कल्पतरु एक्सप्रेस में बंपर छंटनी का शिकार बने कर्मचारियों में जितनी नाराजगी खुद को हटाये जाने को लेकर है उससे कहीं अधिक नाराजगी अपने एक साथी को इसमें शामिल किये जाने से है। यह नाराजगी उनमें भी है जो इस छंटनी का शिकार होने से बच गये हैं। यह वह साथी है जिसे उसके10 साल के एकमात्र बेटे की आकस्मिक मौत ने बुरी तरह तोड़ दिया है। आगरा कार्यालय में कार्यरत वरिष्ठ उपसम्पादक राजकमल को कुछ माह पूर्व अचानक उन्नाव स्थित घर से खबर आयी कि उनके बेटे की तबियत खराब हो गयी है।
कार्यालय में काम खत्म करके और ट्रेन पकड़कर घर पहुंचे तो पता चला कि बेटे को एक अस्पताल में दाखिल कराया गया है। अस्पताल पहुंचने पर राजकमल को बेटे की मौत की खबर मिली। सब कुछ इतना अचानक हुआ कि राजकमल समझ ही नहीं पाये कि ये उनके साथ कैसे हो गया। इस दौरान आगरा से उन्नाव आते समय ट्रेन में उनके साथ भी हादसा हो गया। कार्यालय में देर रात तक काम करने के कारण उन्हें ट्रेन में झपकी लग गयी और उनकी उंगली खिड़की के फाटक से दब गयी। बेटे की मौत के सदमे में राजकमल अपनी उंगली का सही इलाज नहीं करा पाये और सड़ जाने के कारण उनकी उंगली काटनी पड़ी। पारिवारिक झंझावतों से बुरी तरह टूटे राजकमल ने कल्पतरु एक्सप्रेस के प्रबन्धन से गुहार लगायी कि उनका तबादला लखनऊ कार्यालय कर दिया जाय जिससे वे खुद को और अपने परिवार को संभाल सकें तथा अपनी पत्नी का इलाज करा सकें जिसकी मानसिक स्थिति बेटे की मौत के बाद खराब है। प्रबन्धन ने उनकी मांग मान ली और उनका तबादला लखनऊ कर दिया गया। राजकमल रोज उन्नाव से अप-डाउन करने लगे।
राजकमल को अभी लखनऊ आये कुछ ही दिन हुए थे कि उनकी मां भी चल बसीं। मां को अपने पोते के बिछड़ने का गम खाये जा रहा था। राजकमल लगातार सदमा पर सदमा पा रहे थे फिर भी सब कुछ भुला कर काम में मन लगा रहे थे लेकिन वे कल्पतरु एक्सप्रेस की साजिश का शिकार हो गये। छंटनी में उनका नाम भी शामिल मिला। जिस व्यक्ति ने छह माह के भीतर अपना 10 साल का बेटा, अपनी मां, अपनी एक उंगली खो दी उसकी नौकरी भी चली गयी। राजकमल अपने बेटे और अपनी मां के आखिरी वक्त में उनके साथ नहीं थे क्योंकि वे समर्पित पत्रकार की तरह कार्यालय में काम कर रहे थे। कल्पतरु एक्सप्रेस के प्रबन्धन ने उनके इस समर्पण का जल्द ही पुरस्कार भी दे दिया।
मूल खबर…
hari singh gahlot
November 17, 2014 at 6:22 am
कोई नही लेगा न्यायालय की शरण । सब एक दूसरे पर टालते रहेंगें तू दे, तू दे प्रार्थना पत्र में गुजर जाएगें दिन और चालीस में से चार भी नहीं रहेंगे । और न्यायालय इंतजार करता रहेगा इन पीडित पत्रकारों का ।