सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद जूनियर जजों की वेतन वृद्धि अब एक कदम दूर… देश में निचली अदालतों के जजों और दूसरे अधिकारियों की वेतन वृद्धि को लेकर गठित दूसरे राष्ट्रीय न्यायिक वेतन आयोग की संस्तुतियों पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने महत्वपूर्ण आदेश दिया है।
चीफ जस्टिस एस ए बोबडे, जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सूर्यकांत की तीन सदस्यीय पीठ ने आयोग की संस्तुतियों पर राज्यों और संघ शासित प्रदेशों को चार सप्ताह में प्रतिक्रिया देने को कहा है। मामले में कोर्ट ने वरिष्ठ अधिवक्ता पीएम नरसिम्हन और के परमेश्वर को एमिकस क्यूरी (न्याय मित्र) नियुक्त किया है। मयूरी रघुवंशी एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड और गौरब बनर्जी, सीनियर एडवोकेट ने सुप्रीम कोर्ट में ऑल इंडिया जजेज एसोसिएशन का पक्ष रखा।
ऑल इंडिया जजेज एसोसिएशन बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के केस में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर 2017 में मोदी सरकार ने उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति पी.वी.रेड्डी की अध्यक्षता में द्वितीय राष्ट्रीय न्यायिक आयोग (SNJPC) के गठन को मंजूरी दी थी। आयोग के दूसरे सदस्य केरल उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति आर.वसंत और दिल्ली उच्च न्यायिक सेवा के जिला न्यायाधीश श्री विनय कुमार गुप्ता आयोग के सदस्य सचिव हैं।
आयोग का कार्य देश भर के सभी राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में अधीनस्थ न्यायालयों के न्यायाधीशों व दूसरे अधिकारियों के वेतन व सेवा स्थितियों के ढांचे की जांच करना और इसकी विसंगतियों का समाप्त करना था। आयोग ने निचली अदालतों में जजों और न्यायिक अधिकारियों के वेतन, भत्तों और पेंशन से संबंधित अपनी चार संस्करणों वाली रिपोर्ट 29 जनवरी 2020 सुप्रीम कोर्ट में सौंप दी।
चीफ जस्टिस बोबड़े की अध्यक्षता में तीन जजों की पीठ ने 28 फरवरी को आयोग की रिपोर्ट पर सभी पक्षों को सुना और 29 फरवरी को आदेश जारी किया जिसमें कहा गया है कि संबंधित राज्य और संघ शासित प्रदेश चार और सप्ताह में आयोग की सिफारिशों पर अपनी प्रतिक्रिया कोर्ट में प्रस्तुत करें।
अगर समय सीमा में ऐसा नहीं किया जाता तो ये माना जाएगा कि संबंधित पक्ष को आयोग की संस्तुतियों पर कोई आपत्ति नहीं है और शीघ्र ही सिफारिशों को लागू करने की प्रक्रिया शुरू की जाए। न्यायपालिका की स्वतंत्रता को अहम बताते हुए पीठ ने कहा कि न्यायिक सेवा किसी तरह का रोजगार नहीं है और न ही जज कर्मचारी हैं। कोर्ट ने अगली सुनवाई में संबंधित राज्यों के मुख्य सचिव और महाधिवक्ता को मौजूद रहने को कहा है।
दूसरे राष्ट्रीय वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने पर जजों के वेतन में बड़ा अंतर आएगा। आयोग की मुख्य सिफारिशें कुछ इस तरह हैं-
वेतन- आयोग की रिपोर्ट में जो संशोधित वेतन ढांचा दिया गया है उसके मुताबिक, जूनियर सिविल न्यायाधीश/प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट जिनका शुरूआती वेतन वर्तमान में 27,700 रुपये है बढ़कर 77,840 रुपये हो जाएगा। वहीं वरिष्ठ सिविल न्यायाधीश का वेतन 1,11,000 रुपये से और जिला न्यायाधीश का वेतन 1,44,840 रुपये से शुरू होगा। जिला न्यायाधीश (एसटीएस) का अधिकतम वेतन 2,24,100 रुपये होगा।
पेंशन : आयोग ने पेंशन को लेकर महत्वपूर्ण सिफारिशें की हैं। पिछले वेतन के 50 प्रतिशत पर पेंशन की सिफारिश की गई है तो परिवार की पेंशन अंतिम वेतन का 30 प्रतिशत होगी। अतिरिक्त पेंशन 75 वर्ष की आयु पूरा करने पर शुरू होगी और विभिन्न चरणों पर प्रतिशत बढ़ेगा। सबसे महत्वपूर्ण सिफारिश जो है वह नई पेंशन योजना (NPS) नहीं जारी की जाएगी। सरकार ने 2004 या उसके बाद सेवा में प्रवेश करने वाले कर्मचारियों की पेंशन बंद कर दी थी। आयोग ने इसे फिर से शुरू करने की सिफारिश की है।
भत्ते- आयोग ने वर्तमान में मिल रहे भत्तों को बढ़ाने का प्रस्ताव रखा है। कुछ नये भत्ते जैसे बच्चों की शिक्षा से जुड़े भत्ते, होम ऑर्डरली भत्ते का भी प्रस्ताव रखा गया है। सभी राज्यों में एचआरए समान रूप से बढ़ाया जाएगा। आयोग द्वारा की गई सिफारिशें देशभर के न्यायिक अधिकारियों पर लागू होंगी।
संशोधित वेतन और पेंशन 1.1.2016 से प्रभावी होगी। अंतरिम राहत का समायोजन करने के बाद कैलेंडर वर्ष 2020 के दौरान बकाया राशि का भुगतान किया जाएगा।
पत्रकार विवेक सिंह की रिपोर्ट.
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