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सुख-दुख

बाबा का बुलडोजर ठाकुर माफियाओं तक पहुंचते-पहुंचते पंचर क्यों हो जाता है?

संजय कुमार सिंह-

माना कि पत्र फर्जी है, लेकिन तथ्य? कहां हो गोदी वालों?

आज मुझे यह पत्र व्हाट्सऐप्प पर मिला। शेयर करने से पहले मैंने इसकी पुष्टि करनी चाही तो पता चला कि पत्र 20 अगस्त 2020 का है। पुराना पत्र अब चुनाव के समय क्यों घूम रहा है और पहले क्यों नहीं मिला – दोनों बातें जाननी जरूरी थी। पता चला कि पत्र फर्जी है। विधायक के सरकारी लेटरहेड पर जारी फर्जी चिट्ठी पर दस्तखत हिन्दी में है और आईआरटीएस रहे अधिकारी अगर हिन्दी प्रदेश के नहीं होते तो हिन्दी में दस्तखत क्यों करते और हिन्दी प्रदेश का कोई आईआरटीएस अधिकारी हिन्दी में ऐसा दस्तखत तभी करेगा जब साक्षर भर हो। इसलिए, पत्र की सत्यता मुद्दा नहीं है। मैं भी उसे फर्जी ही मान रहा हूं। पर मुद्दा यह है कि उसमें जो आरोप लगाया गया है उसपर सरकार ने क्या कहा और कुछ कहा कि नहीं।

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भाजपा विधायक देवमणि द्विवेदी का यह कथित फर्जी पत्र उत्तर प्रदेश के अपर मुख्य सचिव गृह को लिखा गया है। इसमें 17 लोगों का नाम और उन पर दर्ज मुकदमों की कुल संख्या ‘पुण्य कार्य’ शीर्षक के तहत लिखी है। मैं नहीं जानता कि ‘पुण्य कार्यों’ की यह संख्या कितनी सही है या इन लोगों पर कोई मुकदमा है भी कि नहीं। ये कौन लोग हैं इस बारे में पत्र में कुछ नहीं लिखा है पर ज्यादातर के उपनाम ‘सिंह’ हैं। एक नाम राजा भैया है एक उपनाम चंदेल (अशोक) है। कहने की जरूरत नहीं है कि राजा भैया (विधायक) राजपूत हैं और चंदेल राजपूतों की एक उपजाति है। ऐसे में, नाम से सबके सब राजपूत लग रहे हैं।

पत्र में लिखा है, निम्नलिखित व्यक्तियों के विरुद्ध दर्ज मुकदमों में विगत तीन सालों में कृत कार्यवाही तथा वर्तमान स्थिति से अवगत कराने का कष्ट करें। मेरा मानना है कि यह पत्र फर्जी है और वायरल होने के बाद विधायक ने इसे लिखने से इनकार किया है तो मीडिया का काम है कि वह हम पाठकों और आम जनता को सच बताए। मुझे एक ट्वीट का स्क्रीन शॉट मिला है। यह कोई वेरीफायड हैंडल नहीं है और मैं ट्वीट करने वाले को नहीं जानता इसलिए नाम महत्वपूर्ण नहीं है। लेकिन इसमें पूछा गया है, मुख्यमंत्री बताएं कि इन बाहुबलियों पर क्यों बुलडोजर नहीं चल पाया। क्या आपकी जाति आड़े आ गई थी। जाति का मामला तो पहली नजर में सही लग रहा है। इसलिए भी मीडिया को मुख्यमंत्री से पूछना चाहिए।

एक और सोशल मीडिया उपयोगकर्ता ने इस पत्र को शेयर कर लिखा कि ‘लंभुआ के विधायक देवमणि द्विवेदी ने अपने ही सरकार से पूछा कि ठाकुर माफियाओं के घर पर बुलडोजर क्यों नहीं चल रहा है ? नहीं चाहिए जातिवादी सरकार।’ कहने की जरूरत नहीं है कि विधायक ने अगर इससे इनकार भी कर दिया हो तो मामला खत्म नहीं होता है और यह सवाल तो है ही कि इन लोगों के खिलाफ कार्रवाई क्यों नहीं हुई या हुई है। इसीलिए एक और ट्वीट है, देवमणि द्विवदी ने सवाल पूछा था। योगी ने जाति देखकर जवाब नहीं दिया। ठाकुर ही प्रिय हैं बाबा को।

विधायक जी एक और पोस्ट को लेकर चर्चित हुए थे। दैनिक भास्कर की चार महीने पहले की एक खबर के अनुसार, सुल्तानपुर में देवमणि द्विवेदी के एफबी (फेसबुक) पर ब्राम्हण कार्टून पोस्ट वायरल, लिखा- ‘जय परशुराम के चक्कर में न आएं केवल राम को याद रखें’। सुल्तानपुर जिले से बीजेपी विधायक देवमणि द्विवेदी के फेसबुक पेज पर भगवान परशुराम को लेकर की गई विवादित पोस्ट से राजनीति गर्मा गई है। पोस्ट में ब्राह्मण का कार्टून बनाकर लिखा गया है कि, ‘जय परशुराम के चक्कर में न आएं केवल राम को याद रखें’। विकास और सुशासन ही हमारी पहचान। यह पोस्ट फर्जी चिट्ठी के बाद की गई थी।

