Connect with us

Hi, what are you looking for?

सुख-दुख

कभी-कभी दिल करता है, पत्रकारिता की ये डिग्री फाड़ कर फेक दूं…

Kavish Aziz Lenin : कभी कभी दिल करता है डिग्री फाड़ के फेक दूं…  पता नहीं, जर्नलिज्म में ही डिग्री की वैल्यू नहीं है या फिर और भी फील्ड में ये हाल है… जब बिना डिग्री के आदमी जर्नलिस्ट बन सकता है तो प्रोफेशनल एजुकेशन के नाम पर सभी एजुकेशनल इंस्टीट्यूट को मास कॉम की क्लासेज बंद कर देना चाहिए… हम स्क्रिप्ट लिखना सीखते हैं, फोटोग्राफी सीखते है, voice over देना सीखते हैं, masthead से लेकर slug तक की जानकारी सीख कर आते है, tripod उठाना, लगाना, आर्टिकल लिखना ये सब कुछ सीखने के लिए ढाई तीन लाख रुपये के साथ साथ ज़िन्दगी के 3 साल खर्च करते हैं और हाथ लगता है बाबा जी का ठुल्लू…

<script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({ google_ad_client: "ca-pub-7095147807319647", enable_page_level_ads: true }); </script><script async src="//pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js"></script> <!-- bhadasi style responsive ad unit --> <ins class="adsbygoogle" style="display:block" data-ad-client="ca-pub-7095147807319647" data-ad-slot="8609198217" data-ad-format="auto"></ins> <script> (adsbygoogle = window.adsbygoogle || []).push({}); </script><p>Kavish Aziz Lenin : कभी कभी दिल करता है डिग्री फाड़ के फेक दूं...  पता नहीं, जर्नलिज्म में ही डिग्री की वैल्यू नहीं है या फिर और भी फील्ड में ये हाल है... जब बिना डिग्री के आदमी जर्नलिस्ट बन सकता है तो प्रोफेशनल एजुकेशन के नाम पर सभी एजुकेशनल इंस्टीट्यूट को मास कॉम की क्लासेज बंद कर देना चाहिए... हम स्क्रिप्ट लिखना सीखते हैं, फोटोग्राफी सीखते है, voice over देना सीखते हैं, masthead से लेकर slug तक की जानकारी सीख कर आते है, tripod उठाना, लगाना, आर्टिकल लिखना ये सब कुछ सीखने के लिए ढाई तीन लाख रुपये के साथ साथ ज़िन्दगी के 3 साल खर्च करते हैं और हाथ लगता है बाबा जी का ठुल्लू...</p>

Kavish Aziz Lenin : कभी कभी दिल करता है डिग्री फाड़ के फेक दूं…  पता नहीं, जर्नलिज्म में ही डिग्री की वैल्यू नहीं है या फिर और भी फील्ड में ये हाल है… जब बिना डिग्री के आदमी जर्नलिस्ट बन सकता है तो प्रोफेशनल एजुकेशन के नाम पर सभी एजुकेशनल इंस्टीट्यूट को मास कॉम की क्लासेज बंद कर देना चाहिए… हम स्क्रिप्ट लिखना सीखते हैं, फोटोग्राफी सीखते है, voice over देना सीखते हैं, masthead से लेकर slug तक की जानकारी सीख कर आते है, tripod उठाना, लगाना, आर्टिकल लिखना ये सब कुछ सीखने के लिए ढाई तीन लाख रुपये के साथ साथ ज़िन्दगी के 3 साल खर्च करते हैं और हाथ लगता है बाबा जी का ठुल्लू…

Advertisement. Scroll to continue reading.

लोकतंत्र का चौथा स्तंभ अब कमज़ोर नहीं, गिर चुका है। यहां डिग्री लेकर नौकरी करने वालों की ज़रूरत नहीं है. किसी भी आम आदमी को जिसको लिखना पढ़ना भी न आता हो, 5000 रुपये देकर काम कराइये. अखबार के पन्ने यूँ ही भरवाईये, इक्का दुक्का पढ़े लिखों को रखिये ताकि करेक्शन कर सकें… कितने पढ़े लिखे पत्रकार हैं जिनकी मान्यता है, उसकी काउंटिंग भी कराइये… पुराने लोगों की कोई बात नहीं क्योंकि तब ये डिग्री हर जगह दी भी नहीं जाती थी लेकिन आज के दौर में जब जर्नलिस्ट बनने के लिए आपको क्लासेज लेना जरूरी हो चुका है, ऐसे में इन डिग्री धारकों को नज़रंदाज़ करना गलत है…  पत्रकारों के पकौड़े बेचने के दिन करीब आ रहे..

फोटो जर्नलिस्ट कविश अज़ीज़ लेनिन की एफबी वॉल से.

Advertisement. Scroll to continue reading.

Advertisement. Scroll to continue reading.
Click to comment

0 Comments

  1. akhilesh vashishtha

    February 20, 2018 at 8:42 am

    भाई कविश अजीज नमस्कार। पत्रकारिता की डिग्री मत फाड़िये। हालांकि आपके सभी शिकवे जायज हैं। लेकिन डिग्री धारक होने के बाद भी कहीं न कहीं आपके अन्दर पत्रकारिता के लिए जुनून की कमी है। इस लाइन में सफल वही होते हैं जो खतरों से खेलने का शौक रखते हैं। जैसे कि भड़ास वाले यशवन्त सिंह। पत्रकारिता का अर्थ सिर्फ बड़े मीडिया हाउसों में नौकरी करके पैसा कमाना ही नहीं है। बल्कि सच्चे मन से हिम्मत के साथ जनता के लिए काम करना भी है। आप कोशिश करके देखिये आप स्वयं भी अखबार के मालिक बन सकते हैं और दूसरों को नौकरी भी दे सकते हैं। चलने का प्रयास कीजिए सफलता जरूर मिलेगी। यूं हिम्मत हारकर बैठ जाना और अपनी शैक्षिक योग्यता को कोसना मेरे ख्याल से ठीक नहीं है। असफलता ही सफलता की प्रथम सीढ़ी कही जाती है। किसी शायर ने कुछ इस तरह कहा भी है कि हर दिवस शाम में ढल जाता है, हर तिमिर धूप में जल जाता है, ऐ मेरे मन यूं उदास न हो, वक्त कैसा भी हो, बदल जाता है। धन्यवाद। आपका साथी – अखिलेश कुमार वशिष्ठ जिला संवाददाता जनपद एटा हिन्दी दैनिक राजपथ।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Advertisement

भड़ास को मेल करें : [email protected]

भड़ास के वाट्सअप ग्रुप से जुड़ें- Bhadasi_Group

Advertisement

Latest 100 भड़ास

व्हाट्सअप पर भड़ास चैनल से जुड़ें : Bhadas_Channel

वाट्सअप के भड़ासी ग्रुप के सदस्य बनें- Bhadasi_Group

भड़ास की ताकत बनें, ऐसे करें भला- Donate

Advertisement