Satyendra PS : अखबार में आने वाला टाइम्स प्रोपर्टी पेज मेरे लिए बैरोमीटर है जिससे पता चलता है कि रियल एस्टेट में कितना उत्साह है। आज के 6 साल पहले यह 16 पेज तक आता था। उसके बाद दो चार पेज बचा। 2 माह पहले 10 पेज पहुंचा। अब फिर घटकर दुबला हो गया।
नोएडा गाजियाबाद में देखें तो गोविंदपुरी, इंदिरापुरम, नोएडा एक्सटेंशन, नोएडा ग्रेटर नोएडा रोड पर लाखों फ्लैट्स में कोई रहने वाला नहीं है। ज्यादातर तैयार हैं और कुछ बन रहे हैं। इसमें किसी मैजिकब्रिक्स, मकान डॉट कॉम या फिक्की के आंकड़ों की जरूरत नहीं है। बाइक लेकर निकल जाएं, खुली आँखों से दिखता है।
रोजगार इतना सिकुड़ गया है कि बड़े पैमाने पर लोग दिल्ली एनसीआर छोड़कर भागे हैं। कहां भागे,यह नहीं पता। लेकिन पिछले 4 साल से वैशाली में 2 कमरे का किराया 9000 रुपये पर टिका हुआ है।
कुल मिलाकर बर्बाद गुलिस्ता ही दिखता है! सम्भवतः वही खुश हैं जो या तो सरकारी नौकरी कर रहे हैं या उनकी नौकरी उस संस्थान में बची हुई है जहां वो पहले से काम करते रहे हैं।
भवतु सब्ब मंगलम
बिजनेस स्टैंडर्ड में कार्यरत पत्रकार सत्येंद्र पी सिंह की एफबी वॉल से.
Ashwini Kumar Srivastava : रियल एस्टेट बाजार तो काफी हद तक संभल गया है और अब यहां नोटबन्दी से पहले जैसी ही तेजी भी नजर आ रही है। लिहाजा इस बात की भी पूरी संभावना है ही कि होम लोन की ऑक्सीजन पाकर डगमगाते हुए बैंकों का भी कल्याण हो जाये और वे भी रियल एस्टेट की ही तरह कुछ राहत की सांस ले सकें।
दरअसल, रियल एस्टेट न सिर्फ बैंक बल्कि स्टील, सीमेंट, ईंट-भट्ठा, इंजीनियर/लेबर यानी रोजगार, पेंट, विज्ञापन जैसे न जाने कितने क्षेत्रों से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर जुड़ा है। इसलिए रियल एस्टेट के बुरे दिन आते ही एक तरह से पूरी अर्थव्यवस्था के ही बुरे दिन आने लगते हैं। शायद यही वजह रही हो, जिससे नोटबन्दी का मास्टर स्ट्रोक खुद मोदी सरकार और देश की अर्थव्यवस्था के लिए ही खतरनाक साबित हो गया।
खैर, अंत भला तो सब भला…
पत्रकार से रियल एस्टेट उद्यमी बने अश्विनी कुमार श्रीवास्तव की एफबी वॉल से.
दर्जनों मीडिया हाउसों का स्टिंग कर उनकी पोल खोलने वाली कंपनी कोबरा पोस्ट के संस्थापक अनिरुद्ध बहल को कितना जानते हैं आप… देखें भड़ास एडिटर यशवंत सिंह के साथ एक बेबाक बातचीत…