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दैनिक भास्कर की खबर के अनुसार, देवमणि द्विवेदी ने कहा कि उनका फेसबुक अकाउंट हैक हुआ है। उन्हें बदनाम करने की साजिश रची जा रही है। उन्होंने गाजियाबाद पुलिस को प्रार्थना पत्र देते हुए शिकायत की है। इस संबंध में ज़ी न्यूज डॉट इंडिया डॉट कॉम की 22 अगस्त 2020 की एक खबर के अनुसार, भाजपा विधायक के नाम से वायरल लेटर पर दर्ज हुई एफआईआर, देवमणि द्विवेदी बोले, ‘फर्जी है पत्र’। कोई डेढ़ साल बाद आज गूगल करने पर मुझे इस एफआईआर पर किसी कार्रवाई या विधायक जी द्वारा किसी फॉलोअप की कोई खबर नहीं मिली। इस खबर के अनुसार, वायरल हुए लेटर में 17 विधायकों की लिस्ट उनके मुकदमों के साथ दर्ज है। पहले तो विधायक ने इस चिट्ठी का खंडन किया और अब इस मामले में बीजेपी विधायक ने लखनऊ के हजरतगंज में एफआईआर दर्ज कराई है।

एफआईआर दर्ज कराने की खबर तो खूब है पर कार्रवाई की कोई खबर अभी तक नहीं है और ना ही विधायक द्वारा इस संबंध में कोई फॉलोअप किए जाने की खबर है। साफ है कि मामला (सही या गलत) वायरल हो गया तो एफआईआर करा दी गई। लेकिन मुख्यमंत्री के खिलाफ किसी मामले में एफआईआर हो और कोई कार्रवाई नहीं हो और कोई फॉलोअप भी न हो से साबित होता है कि सब औपचारिकता थी। मुख्य मकसद पत्र को वायरल होने से रोकना था। संबंधित पक्ष इसमें कामयाब भी रहे। सबसे शर्मनाक भूमिका उत्तर प्रदेश के अखबारों और पत्रकारों की रही कि इसे किसी ने फॉलो नहीं किया। और इसीलिए भाजपा सपा पर अपराधियों की पार्टी होने का आरोप लगाती है और यह दावा भी करती है अपराध खत्म हो गए या बुलडोजर चला दिया। जबकि सच्चाई यही है कि विधायकों को बख्श दिया गया। इसमें तमाम सवाल अनुत्तरित हैं पर उसकी परवाह करने वाला कोई नहीं है।

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द लल्लन टॉप ने भी 22 अगस्त 2020 को इस संबंध में एक खबर की थी, “बीजेपी विधायक के नाम से वायरल लेटर में राजपूत नेताओं के बारे में क्या है कि बवाल कट गया है?” इसमें संबंधित व्यक्तियों को राजपूत नेता कहा गया है। इस खबर के अनुसार विधायक जी ने ट्वीट कर कहा था, मुझे संदर्भित करते हुए एक फर्जी पत्र सोशल मीडिया पर प्रसारित किया जा रहा है। मेरा सभी समर्थकों से अनुरोध है कि वह किसी बहकावे में न आएं। ऐसे अफवाहबाजों के विरुद्ध मैं वैधानिक कार्यवाही भी कराने जा रहा हूं। यह विधायक जी का 21 अगस्त 20 का ट्वीट है। पत्र पर 20 अगस्त की तारीख पड़ी है, पत्रांक यूपी एमएलए / 2 / 87 नंबर लिखा है और हिन्दी में दस्तखत के नीचे भी यही तारीख पड़ी है। छपे हुए लेटरहेड पर विधायक जी का नाम, पता, दो मोबाइल नंबर और मशीन से छपा एक नंबर 459473 है। इससे यह पता चल जाएगा कि स्टेशनरी उनकी है कि नहीं या उनके यहां से चुराई गई है।

एफआईआर की धाराएं मैं नहीं जानता पर जांच क्यों नहीं हुई या क्या हुई – यह मुद्दा क्यों नहीं बना वह मैं नहीं समझ पर रहा हूं। मोटे तौर पर यही समझ आ रहा है कि मीडिया सरकार की सेवा में बिछी हुई है और ऐसा कुछ नहीं करना चाहती है जिससे सरकार को तकलीफ हो। उल्लेखनीय है कि विधायक जी ने विधानसभा में ब्राह्मणों की सुरक्षा का मुद्दा भी उठाया है। ऐसे में इन राजपूतों को सरकारी संरक्षण अपने आप में महत्वपूर्ण है। ताज्जुब की बात है कि उन्होंने यह मुद्दा नहीं उठाया है और उनके नाम से फैल गया तो मना कर रहे हैं। पर जांच में दिलचस्पी नहीं ले रहे हैं कि उनके नाम से ऐसा किसने किया।

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