इसमें पत्रकारिता का पतन समझिये – एक तरफ तो सरकार ‘नारी शक्ति वंदन’ का ढिंढोरा पीट रही है और मारे गये 29 माओवादियों में 15 महिलायें हैं, पहलवान बेटियों का हाल आप जानते हैं फिर भी पत्रकारों की चिन्ता है कि राहुल गांधी वायनाड से क्यों लड़ रहे हैं
संजय कुमार सिंह
लोकसभा के लिए होने वाले 2024 के आम चुनाव के पहले चरण के लिए मतदान कल है और चुनाव प्रचार कल खत्म हो गया। आज के अखबारों की खबरों के लिहाज से आज का दिन महत्वपूर्ण है और उसी हिसाब से हेडलाइन मैनेजमेंट दिख रहा है। इसमें खबरों और पत्रकारिता की ऐसी-तैसी अब मुद्दा ही नहीं है। इसमें यह भी महत्वपूर्ण है कि कल राम नवमी थी और अयोध्या में मंदिर मुद्दे को राजनीतिक रंग देने की कोशिशें नाकाम रहीं तो आगे बढ़ते हुए सूर्य तिलक का कार्यक्रम रखा गया था। कल दिन में जितना प्रचार संभव हुआ किया गया। आज हिन्दी के मेरे दोनों अखबारों की टॉप की खबर यही है। नवोदय टाइम्स में तो लीड यही है। उपशीर्षक है, विज्ञान से पूजे गये भगवान। मुझे लगता है कि संपादक इस पूजन से बहुत प्रभावित नहीं हो तो इसमें कोई खबर नहीं है। खासकर तब जब सत्तारूढ़ दल को सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की उसकी कोशिशों और उपायों के लिए जाना जाता रहा है।
अमर उजाला में चुनावी खबर लीड है, “21 राज्यों की 102 सीटों पर थम गया चुनाव प्रचार, मतदान कल”। सूर्यतिलक की खबर इस लीड के ऊपर, राम लला की फोटो के साथ आठ कॉलम में है। इसके साथ प्रधान प्रचारक के सोशल मीडिया हैंडल से ली गई सूचना भी है, मेरे लिये यह भावुक पल : मोदी। इन और ऐसी खबरों के साथ पहले पन्ने पर दो कॉलम (लगभग) में एक खबर का शीर्षक है, चुनाव आयोग ने बंगाल के राज्यपाल से कहा – कूच बिहार का दौरा रद्द करें। यह खबर द हिन्दू में लीड है। यहां सूर्य तिलक की खबर तो नहीं है पर सिंगल कॉलम की एक खबर से बताया गया है कि दिल्ली में भाजपा का नवरात्रि अभियान पूरा हुआ। इस खबर के अनुसार, भाजपा के सात लोकसभा उम्मीदवारों ने नवरात्र के दौरान राजधानी दिल्ली में 400 से ज्यादा (पार) धार्मिक आयोजनों में हिस्सा लिया।
द हिन्दू में पहले पन्ने पर सिंगल कॉलम की खबरों की बात करूं तो अंदर एक खबर होने की सूचना है, ऐकेडमिक शोमा सेन पांच साल बाद जेल से रिहा। सामाजिक कार्यकर्ता हिमांशु कुमार ने इस संबंध में फेसबुक पर लिखा है, “शोमा सेन कॉलेज में प्रोफेसर थीं। आदिवासियों पर होने वाले सरकारी अत्याचारों के खिलाफ लिखती बोलती थीं। मोदी सरकार ने फर्जी मामले में उनको जेल में डाल दिया। उस फर्जी केस में उनकी तरह के 15 और सामाजिक कार्यकर्ता वकील और पत्रकारों को भी जेल में डाल दिया गया। 5 साल 10 महीने और 14 दिन के बाद सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि हमें शोमा सेन की जरूरत नहीं है आप इन्हें घर जाने दे सकते हैं। मतलब सरकार के पास ना तो कोई सबूत था ना कोई मामला था लेकिन सरकार की आलोचना करने वालों को इस तरह से फर्जी मामला बनाकर जेल में डाल दिया गया। कोई देश विकसित तब माना जाता है जब वहां न्यायपालिका स्वतंत्र हो लोगों के मानव अधिकारों की रक्षा हो।”
इसके लिए जरूरी है देश में स्वतंत्र और मजबूत मीडिया हो। जब मीडिया स्वेच्छा से गुलामी करने लगे तो व्यक्ति विशेष की क्या हैसियत रह जायेगी पर वह सब अब मुद्दा नहीं है। अब टू मच डेमोक्रेसी की बात होती है पुलिस कार्रवाई में 29 माओवादियों को मार डालने का फॉलोअप आज इंडियन एक्सप्रेस, हिन्स्तान टाइम्स और टाइम्स ऑफ इंडिया में पहले पन्ने पर है। सूर्य तिलक नहीं होता तो शायद इसपर ध्यान गया होता पर हेडलाइन मैनेजमेंट यही है। माओवादी होना अपराधी होना नहीं है और हो भी तो बिना सुनवाई कथित कार्रवाई में मार दिया जाना उचित नहीं है। इंडियन एक्सप्रेस और हिन्दुस्तान टाइम्स ने आज शीर्षक से बताया है कि मारे गये 29 लोगों में 15 महिलायें हैं और यह तब हुआ है जब सरकार नारी शक्ति वंदन का ढिंढोरा पीट रही है। मुझे लगता है कि वैज्ञानिक और मशीनी उपायों से मंदिर की किसी प्रतिमा पर कुछ मिनट रोशनी के कथित तिलक से बड़ी खबर है कि सरकारी कार्रवाई में 29 इनसान मार दिये गये इनमें 15 महिलायें हैं। ये माओवादी हैं (या नहीं) यह तो बाद की बात है।
