Sanjaya Kumar Singh : 8 नवंबर के बाद जो नोट “कागज का टुकड़ा” हो गया था वह आज की घोषणा के बाद फिर आधे मूल्य का हो गया। यू-टर्न सरकार ऐसे ही नहीं कहा जाता है। यह हाल “नीन्द खराब कर दूंगा” की घोषणा के बाद है। सुना है, अभी पुराने नोट नष्ट नहीं किए जा रहे हैं। इसलिए कागज का टुकड़ा हो गया है के झांसे में न आएं। बोलने और करने में बहुत अंतर होता है।
Om Thanvi : काला धन वाले आधे कमीशन पर काले को सफ़ेद करवा रहे थे। सरकार को शायद लगा, इतने में तो हमीं कर देते। तो एक स्कीम और ले आए। काले को मिटाने चले थे। उसे ख़ुद ही सफ़ेद करने लगे।
Sheetal P Singh : बेगुनाहों को सज़ा। नोटबंदी के ऐलान के तीन हफ़्तों में देश की सौ प्रतिशत प्रापर्टी का दाम ३०-५०% तक गिर चुका है : ऐसा बाज़ार विशेषज्ञों का आकलन है! और यह भी कि इस अफ़रा तफ़री को सेटल होने में कम से कम एक साल लगेगा! मुझे नहीं लगता कि बीस फ़ीसद से ज्यादा निजी प्रापर्टी बेनामी होगी! किसी सरकारी प्रमुख / अर्थ विशेषज्ञ ने भी ऐसा नहीं कहा। तो उन अस्सी फ़ीसद फ़्लैट / मकान / प्लाट / दुकान के मालिकों को लगभग बेवजह ( झूठी कहानी पर) काट कर आधा करने का गुनाह आप पर आयद होता है परधान जी! चोरों से तो आपने फिफ्टी फिफ्टी खेलने का ऐलान खुद ही कर दिया है!
दिनेशराय द्विवेदी : यहाँ तक तो समझ आया कि जो खुद अपनी काली कमाई की घोषणा करेगा उस से मात्र 49.9 % टैक्स लिया जाएगा, शेष कमाई ब्लीच हो कर सफेद झक्क हो जाएगी। पर ये समझ में नहीं आया कि। जिस का रुपया छापा डालने का सारा खर्च उठा कर बरामद कर अपने कब्जे में कर लेगी उस का 15% वापस उन्हें क्यों दिया जाएगा? मल्लब सब बच गए। सजा किसी को नहीं होगी। बल्कि 15% छापे की दुर्घटना का मुआवजा भी सरकार देगी। क्या बढ़िया योजना है भाई, पहले ये अकल क्यों नहीं आई थी। हम एक करोड से ज्यादा लोगों को लाइनों में खड़ा रहने की सजा क्यों सुनाई गई। जिस में अस्सी से ज्यादा मर गए और करीब दो सौ से ज्याादा घायल हो गए। बीमार होने वालों की गिनती ही नहीं है। भाई! हम तो फोकट में ही शिकार हो गए। मैं ने इस सरकार के लिए तो छोड़ जिन्दगी में कभी भाजपा को वोट नहीं दिया था। और अब? अब तो सव्वाल ही नहीं उठता।
Arun Maheshwari : इंडियन एक्सप्रेस में छपी खबर के मुताबिक भारत रत्न और नोबेलजयी प्रो. अमर्त्य सेन ने मोदी सरकार के विमुद्रीकरण के विचार और उस पर अमल, दोनों को ही नादिरशाही बताया है । यह सरकार के सर्वाधिकारवादी चरित्र का परिचायक है। इंडियन एक्सप्रेस को ईमेल के ज़रिये दिये गये अपने साक्षात्कार में उन्होंने बहुत ही साफ़ शब्दों में कहा है कि सिर्फ एक तानाशाही सरकार ही निष्ठुरता से आम जनता को ऐसी मुसीबत में डाल सकती है। मोदी के इस दावे पर कि इस पीड़ा से अन्तत: लाभ होगा, प्रो. सेन ने साफ़ शब्दों में कहा कि “पीड़ा देने वाली हर चीज अच्छी होती है, यह सोचना ग़लत है।” उन्होंने कहा कि “लोगों से अचानक यह कहना कि आपके पास जो सरकार का प्रतिज्ञा पत्र (नोट) है, उसमें की गई प्रतिज्ञा का कोई मायने नहीं है, क्योंकि वे काला धन के रूप में कुछ ग़लत लोगों के हाथ लग गये है, तानाशाही शासन की एक ज्यादा जटिल अभिव्यक्ति है। क़लम की एक नोक से इसने भारतीय मुद्रा को रखने वाले तमाम लोगों को तब तक के लिये अपराधी घोषित कर दिया है जब तक वे अपने को निर्दोष साबित नहीं करते हैं।” बैंकों से अपने रुपये उठाने में आम लोगों के सामने आ रही कठिनाइयों को उन्होंने एक तानाशाही सरकार का निष्ठुर क़दम बताते हुए कहा कि इससे किसी भी प्रकार की भलाई की उम्मीद नहीं की जा सकती है। जो लोग काला धन रखने में सिद्ध-हस्त हैं उनको इससे ज़रा भी आँच नहीं आएगी, लेकिन मासूम लोग मारे जायेंगे। “अच्छी नीतियाँ कभी-कभी पीड़ादायी होती है लेकिन पीड़ा देने वाली, वह कितनी भी क्यों न हो, सभी चीज़ें अच्छी हो, यह जरूरी नहीं होता है ।” प्रो.सेन के इस साक्षात्कार को साझा करते हुए हम यही कहेंगे कि भारत के आम लोगों के जीवन पर किसी भी सरकार का इससे बड़ा हमला और उनका इससे बड़ा अपमान दूसरा नहीं नहीं हो सकता है। इस विषय बोलते हुए मोदी की खिलखिलाहट रावण के अट्टहास सी लगती है। जनतंत्र में किसी नेता से ऐसी अश्लीलता की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। मोदी कहते हैं कि ‘बड़ों को बड़ी तकलीफें हो रही है और छोटों को छोटी!’ उनसे पूछिये कि मृत्यु से भी बड़ी क्या कोई तकलीफ़ है? और, क्या एक भी बड़ा आदमी सड़कों पर बैंक के सामने लाईन लगाने की वजह से मरा है? मोदी की ‘छोटों को छोटी तकलीफें’ की बात जले पर नमक छिड़कने के समान है।
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