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केजरीवाल के खिलाफ कार्रवाई से भाजपा फंस गई है, आगे और फंसेगी

संवैधानिक संस्थाओं पर भाजपा का कब्जा रोज साबित हो रहा है, आगे भी होगा, आइये देखें कैसे

संजय कुमार सिंह

दिल्ली के ज्यादातर अखबारों में आज अरविन्द केजरीवाल और जेल से सरकार चलाने की खबर प्रमुखता से छपी है। कहीं लीड है, कहीं सेकेंड लीड। इसमें कई बातें महत्वपूर्ण है और इन खबरों से साफ है कि केजरीवाल की गिरफ्तारी से और कुछ हुआ हो या नहीं, भाजपा फंसी हुई दिख रही है। भले ही खबरों और शीर्षक से आपको ऐसा नहीं लगे पर असल में इस कारण ऐसी बहुत सारी बातें चर्चा में हैं भले गोदी मीडिया इससे बचता है। आइए, आज शीर्षक पहले देख लें।

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अमर उजाला

केजरीवाल का हिरासत से दूसरा आदेश, भाजपा ने उपराज्यपाल से की शिकायत। उपशीर्षक है, कहा – आदेश अवैध व असांविधानिक, जांच कराएं; आरोप : सीएम के लेटर-हेड का दुरुपयोग कर रहीं मंत्री आतिशी।

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नवोदय टाइम्स

सीएम केजरीवाल ने हिरासत से फिर जारी किया निर्देश। मोहल्ला क्लिनिकों और अस्पतालों में मुफ्त दवाओं व मुफ्त जांच में कमी नहीं होने देने के निर्देश। इसके साथ एक और खबर का शीर्षक है, मुफ्त और कल्याणकारी योजनाओं का लाभ मिलता रहेगा : दिल्ली सरकार। इस खबर के साथ एक बुलेट प्वाइंट है, योजनाएं बंद होने की अफवाहों पर ध्यान नहीं देने की अपील। केजरीवाल मामले में निष्पक्ष कानूनी प्रक्रिया की अपील।

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हिन्दुस्तान टाइम्स

हाईकोर्ट में आज जब (जमानत पर) मुख्यमंत्री की अपील पर सुनवाई है तो प्रदर्शन बनाम प्रदर्शन हुआ

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इंडियन एक्सप्रेस

यह खबर लीड है। फ्लैग शीर्षक है, हिरासत से केजरीवाल के निर्देश। मुख्य शीर्षक है, भाजपा ने मुख्यमंत्री के खिलाफ एलजी से शिकायत की, केंद्र और आम आदमी पार्टी अगले कदम की तलाश में,  इंट्रो है, मुख्यमंत्री के पद पर बने रहने के संबंध में कानूनी सलाह ली जा रही है

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द हिन्दू

दिल्ली में आम आदमी पार्टी और भाजपा के प्रदर्शन से जोरदार ड्रामा

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उपशीर्षक है, मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी का विरोध करने के लिए लोक कल्याण मार्ग पर प्रधानमंत्री के निवास की ओर मार्च करते आम आदमी पार्टी के नेताओं को रोका गया; भाजपा के प्रदर्शनकारी मुख्यमंत्री के इस्तीफे की मांग करते हुए सचिवालय की ओर बढ़े।

टाइम्स ऑफ इंडिया

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पुलिस वालों के लिए व्यस्त दिन क्योंकि आप ने प्रदर्शन किया, भाजपा ने जवाबी कार्रवाई की। अखबार में दोनों के प्रदर्शन की फोटो है और साफ दिख रहा है कि सरकारी पार्टी के समर्थकों को भी पुलिसिया वाटर कैनन की मार सहनी पड़ी। आम आदमी पार्टी वालों के साथ जो हुआ वह तो होना ही था। मुझे लगता है इसमें भाजपा कार्यकर्ताओं का उत्साह थोड़ा कम हुआ होगा और वे जरूर चाहते होंगे कि सरकारी पार्टी के कार्यकर्ता होने के नाते उनके साथ राजकुमारों जैसा व्यवहार हो।  

