समीरात्मज मिश्रा-
लखीमपुर हिंसा में झगड़े की जड़ें जहां से शुरू होती है, वो परिदृश्य से बिल्कुल बाहर हैं. केंद्रीय गृह राज्य मंत्री अजय मिश्र के गांव में होने वाला दंगल और उस दंगल में बतौर मुख्य अतिथि बुलाए गए यूपी के डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य दोनों ही चर्चा में नहीं हैं.
केशव प्रसाद मौर्य का घटना के बाद से शायद कोई बयान भी नहीं आया है और दंगल कहां होना था ये तो लोग भूल ही गए हैं, असल दंगल कहां हो गया, अब वही चर्चा के केंद्र में है.
डिप्टी सीएम केशव प्रसाद मौर्य के परिदृश्य से बाहर होने की वजह से यह सवाल भी नहीं पूछा जा रहा है कि जब इंटेलिजेंस की रिपोर्ट ऐसी थी कि विरोध हो सकता है, हेलिपैड को भी किसानों ने खोद डाला था, इलाक़े में हर छोटे-बड़े बीजेपी नेता को काले झंडे दिखाने का सिलसिला जारी है, तो ऐसी कौन सी ज़िद थी कि हेलिकॉप्टर की बजाय रोड से ही पहुंचकर दंगल का उद्घाटन करने के लिए प्रेरित कर रही थी?
दरअसल, अजय मिश्र टेनी और केशव प्रसाद मौर्य दोनों को शायद इस बात का अंदाज़ा नहीं रहा होगा कि ऐसा भी हो सकता है. अंदाज़ा तो ख़ैर किसी को भी नहीं रहा होगा कि ऐसा भी किया जा सकता है (प्रदर्शन करके वापस लौट रहे किसानों पर गाड़ियों का झुंड चढ़ जाए और किसान रौंद दिए जाएं).
अंदाज़ा बस इस बात का रहा होगा कि किसान प्रदर्शन करेंगे, काले झंडे दिखाएंगे, हंगामा करेंगे और ज़ाहिर है, इन सबसे यही बात सामने आती कि राज्य में क़ानून-व्यवस्था कैसी है कि डिप्टी सीएम और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के कार्यक्रम के बावजूद सुरक्षा व्यवस्था इतनी लचर थी कि किसान वहां पहुंच गए. राज्य के क़ानून-व्यवस्था की ज़िम्मेदारी तो सीएम योगी आदित्यनाथ पर ही है. वो सीएम तो हैं ही, गृह जैसे महत्वपूर्ण मंत्रालय के लिए उन्हें 324 विधायकों में अपने से ज़्यादा योग्य और अनुभवी कोई मिला भी नहीं, जिसे सौंप देते. इसलिए यह विभाग भी उन्हीं के पास है.
केशव प्रसाद मौर्य और अजय मिश्र टेनी इन सबके बावजूद क़ानून-व्यवस्था बिगड़ने की क़ीमत पर भी यदि किसानों के विरोध का सामना करने की हिम्मत जुटा रहे थे, तो संभव है उन्हें किसी ‘ऊपरी शक्ति’ से भी ताक़त मिल रही हो. लेकिन केंद्रीय मंत्री अजय मिश्र के बेटे का आत्मविश्वास अपने पिता से भी बढ़कर था. उसे इस ‘ऊपरी शक्ति’ पर कुछ ज़्यादा ही भरोसा था इसलिए किसानों को रौंद देने से भी नहीं हिचका. उसे इस बात का ज़रूर विश्वास था कि वो कुछ भी कर दे, उसका कुछ नहीं होगा.
लेकिन योगी आदित्यनाथ इस पूरे खेल को भली-भांति समझ गए या फिर समझा दिए गए. उन्होंने एक बार फिर ये साबित किया कि सीएम की कुर्सी उन्हें भले ही किसी की कृपा से मिली हो लेकिन इस पर बने रहने के लिए वो किसी की कृपा के मोहताज़ नहीं हैं. केंद्रीय नेतृत्व को उन्होंने एक बार फिर चुनौती दी है.
घटना के दिन ही नाराज़ किसानों से बात करते हुए ज़िले के पुलिस अधिकारी के तेवर बता रहे थे कि उसे शासन से किस तरह की कार्रवाई के निर्देश मिले हैं. लखीमपुर के अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक किसानों से इस बात पर ज़ोर देकर शांत करने की कोशिश कर रहे थे कि ‘जो भी दोषी हैं, सबके ख़िलाफ़ कार्रवाई होगी और जिस धारा में आप कहेंगे, उस धारा के तहत कार्रवाई होगी.’ अजय मिश्र के बेटे के ख़िलाफ़ एफ़आईआर भी इसी तेवर का नतीजा है.
लखीमपुर में जो कुछ हो गया, दोषियों को उस अपराध से बचाने की कोशिश करने की हिम्मत कोई बड़ा नेता अब भी नहीं जुटा पा रहा है. हालांकि पर्दे के पीछे से ये कोशिश जारी है. लेकिन, योगी आदित्यनाथ के तेवर को देखते हुए अजय मिश्र के बेटे आशीष मिश्र की गिरफ़्तारी तो तय मानी ही जा रही है, अजय मिश्र की केंद्रीय मंत्री की कुर्सी भी खटाई में पड़ गई है.
पीएमओ में तैनाती के बावजूद आईएएस की नौकरी से इस्तीफ़ा देकर यूपी में जनसेवा करने के उद्देश्य से आए अरविंद कुमार शर्मा के आत्मविश्वास को चकनाचूर करके योगी आदित्यनाथ ने जिस तरह से सीधे पीएम मोदी को आंख दिखाने की सफल कोशिश की, लखीमपुर की घटना में उनके निशाने पर आज की तारीख़ में सबसे ताक़तवर नेता माने जाने वाले केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह हैं. अजय मिश्र टेनी का केंद्रीय गृह राज्य मंत्री के पद से देर-सबेर यदि इस्तीफ़ा होता है, तो यह बात और पुख़्ता हो जाएगी.
रही बात केशव प्रसाद मौर्य की तो उन्होंने योगी आदित्यनाथ को सार्वजनिक तौर पर नेता स्वीकार ज़रूर कर लिया था लेकिन ऐसा लगता है कि मन से यह बात उन्होंने शायद ही स्वीकारी हो. और अजय मिश्र टेनी भी यह भूल गए कि वो बीजेपी में भले ही हैं लेकिन उनमें और पूर्व गृह राज्य मंत्री स्वामी चिन्मयानंद में बहुत अंतर है.