कपिल सिब्बल ने जनता की अदालत याने संसद में झूठ बोला था या अब सुप्रीम कोर्ट में बोलेंगे..? कपिल सिब्बल कांग्रेस के नेता और सांसद होने से पहले दिल्ली के नामी गिरामी वकील हैं. वकालत की शोहरत के बाद ही उन्होंने कांग्रेस का दामन थामा और पहले सांसद और फिर मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री बने. हर बड़ी राजनैतिक पार्टी को बड़े वकीलों की जरूरत होती है इसलिए कांग्रेस में सिब्बल और सिंघवी को तो भाजपा में जेटली को हाथों हाथ लिया जाता है. ऐसे लोगों के साथ अक्सर काम धंधे और राजनीति के बीच में टकराव हो ही जाता है.
यूँ सिब्बल साहब रोजी रोटी के वास्ते वकालत के लिए मोहताज नहीं हैं पर पैसा किसे बुरा लगता है.! इसलिए कुछ दिन पहले जहाँ उन्हें राफेल मुद्दे पर राज्यसभा में कांग्रेस के स्टैंड की पैरवी करते देखा गया था तो सुप्रीम कोर्ट में उन्हें अनिल अंबानी की तरफ से दलील देते देखा जाएगा.! अनिल अंबानी राफेल मामले में एक दर्जन से ज्यादा कांग्रेस नेताओं पर मानहानि का दावा ठोंक चुके हैं. वे मंगलवार सुप्रीम कोर्ट में पेश हुए. उनकी तरफ से दलीलें रखने के लिए जो वकील पहुंचे उनमे सिब्बल साहब भी थे.
सिब्बल साहब की दोहरी भूमिका दरअसल हमारी राजनीति का यह काला सच ही है कि सारे नेता और पार्टियाँ एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं.
बेहतर होगा कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी सिब्बल की इस दोहरी भूमिका पर दो शब्द बोलें. सिब्बल को भी साफ करना चाहिए कि इस मुद्दे पर वे कांग्रेस के साथ हैं या अपने क्लाएंट अनिल अंबानी के साथ? उन्होंने इस मुद्दे पर संसद में सच बोला था या सुप्रीम कोर्ट में बोलेंगे?
इस मौके पर मुझे हिंदी के चर्चित व्यंग्य उपन्यास राग दरबारी के एक पात्र छोटे पहलवान का कथन याद आ रहा है. वे अनजाने ही अदालत में बयान देकर अपने उस्ताद बद्री की प्रेमिका को बदचलन बता आए थे. इस पर कुपित बद्री ने जब उनकी क्लास ली तो वो बोले- ‘अदालत में गवाही देनी थी, कौन सच बोलना था. तो जो मुंह में आया, कहते चले गये!’
लेखक श्रीप्रकाश दीक्षित भोपाल के वरिष्ठ पत्रकार हैं.