आज मुख्यमंत्री से संबंधित इन खबरों के साथ एक और महत्वपूर्ण खबर है। कायदे से इसे ही लीड होना चाहिये था। केजरीवाल से संबंधित बाकी खबरें इसके साथ हो सकती थीं। लेकिन कई अखबारों में यह पहले पन्ने पर नहीं है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने पहले पन्ने से पहले के अधपन्ने पर दो कॉलम में छापा है। नवोदय टाइम्स में भी यह पहले पन्ने पर प्रमुखता से है। मामला यह है कि केजरीवाल कि गिरफ्तारी पर अंतरराष्ट्रीय नजर है और जर्मनी के बाद अब अमेरिका ने भी कहा है कि निष्पक्ष कानूनी प्रक्रिया की उम्मीद है। जर्मनी ने कहा था- उनका (केजरीवाल का) निष्पक्ष ट्रायल हो। भारत का जवाब- हमारे मामलों में दखल न दें। दरअसल, जर्मनी के विदेश मंत्रालय ने कहा था, हमने इस मामले को नोटिस में लिया है। केजरीवाल को निष्पक्ष और सही ट्रायल मिलना चाहिए। भारत के विदेश मंत्रालय ने आपत्ति जताई और जर्मन एम्बेसी के डिप्टी हेड को तलब कर कहा कि जर्मनी भारत के आतंरिक मामलों में दखलंदाजी न करे। अब जब अमेरिका ने वही किया है तो यह महत्वपूर्ण खबर है और देखना है भारत क्या करता है। मीडिया का काम था कि सरकार से पूछकर जनता को बताता कि वह इसे कैसे देखती है। और अब क्या करने की सोच रही है। क्या अमेरिका को भी जर्मनी की तरह हड़काया जायेगा?

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आबकारी मामले में कुछ और तथ्य

– दिल्ली के आबकारी घोटाले से संबंधित मामले में गिरफ्तार के कविता को ईडी रिमांड के बाद न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया है। बेटे की परीक्षा के लिए उन्हें अंतरिम जमानत नहीं मिली। कविता ने कहा है कि उनके खिलाफ मामला मनी लांडरिंग का नहीं, पॉलिटिकल लांडरिंग का है।  

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दिल्ली शराब घोटाले के करीब 60 करोड़ रुपये का मनी ट्रेल भाजपा के खाते में मिलने के बाद आम आदमी पार्टी ने भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा की गिरफ्तारी की मांग की है। आप नेताओं के अनुसार, अरविंद केजरीवाल की गिरफ़्तारी एक आदमी के बयान के आधार पर हुई है, जिसका नाम शरत चंद रेड्डी है। शरत चंद्र रेड्डी अरबिन्दो फ़ार्मा नाम की एक बहुत बड़ी दवाई कंपनी के मालिक हैं। इनके पास कई और कंपनियां भी हैं, जिसमें से दो प्रमुख कंपनियां एपीएल हेल्थ केयर और यूजीआ फ़ार्मा है।

– इन्हें 9 नवंबर 2022 को पूछताछ के लिए बुलाया गया और इन्होंने साफ-साफ कहा कि वो न तो अरविंद केजरीवाल को जानते हैं, न उनसे मिले हैं और न ही आम आदमी पार्टी से उनका कोई लेनदेन है। भाजपा को इलेक्टोरल बांड से पैसे दिये गये हैं। उसकी ट्रेल मिल गई है।

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– इस बयान के अगले दिन ही शरत चंद्र रेड्डी को ईडी द्वारा गिरफ़्तार कर लिया गया। कई महीने जेल में रहने के बाद एक दिन इन्होंने अपना बयान बदला और कहा कि मैं अरविंद केजरीवाल से मिला भी और शराब घोटाले पर उनसे बात भी हुई। यह बयान के देने के कुछ समय बाद ही शरत चंद रेड्डी को बेल मिल गई है। सत्येन्द्र जैन को नहीं मिली है।