ऐसे समय में टाइम्स ऑफ इंडिया की आज की लीड का शीर्षक है, (दिल्ली) हाईकोर्ट ने हत्या के लिए 27 साल पहले गिरफ्तार दो व्यक्तियों को रिहा किया। जाहिर है कि सरकार या व्यवस्था जब राम मंदिर बनाने और सूर्य तिलक की व्यवस्था में लगी थी तो दो व्यक्ति अकारण जेल में थे। और जाहिर है यह कोई अकेला मामला नहीं होगा। खबर के अनुसार इन लोगों के खिलाफ मुख्य सबूत यह था कि वे अंतिम समय में पीड़ित के साथ देखे गये थे। सरकार जनहित देखने और करने की बजाय पुलिस कार्रवाई में कथित अपराधियों को उड़ाने या उड़ाने देने जैसे काम कर रही है। विरोध करने वालों को जेल में बंद कर रखा है सो ह अलग और यह सब न्यायपालिका के आदेश पर है जो खुद स्पष्ट नहीं है। पर देश समाज में कोई प्रतिक्रिया नहीं है और अगर है तो उसकी अभिव्यक्ति नहीं है। पर सूर्य तिलक से राजा के भावुक होने की खबर या स्वीकारोक्ति खबर है।
इसका असर पश्चिम बंगाल के चुनाव प्रचार में दिख रहा है। द टेलीग्राफ का शीर्षक है, If it is Ram Navami, the twain shall meet. इसमें twain shall meet अंग्रेजी के मुहावरे never the twain shall meet से लिया गया है। twain मतलब दो लोग होता है पर यह उनके लिए कहा जाता है जब दोनों बिल्कुल अलग हों, एक दूसरे के अनुपयुक्त या असहमत रहने वाले लोग हों। अखबार ने अपनी खबर में बताया है कि तृणमूल कांग्रेस ने रामनवमी का अधिकतम लाभ लेने की कोशिश की भले इसका मतलब यह हो कि भाजपा के साथ जुलूस में शामिल होना पड़े। अखबार में पहले पन्ने पर तीन कॉलम की फोटो का कैप्शन है, राम-राम : (बायें से) दार्जिलिंग से भाजपा उम्मीदवार राजू बिस्ता, भाजपा नेता ननटू पाल, पापिया घोष (दार्जिलिंग जिला तृणमूल अध्यक्ष) और निर्णय राय (दार्जिलिंग जिला युवा तृणमूल अध्यक्ष) सिलिगुड़ी में एक साथ राम नवमी जुलूस में। द टेलीग्राफ की आज की लीड का शीर्षक है, द पॉलिटिकल फ्रीलांसर्स। इसमें बेरोजगार युवकों के बारे में बताया गया है जो नौकरी नहीं होने के कारण राजनीतिक दलों के लिए काम करते हैं और इसमें उनकी कोई प्रतिबद्धता नहीं है तथा जिससे जो काम मिल जाता है वही करते हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया में बस्तर एनकाउंटर के फॉलोअप का शीर्षक है, 20 घंटे की पैदल यात्रा, चार घंटे की गोलीबारी। लेकिन खबर तो इंडियन एक्सप्रेस में है। टाइम्स ऑफ इंडिया की खबर रश्मि द्रोलिया की है और इसमें पहले पन्ने पर छपे हिस्से में यह नहीं बताया गया है कि मरने वाले 29 में 15 महिलाएं हैं। यह खबर 44 हत्या और छह वीरता पदक विजेता लक्ष्मण केवट की कहानी सुनाती है। इंडियन एक्सप्रेस में भी एक हाईकोर्ट की खबर है। यहां यह लीड नही है। एक्सप्रेस की लीड का शीर्षक है, “पहले चरण का प्रचार खत्म हुआ तो मोदी ने अपनी ‘गारंटी’ बताई तो राहुल ने ‘खतरे’ की बात की”। चुनाव प्रचार के पहले चरण के अंत की इस खबर के साथ अखबार ने इलाहाबाद हाईकोर्ट के फैसलों का अध्ययन करके बताया है कि हाईकोर्ट ने कानून की अलग व्याख्या की है। कहने की जरूरत नहीं है कि इस खबर से सरकारी नीतियों का असर अदालत के फैसलों पर भी पड़ता दिखता है। मीडिया का काम है, वास्तविकता को सामने लाना। जिसे देखना-ठीक करना है वह अपना काम करे। इस बीच जनता या मतदाता के लिए डबल इंजन की सरकार के काम का एक और उदाहरण है जिससे वह अपने वोट तय कर सकती है।
हिन्दुस्तान टाइम्स की लीड भी आज चुनाव प्रचार की खबर है। इसके साथ सिंगल कॉलम की खबर है, “पहले चरण के भाजपा उम्मीदवारों को मोदी ने लिखा : सामान्य चुनाव नहीं है”। बेशक यह बड़ी खबर है। दो बार का प्रधानमंत्री और सीधे मुख्यमंत्री की कुर्सी से राजनीति शुरू करने वाला नरेन्द्र मोदी जैसा एंटायर पॉलिटिकल साइंस का ज्ञाता, जो झोला उठाकर चल देने की बात करता था और अब तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने की कोशिश में है और अपने उम्मीदवारों को चुनाव प्रचार का समय लगभग खत्म होने के बाद पत्र लिखकर बता रहा है कि यह चुनाव सामान्य नहीं है तो इसके कई मायने हैं। निश्चित रूप से यह बड़ी खबर है। भले हेडलाइन मैनेजमेंट का भाग हो और नहीं छपी है तो माना जा सकता है कि अब सरकारी हेडलाइन मैनेजमेंट नहीं चल रहा है पर खबर तो खबर है।