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उत्तर प्रदेश

काम से अधिक अपने कारनामों से चर्चा बटोरती यूपी पुलिस

अजय कुमार, लखनऊ

लखनऊ। उत्तर प्रदेश पुलिस राज्य में बढ़ते अपराधों और कानून व्यवस्था पर भले लगाम नहीं लगा पा रही हो, लेकिन उसके कारनामें हमेशा चर्चा में बने रहते हैं। अपराधियों के सामने ‘हथियार’ डाल देना और सम्मानित नागरिकों के सामने ‘दबंगई’ दिखाना यूपी पुलिस की फितरत बन गई है। पुलिस के हौसले इतने बुलंद हैं कि वह जनप्रतिनिधियों तक से मारपीट करने में गुरेज नहीं करती है। आम आदमी तो दूर अक्सर सांसद और विधायक (वह भी भारतीय जनता पार्टी के) तक पुलिस के अत्याचार की कहानी कहीं न कहीं सुनाते मिल जाते हैं। बीजेपी की सरकार में ही बीजेपी नेताओं/कार्यकर्ताओं की जब पुलिस नहीं सुनती हो तो अंदाजा लगाया जा सकता है कि स्थितियां कितनी विषम हो गई हैं।

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यूपी पुलिस किसी की सुनने को तैयार नहीं है। वह (यूपी पुलिस) अपने आप को पुलिस और अदालत दोनों समझने लगी है। किसी भुक्तभोगी/पीड़ित की एफआईआर लिख कर कार्रवाई करने की बजाए जब यूपी पुलिस भुक्तभोगी को सही-गलत का ज्ञान बांटने लगती है तो भुक्तभोगी के पास अपना गाल बजाने के अलावा कुछ नहीं बचता है। प्रदेश में कानून व्यवस्था की हालात लगातार खराब होती जा रही है, लेकिन न तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ न ही उनकी टाप-11 टीम के माथे पर शिकन नजर आ रही है। योगी जी को नहीं भूलना चाहिए कि ब्यूरोक्रेसी कभी किसी के प्रति निष्ठावान नहीं रही है। वह तो जिस भी पार्टी की सरकार बने उसके साथ दूध में चीनी की तरह घुल जाती है। चुनाव तो दलों को लड़ना पड़ता है। अगर यही हालात रहे तो 2022 के विधान सभा चुनाव में योगी विरोधी लहर परवान चढ़ सकती है। वैसे भी उत्तर प्रदेश का इतिहास रहा है कि यहां की जनता ने पिछले कई वर्षो से किसी भी दल को लगातार दो बार सरकार बनाने का मौका नहीं दिया है।

दरअसल, यूपी पुलिस दोनों हाथ में लड्डू रखना चाहती है, इसलिए कुछ नामचीन बदमाशों का एनकांउटर करके एक तरफ वाहवाही लूट लेती है तो दूसरी तरफ के सहारे अपने कई कृत्यों पर पर्दा भी डाल देती है। पुलिस के कारनामों का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि अपराध के करीब 80 प्रतिशत मामलों में थाना-चौकी में फरियाद लिखाने गए पक्ष को वहां से न्याय नहीं मिलने के कारण वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों और न्यायपालिका तक का दरवाजा खटखटाना पड़ता है। अक्सर ही सुनने को मिलता रहता है कि थाना पुलिस एफआईआर दर्ज करने गए व्यक्ति के आवेदन पत्र को ज्यों ता त्यों स्वीकार ही नहीं करती हैं। बल्कि पीड़ित को अपने कम धाराओं के तहत अपने हिसाब से तहरीर लिखने को मजबूर कर देती है। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने जनसुनवाई के लिए एक पोर्टल बनाया है, इसमें भी बड़ी संख्या में पुलिस के खिलाफ ही लोगों की नाराजगी देखने को मिलती है। गांव-देहात और दूरदराज के इलाकों में होने वाले अपराध के तमाम मामले तो पुलिस रिकार्ड में दर्ज ही नहीं हो पाते हैं।

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चाहें गाजियाबाद में पत्रकार की हत्या हो या फिर बुलंदशहर में होनहार छात्रा की मौत अथवा महिला से कभी किसी महिला से दुराचार, किसी व्यक्ति के अपहरण, फिरौती जैसे तमाम मामलों में भी पुलिस यही रवैया अख्तियार करती है।कहीं चेकिंग के नाम पर उगाही और मारपीट की घटनाओं को लेकर तो कहीं अपराधियों से हाथ मिला लेने या उन्हें छोड़ देने के कारण उत्तर प्रदेश पुलिस चर्चा में बनी ही रहती है। जब यूपी पुलिस सत्तारूढ़ दल के सांसदो, विधायकों और अन्य तमाम नेताओं की नहीं सुनती हो तो यही समझा जाना चाहिए कि वह पूरी तरह से बेलगाम हो गई है। जब सत्तासीन पार्टी के विधायकों को पुलिस के उत्पीड़न के खिलाफ विधान सभा में अपनी ही सरकार के खिलाफ आवाज उठानी पड़ जाए तो समझा जा सकता है कि सब कुछ ठीकठाक नहीं है। कई सांसद और विधायक तो यूपी पुलिस की शिकायत लेकर सीएम योगी से मिल भी चुके हैं। करीब-करीब हर महीने ऐसी एक-दो घटनाएं सामने आ जाती हैं,जिसमें बीजेपी के जनप्रतिनिधि पुलिस की हठधर्मी का रोना रोते हुए कभी मीडिया के सामने तो कभी पार्टी मंच पर दिखाई पड़ जाते त्र हैं। लेकिन पुलिस के रवैये में कोई बदलाव देखने को नहीं मिल रहा है।