साफ होता है कि भाजपा के विरोधियों को राहत नहीं है पर दूसरों को (इलेकटोरल बांड देकर ही सही) राहत है। राजनीतिक दलों का कहना है कि उनपर भाजपा का साथ देने के लिए दबाव है।  

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इससे पहले आपको बता चुका हूं कि, देश में जो राजनीति और हेडलाइन मैनेजमेंट चल रहा है उसमें नरेन्द्र मोदी फंस गये लगते हैं और इलेक्टोरल बांड के खुलासे के बाद दोनों कारणों से अरविन्द केजरीवाल की गिरफ्तारी ‘जरूरी’ थी। वैसे भी देश में बहुदलीय व्यवस्था है और भारत राज्यों का संघ है और यह केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के प्रमुख राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से काफी अलग है। इसलिए गिरफ्तारी का निर्णय चाहे जिसका हो, केजरीवाल और उनकी पार्टी को कई बड़े फायदे हुए। सबसे बड़ा यह कि उनपर भाजपा की बी टीम होने का दाग खत्म हो गया। जो पूरे के पूरे दल का भाजपा में विलय करवाकर भी नहीं धुला है। अरविन्द केजरीवाल नरेन्द्र मोदी की राजनीति जानते हैं, इसलिए उनने इस्तीफा नहीं देकर केंद्र सरकार के लिए संकट बना दिया है। ऐसा नहीं है कि इस मामले को ठंडे बस्ते में रखकर सरकार बच जायेगी। तब इसका फायदा वे बाद में उठाते रहेंगे और अगर दिल्ली के उपराज्यपाल के जरिये कुछ करने की कोशिश की गई तो तथ्य यह है कि उनके खिलाफ मेधा पाटकर से मारपीट का 20 साल से भी पुराना मामला लंबित है और संवैधानिक पद पर होने के कारण उन्हें अदालत से ‘राहत’ मिली हुई है जो केजरीवाल को मुख्यमंत्री रहते नहीं मिली। ऐसा हुआ तो इसीलिए कि जो व्यवस्था है उसमें यही होना था।

इतना ही नहीं, सुप्रीम कोर्ट में केजरीवाल का मामला न्यायमूर्ति बेला त्रिवेदी की पीठ में गया और भले ही बाद में याचिका वापस ले ली गई पर यह चर्चा तो चल ही गई कि राजनीतिक मामले बेला त्रिवेदी की पीठ में जाते हैं और जमानत नहीं होती है। यह भी व्यवस्था का भाग है। दिल्ली हाईकोर्ट ने केजरीवाल मामले में छुट्टियों से पहले अर्जेन्ट सुनवाई नहीं की (जबकि सुप्रीम कोर्ट तैयार हो गया था) और अगर आज हाईकोर्ट से राहत नहीं मिली तो व्यवस्था फिर उजागर होगी और मिल गई तो सरकार पर आरोप सही साबित होगा, केजरीवाल और आक्रामक होंगे तथा मामला सुप्रीम कोर्ट में जायेगा। वहां भी मुद्दा हिरासत से सरकार चलाने का होगा और जमानत नहीं मिली तो यही साबित होगा कि मुकदमे (या आरोप के कारण भी) आदर्श स्थिति में जिसे संवैधानिक पद पर नहीं बैठाना चाहिये था उसे मंत्री भी बनाया जाता रहा है और अदालत से राहत भी मिलती रही है जबकि राहुल गांधी को कर्नाटक में यह पूछने के लिए गुजरात में सजा हो गई कि सभी चोरों का नाम मोदी क्यों होता है। राहुल गांधी को हाईकोर्ट से भी राहत नहीं मिली थी जबकि सुप्रीम कोर्ट में राहत मिली तो यह भी सार्वजनिक हो गया कि निचली अदालतों का फैसला कैसे दोषपूर्ण था। केजरीवाल के मामले में यही सब दोहराया जायेगा और एक बार तो संयोग हो सकता है, दो बार साबित व सार्वजनिक हो जाये तो यह यकीन हो जायेगा कि संवैधानिक संस्थाएं भी वैसे ही काम कर रही हैं जैसे केंद्र में सत्तारूढ़ सरकार चाहती है।     

