था।
जिला जज राजेन्द्र सिंह पर साजिशन आरोप लगा दिया गया कि उन्होंने सत्र न्यायाधीश लक्ष्मी कान्त राठौर को पाक्सो कोर्ट से हटाकर पाक्सो कोर्ट में जज ओमप्रकाश मिश्रा की तैनाती 7 अप्रैल 2017 को कर दी जबकि जज मिश्रा की सत्यनिष्ठा संदिग्ध थी। इसमें आईबी ने भी पता नहीं किन कारणों से खलनायक की भूमिका निभाई।
पाक्सो न्यायालय के सम्बन्ध में राज्य सरकार और उच्च न्यायायालय के नोटिफिकेशन के आधार पर प्रत्येक जिले में स्थित अपर जिला जज, क्रम संख्या-8 विषेश जजों के न्यायालयों जैसे पी0सी0 एकट, सी0बी0आई0 कोर्ट, एफ0टी0सी0, आदि को छोड़ते हुए, जजों को नियुक्त किया जाता है और उनके न होने पर वरिष्ठतम अपर जिला जज को इस न्यायालय का पीठासीन अधिकारी नियुक्त किया जाता है। इस अधिनियम की धारा 35 के अनुसार मामले का संज्ञान लेने के 30 दिन के अन्दर बच्चे/बच्ची का साक्ष्य अंकित करना होता है और विचारण यथासंभव एक वर्ष के अन्दर करना होता है। एक्ट का उद्देश्य है बालकों की सुकुमार अवस्था का दुरूपयोग न हो और बालकों और अल्पवय व्यक्तियों की शोषण से रक्षा की जाए। इससे सम्बन्धित नोटिफिकेशन की अवज्ञा नहीं की जा सकती थी। इसी कारण नियुक्ति की गयी। इसी के अनुपालन में ओम प्रकाष मिश्रा को विशेष न्यायाधीश पाक्सो बनाया गया।
7-अप्रैल 2017 को आठवें क्रम पर किसी अपर जिला जज के न होने पर वरिष्ठ अपर जिला जज ओम प्रकाश मिश्रा, द्वितीय को पाक्सो न्यायालय का पीठासीन अधिकारी बनाया गया और 7 अप्रैल 2017 को उसी दिन महानिबन्धक, माननीय उच्च न्यायालय इलाहाबाद को भेज दिया गया।
इस बीच 10 जून 2017 को अंग्रेजी समाचार पत्र टाइम्स आफ इण्डिया के लखनऊ अंक में एक समाचार प्रकाशित हुआ कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति के पद पर प्रस्तावित राजेन्द्र सिंह, एच.जे.एस. का नाम इस आधार पर वापस मंगाया गया है कि जनपद लखनऊ के विषेश न्यायालय पाक्सो कोर्ट में भूतपूर्व सपा मंत्री गायत्री प्रजापति को उस न्यायालय के विशेष न्यायाधीष श्री ओम प्रकाश मिश्रा द्वारा दिये गये जमानत के सम्बन्ध में वे भी उनके इस कृत्य में शामिल हैं। इससे पहली बार राजेन्द्र सिंह को पता चला कि उनकी फ़ाइल वापस मंगा ली गयी है। टाइम्स आफ इण्डिया के बाद अन्य अख़बारों, डिजिटल मीडिया पर यह समाचार बढ़ चढकर उछाला गया। इस मीडिया ट्रायल से दुखी राजेंद्र सिंह ने अवमानना की नोटिस दी। इस पर कई मीडिया हाउसों ने बिना शर्त माफ़ी मांगी और जिन्होंने नहीं मांगी उनके खिलाफ अदालत में मामला लम्बित है।
राजेन्द्र सिंह की पत्नी द्वारा भेजे गये प्रत्यावेदन में कहा गया है कि 25 अप्रैल 2017 को गायत्री प्रजापति की जमानत विषेश न्यायाधीश द्वारा की गयी थी। मेरे पति राजेन्द्र सिंह विश्राम कक्ष में थे तभी लगभग 12-12.15 बजे उन्हें मौखिक सूचना दी गयी कि आज पाक्सो कोर्ट में अभियुक्त गायत्री प्रजापति की जमानत पर सुनवाई होनी है। इस पर उन्होंने सम्बन्धित पीठासीन अधिकारी ओम प्रकाश मिश्रा को बुलाया और उनसे कहा कि वे इसी माह सेवानिवृत्त होने वाले हैं और ऐसा कोई कार्य न करें जिससे न्यायपालिका की छवि धूमिल हो। उनके द्वारा पूछने पर मैंने गायत्री प्रजापति के जमानत स्थगित करने को कहा। इस पर पाक्सो एक्ट के न्यायाधीश द्वारा बताया गया कि वे जमानत सुबह ही कर चुके हैं। उस समय उनके विश्राम कक्ष में उमा शकर शर्मा अपर जिला जज / प्रभारी अधिकारी नजारत बैठे हुए थे। उन्होंने उमा शंकर शर्मा अपर जिला जज / प्रभारी अधिकारी नजारत को तुरन्त बताया कि पीठासीन अधिकारी ओम प्रकाश मिश्रा सुबह ही जमानत कर चुके हैं।