अलीगढ़ के भाजपा विधायक की बात सच है तो यह कहा जा सकता है कि योगी राज में उनकी पुलिस मर्यादाओं की सभी सीमाएं पार कर रही हैं। अलीगढ़ के बीजेपी विधायक राजकुमार सहयोगी ने आरोप लगाया कि गोंडा थाने में एसओ सहित तीन दारोगा ने मुझ पर हमला बोल दिया और कपड़े भी फाड़ दिए। वहीं एसओ का कहना था कि विधायक ने ही सबसे पहले हाथ उठाया था। इस घटना के बाद थाने के बाहर विधायक समर्थकों की भारी भीड़ इकट्ठा हो गई है। तनाव के माहौल के कारण इलाके में आधी दुकानें बंद हो गई हैं। मौके पर उच्चाधिकारी व अन्य विधायक भी पहुंच गए हैं। कुछ पुलिस वालो के खिलाफ निलंबन और तबादले की कार्रवाई हुई हैं।

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बहरहाल, हो सकता है अलीगढ़ मामले में विधायक जी की पूरी गलती हो, उन्होंने अगर एसओ पर हाथ उठाया है तो इसे कभी जायज नहीं ठहराया जा सकता है,लेकिन यह भी सच है कि एक जनप्रतिनिधि थाने जाए उसे वहां बैठने को नहीं कहा जाए उलटा उसके सामने एसओ कुर्सी पर बैठा विधायक से बहस करता रहे तो यह कैसे उचित हो सकता है। बताया जा रहा है कि बीजेपी विधायक राजकुमार सहयोगी पार्टी कार्यकर्ता के साथ बीते दिनों हुए झगड़े के मामले में थाने में बातचीत करने पहुंचे थे। इसी दौरान दोनों पक्षों में भिड़ंत हो गई। विधायक ने कार्यकर्ता प्रकरण में रुपए लेकर पुलिस पर कार्रवाई नहीं करने का आरोप लगाया था। इस प्रकरण में तमाम वीडियो वायरल हो रहे हैं, लेकिन सभी तथ्य जांच के बाद ही सामने आएंगे। अलीगढ़ के जिलाधिकारी ने पूरे प्रकरण की जाच कराए जाने की बात कहीं है। जब इस संबंध में पूर्व डीजीपी बृजलाल की प्रतिक्रिया ली गई तो उनका कहना था जब दरोगा की हैसियत कप्तान से ज्यादा होगी तो अपराध नहीं रूकेगा।

खैर, अलीगढ़ में भाजपा विधायक के साथ पुलिस की मारपीट को विपक्ष मिर्च-मसाला लगाकर आगे बढ़ा रहा है। समाजवादी पार्टी के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने तो बीजेपी विधायकों को नैतिकता पर लेक्चर ही दे डाला। अखिलेश ने ट्विट करके कहा कि भाजपा के राज में प्रदेश का हाल ये है कि स्वयं भाजपा के ही विधायक पुलिस के द्वारा मारपीट का शिकार होने का आरोप लगा रहे हैं। इस मामले की जांच होनी चाहिए और इस सच की भी कि आखिरकार विधायक जी ने ऐसा क्या कह दिया या कर दिया कि मर्यादा की सारी सीमाएं टूट गईं, इस संबंध में बसपा सुप्रीमों पूर्व मुख्यमंत्री मायावती का कहना था कि यूपी में अब कानून-व्यवस्था दम तोड़ रही है। कल अलीगढ़ में स्थानीय भाजपा विधायक व पुलिस द्वारा एक-दूसरे पर लगाया गया। यह आरोप व मारपीट अति-गंभीर व काफी चिन्ताजनक। इस प्रकरण की न्यायोचित जाँच होनी चाहिए व जो भी दोषी हैं उनके विरूद्ध सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, बीएसपी की यह माँग है। बसपा सुप्रीमों ने आगे कहा कि यूपी में इस प्रकार की लगातार हो रही जंगलराज जैसी घटनाओं से यह स्पष्ट है कि खासकर अपराध-नियंत्रण व कानून-व्यवस्था के मामले में सपा व बीजेपी की सरकार में भला फिर क्या अन्तर रह गया है? सरकार इसपर समुचित ध्यान दे, बीएसपी की जनहित में यही सलाह है।

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उधर, सोशल मीडिया पर चल रही खबरों के अनुसार सुलतानपुर जनपद की लम्बुआ सीट से विधायक देव मणि दुबे ने घोषणा की है कि वह कई विधायकों के साथ अलीगढ़ जा रहे हैं। वे वहां पुलिस द्वारा पीटे गये पीड़ित इगलास के विधायक राजकुमार से मुलाकात करेंगे। देवमणि दुबे का कहना था कि उन्होंने इस सम्बंध में उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या से बात की है और उनसे इस घटना को लेकर इस्तीफे की पेशकश भी की है। देवमणि का कहना है कि हम प्रदेश के 403 विधायकों के पिटने का इंतजार नही कर सकते। हमें पुलिस उत्पीड़न के खिलाफ आवाज उठाना पड़ेगा अब उसकी चाहे जो कीमत चुकानी पड़े।

उत्तर प्रदेश के वरिष्ठ पत्रकार अजय कुमार की रिपोर्ट.

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