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वैसे भी, भाजपा शासन में अगर ईडी-सीबीआई की कार्रवाई सिर्फ गैर भाजपाइयों के खिलाफ हो रही है, पार्टी के रूप में भाजपा वाशिंग मशीन की तरह काम कर रही है, अदालतों से भाजपाइयों को राहत मिल रही है और दूसरे लोगों को नहीं मिल रही है तो यह स्पष्ट है कि सभी संवैधानिक संस्थाओं पर भाजपा या केंद्र सरकार का कब्जा है। चुनाव आयोग पर कब्जा कैसे किया गया उसे हमने हाल में देखा है और यह भी कि कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने की कार्रवाई कैसे की गई। उसमें लोकतंत्र का क्या हुआ और बाद की शिकायतों पर क्या हुआ। इसमें किसकी सुनी गई, किसकी देर से सुनी गई और क्या फैसला हुआ सब अपनी जगह महत्वपूर्ण है और कहने की जरूरत नहीं है कि ज्यादातर मामलों में वही हुआ जो सरकार चाहती थी। इलेक्टोरल बांड के साथ भी ऐसा ही था। हालांकि सरकार को कामयाबी नहीं मिली। अब इसमें कोई शक नहीं है कि असंवैधानिक होने के बावजूद भाजपा ने हजारों करोड़ की वसूली कर ली। अब जब सब सार्वजनिक हो चुका है तो वह दूसरे दलों को मिली राशि और अपने सांसदों की संख्या के आधार पर उसे आनुपातिक तौर पर ठीक बता रही है जबकि दूसरे दलों ने अगर वसूली की है तो उसे रोकना सरकार और उन्हीं सरकारी (संवैधानिक) एजेंसियों का काम था जिनपर भाजपा के लिए वसूली करने या भाजपा की वसूली में सहयोग करने का आरोप है या जो दिखाई दे रहा है। असंवैधानिक बांड की व्यवस्था करने के लिए किसी कार्रवाई की मांग भी नहीं है।

जाहिर है, बाकी दलों को मिले चंदे की तुलना भाजपा अपनी वसूली से कर रही है और उसे चंदा अलग से मिला है जो पीएम केयर्स या प्रधानमंत्री राहत कोष से भी अलग है। आम आदमी पार्टी का मामला अगर गोवा चुनाव के लिए पैसे लेने का है तो भाजपा की पूरी वसूली या चंदे को क्या कहा जाये? क्या वह आम आदमी पार्टी को एक्साइज घोटाले में कथित रूप से मिली घूस से अलग है? और अगर केजरीवाल की पार्टी को मिला पैसा घूस है और भाजपा को मिला पैसा दान या इलेक्टोरल बांड हो भी तो जनता को या देश को क्या फर्क पड़ा और बहुप्रचारित काले या सफेद धन में क्या फर्क है? यही ना कि एक के लिए कोई कार्रवाई नहीं होती और दूसरी के लिए भाजपा के विरोधी दल के मुख्यमंत्री को भी गिरफ्तार कर लिया जाता है, जमानत भी नहीं मिलती। भाजपा समर्थक मुख्यमंत्रियों के लिये राज्यपाल से जो सब करवाया गया कि उन्होंने पद ही छोड़ दिया।  