राजेन्द्र सिंह की पत्नी द्वारा भेजे गये प्रत्यावेदन में कहा गया है कि मेरे पति राजेन्द्र सिंह ने पास्को न्यायालय के सहायक जिला शासकीय अधिवक्ता, फौजदारी श्री पुष्पेन्द्र सिंह गौतम को बुलाकर उनसे पूछताछ किया और उनसे एक लिखित सूचना इस सम्बन्ध में प्राप्त की। उन्होंने बताया कि यह जमानत प्रार्थना पत्र न्यायालय में 24अप्रैल 2017 को प्रस्तुत किया गया था। इसकी सुनवाई दिनांक 25 अप्रैल 2107 को नियत की गयी। विवेचक ने उनसे फोन पर कहा था कि वे समय ले लें जिस पर विवेचक ने सुनवाई के लिए 3 दिन के समय की मांग का प्रार्थना पत्र भेजा लेकिन साथ ही साथ केस डायरी भी थाने के पैरोकार के साथ भेज दिया। न्यायालय ने केस डायरी के आधार पर स्थगन प्रार्थना पत्र को निरस्त किया और जमानत प्रार्थना पत्र का निस्तारण कर दिया। इस सम्बन्ध में वरिष्ठ पुलिस अधीक्षिका ने भी उनके पति को फोन पर बताया कि उन्होंने भी विवेचक श्री अविनाश मिश्रा से तीन दिन का समय लेने के लिए कहा था लेकिन विवेचक ने इसके बावजूद केस डायरी न्यायालय में भेज दी।
इसके बाद मेरे पति राजेन्द्र सिंह ने इस जमानत की एक गोपनीय सूचना महानिबन्धक, उच्च न्यायालय, इलाहाबाद को उसी दिन पत्र से भेजी जो उस समय मुख्य न्यायाधीश के साथ उच्च न्यायालय, लखनऊ में मौजूद थे। मेरे पति ने इसमें सेंट्रल बार एसोसिएशन के अध्यक्ष और विवेचक श्री अविनाश मिश्रा का नाम लिखा था और यह भी लिखा था कि इस मामले में लेन देन होने की बात न्यायालय परिसर में की जा रही है। एक शिकायती पत्र भी दिन में दो बजे स्पीड पोस्ट से न्यायालय में प्राप्त हुआ था और उन्होंने उक्त शिकायती पत्र को भी पत्र के साथ संलग्न किया था। उसी दिन शाम को उनके पति को इसी शिकायती पत्र की एक प्रति वरिष्ठ न्यायमूति, उच्च न्यायालय लखनऊ द्वारा प्राप्त हुई और उन्होंने वरिष्ठ न्यायमूर्ति को फोन पर अवगत कराया कि इस सम्बन्ध में एक त्वरित रिपोर्ट दिन में ही महानिबन्धक को भेजी जा चुकी है। यही नहीं, मेरे पति ने इसकी विस्तृत सूचना अगले दिन प्रमुख सचिव विधि एवं न्याय उत्तर प्रदेष शासन को भी भेज दी थी। इस पूरे प्रकरण में मेरे पति को पक्ष रखने का मौका दिए बगैर उनकी फ़ाइल वापस मंगा ली गयी।
गौरतलब है कि पूरी बात साफ होने के बाद जज राजेन्द्र सिंह ने जिला एवं स्तर न्यायाधीश का अपना पूरा कार्यकाल पूरा किया बल्कि ग्रेच्युटी से लेकर सभी लाभ भी उन्हें मिला। अवकाश ग्रहण करने के बाद वे उत्तर प्रदेश एनजीटी के सचिव भी रहे। लेकिन भाई लोगों ने मीडिया ट्रायल के जरिए हाईकोर्ट के जज बनने में झूठी शिकायतों से उनकी राह में रोड़ा अंटका दिया।
वरिष्ठ पत्रकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.
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