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कांग्रेस के बैंक खाते फ्रीज

संवैधानिक संस्थाओं पर कब्जा और उनकी मनमानी का मामला कांग्रेस के बैंक खाजे फ्रीज किये जाने से भी साफ होता है। सत्तारूढ़ पार्टी को मुख्य टक्कर दे रही कांग्रेस को आर्थिक रूप से कमजोर करने के लिए न सिर्फ उसके खाते फ्रीज कर दिये गये हैं, अपील आदि से भी राहत नहीं मिली और आज की खबर के अनुसार आयकर विभाग ने हाल में पार्टी के खाते से 135 करोड़ रुपये ले लिये हैं और अब 2014-21 के बीच 523.87 करोड़ रुपये के कथित बेहिसाब लेन-देन का पता चला है और पार्टी को शक है कि इसपर भी भारी जुर्माना लगाया जायेगा तथा नई मांग की गणना ब्याज समेत की जायेगी। कहने की जरूरत नहीं है कि यह कार्रवाई चुनाव से पहले या चुनाव के बाद भी हो सकती है पर अभी ही किये जाने का मतलब समझना मुश्किल नहीं है और कोई भी स्वतंत्र व निष्पक्ष एजेंसी ऐसे समय में ऐसी कार्रवाई शायद ही करे।

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लद्दाख में आंदोलन

भारतीय जनता पार्टी की सरकार की घोषित उपलब्धियों में एक है, अनुच्छेद 370 हटाना। उसके साथ कश्मीर को राज्य से दो केंद्र शासित प्रदेश में बांट दिया गया था। इनमें से एक लद्दाख में सरकार के खिलाफ भारी असंतोष है और खबर है कि जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक 21 दिनों से भूख हड़ताल पर थे। वे लद्दाख के लिए राज्य के दर्जे तथा उसे संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने की मांग कर रहे थे। चर्चित फिल्म, थ्री इडियट्स के आमिर खान का किरदार फुंगशुक वांगडू सोनम वांगचुक पर ही आधारित था। उन्होंने मंगलवार की शाम एक बच्ची के हाथ से जूस पीकर अपनी भूख हड़ताल समाप्त की। मुझे याद नहीं है कि इस आंदोलन की खबर मेरे सात अखबारों में किसी में पहले पन्ने पर छपी हो। आज जब यह अनशन खत्म हो गया है तो मैं इसे पहले पन्ने पर ढूंढ़ रहा था। इंडियन एक्सप्रेस में यह खबर अंदर यह खबर होने की सूचना पहले पन्ने पर है।

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इस और दूसरी खबरों के अनुसार, वांगचुक ने कहा है, ‘भूख हड़ताल का पहला चरण आज समाप्त हो रहा है, लेकिन यह आंदोलन का अंत नहीं है।’ इससे पहले, दिन में उन्होंने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से इस केंद्रशासित प्रदेश के लोगों से किए गए वादे को पूरा करने की अपील दोहराई। उन्होंने लोगों से आगामी लोकसभा चुनाव में देश हित में ‘बहुत सावधानी से’ अपने मताधिकार का इस्तेमाल करने का भी आह्वान किया। दिल्ली में इन खबर को महत्व क्यों नहीं मिला समझा मुश्किल नहीं है। ‘एक्स’ पर एक वीडियो संदेश डालकर वांगचुक ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भाजपा द्वारा अपने चुनावी घोषणा पत्र में किए गए वादे की याद दिलायी और कहा कि मोदी तो रामभक्त हैं, इसलिए उन्हें उनकी (राम की) शिक्षा ‘प्राण जाए पर वचन न जाय’ का पालन करना चाहिए.

आज की कुछ और प्रमुख खबरें : भारत में रोजगार की स्थिति खराब, आईएलओ की रिपोर्ट। हिमाचल विधानसभा उपचुनाव में कांग्रेस के छह बागी विधायक भाजपा के उम्मीदवार बना दिये गये। उड़ीशा के बाद पंजाब में अकालियों से भाजपा का कोई गठजोड़ नहीं हुआ। अकेले लड़ेगी चुनाव।

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