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खबरें नहीं हैं फिर भी न्याय यात्रा को पहले पन्ने पर जगह नहीं मिली

संजय कुमार सिंह

आज मेरे सात में से पांच अखबारों में भाजपा का चुनाव प्रचार लीड है। दो अन्य अखबारों की लीड जानने के बाद आप मान लेंगे कि आज पहले पन्ने के लिए खास खबरें नहीं हैं। इस तथ्य के साथ मैं बताना चाहता हूं कि आज भी, जब खबरें नहीं हैं तब भी जिन अखबारों के पास जगह है उनने भी कांग्रेस, राहुल गांधी या न्याय यात्रा की खबर को पहले पन्ने पर जगह नहीं दी गई है। नौ बार के कांग्रेस सांसद कमलनाथ के भाजपा में शामिल होने की अटकलों को जरूर पहले पन्ने पर जगह दी है। निश्चित रूप से यह अटकल भी बड़ी खबर है लेकिन राहुल गांधी की न्याय यात्रा अब भी पहले पन्ने की खबर नहीं है – यह खबरें जानने-पढ़ने वालों के लिए तो खबर है ही। पहले पन्ने या अखबार में कहीं भी प्रकाशित करने के लिए खबरों का चयन और उसे महत्व देने का मामला संपादकीय स्वतंत्रता और विवेक से जुड़ा हुआ है। लेकिन इसके आधार पर जो दिखता है उसे देखना-दिखाना भी जरूरी है। मैं यही कोशिश करता हूं।

आज की दूसरी बड़ी खबर विदेश मंत्री एस जयशंकर के हवाले से है। जर्मनी के म्युनिख सिक्यूरिटी कांफ्रेंस में अपने विचार रखते हुए उन्होंने कहा, भारत चाहता है कि इजराइल असैनिकों की मौत का भी ख्याल रखे (द हिन्दू)। इंडियन एक्सप्रेस ने इसे सेकेंड लीड बनाया है। पहले पन्ने पर बाईलाइन, डेटलाइन और टर्न लाइन मिलाकर कुल खबर 13 लाइनों की है और इतनी ही जगह में दूसरे कॉलम में एस जयशंकर की तस्वीर अमेरिकी, एंटनी ब्लिंकेन के साथ है जिसका कैप्शन पांच लाइनों में है। अखबार ने लगभग इतनी ही जगह तीन लाइन के इसके शीर्षक को दिया है। इसमें बताया गया है कि गुजरे अक्तूबर में इजराइल-हमास युद्ध की शुरुआत के बाद से यह टिप्पणी पहली बार आई है। टाइम्स ऑफ इंडिया ने केजरीवाल की खबर को सेकेंड लीड बनाया है। शीर्षक है, केजरीवाल का एलान, भारत को 2029 में भाजपा से आजाद करा लूंगा। इस खबर का इंट्रो है, मुख्यमंत्री ने दिल्ली विधानसभा में शक्ति परीक्षण जीता।

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द टेलीग्राफ में पहले पन्ने पर दो ही खबरें हैं और दोनों का एक ही मुख्य शीर्षक है। सदन ने निष्कर्ष निकाला कि संविधान की मूल संरचना कायम रखी जाये। मुख्य शीर्षक है, दि प्रिएमबल प्रीवेल्स। यह अखबार समूह के अपने विशेष आयोजन का भाग है और अक्सर ऐसी खबरें पहले पन्ने पर ही होती हैं। इंडियन एक्सप्रेस में कांग्रेस की एक और खबर पहले पन्ने पर है। इसके अनुसार झारखंड के आठ कांग्रेस विधायक मंत्रिमंडल में विभाग के बंटवारे से संबंधित विवाद के सिलसिले में दिल्ली में हैं। द हिन्दू में पहले पन्ने पर वायनाड की एक खबर है। इसके अनुसार हाथी के हमले से तीसरी मौत के बाद वहां प्रदर्शन चल रहा है और वहां के सांसद राहुल गांधी अपनी भारत यात्रा बीच में छोड़कर मृतकों के परिवार वालों से मिलने वहां पहुंच गये थे। इससे पहले भारत जोड़ो न्याय यात्रा कल बनारस में थी और उससे संबंधित खबरें भी पहले पन्ने पर नहीं हैं। पिछली बार एक हाथी की मौत पर राहुल गांधी के विरोधियों ने दिल्ली में अच्छा-खासा हंगामा किया था जैसे राहुल गांधी ने ही हाथी को मार दिया हो। दरअसल हाथियों को डराने के लिए वहां अनानास में पटाखे रखे जाते हैं और ऐसा ही एक अनानास हथिनी के मुंह में फट गया था। मामला चार साल पुराना है और अब लोग हाथी की हिंसा का विरोध कर रहे हैं। यह वैसे ही है कि आवारा कुत्तों और बंदरों की रक्षा के उपाय तो कर दिये गये हैं पर मनुष्यों को उनसे बचाने की कोई व्यवस्था नहीं है। लोग मर रहे हैं पर उसकी चिन्ता जानवरों के मरने से कम है या नहीं है। हालांकि, यह अलग मुद्दा है।

फिलहाल तो यही कि मामला कांग्रेस के खिलाफ हो तो प्रमुखता मिल जाती है, राहुल गांधी को जिम्मेदार तो ठहराया जाता है पर जब वे जिम्मेदारी लेते हैं तो खबर नहीं होती है। और भले ही यह वैसे ही हो जैसे कुत्ता आदमी को काटता है तो खबर नहीं है, आदमी कुत्ते को काटे तो जरूर है। लेकिन इन दिनों पैमाना बदल गया है और आदमी कौन है, ज्यादा महत्वपू्र्ण हो गया है। इसे समझने के लिए पहले यह देख लें कि आज भाजपा के प्रचार की खबर क्या है। सबसे पहले पांच शीर्षक इस प्रकार हैं –  

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1. इंडियन एक्सप्रेस

भाजपा की राष्ट्रीय कौंसिल ने प्रस्ताव स्वीकार किया (फ्लैग शीर्षक)। नड्डा और राजनाथ ने भाजपा के कोरस, मोदी लगातार तीसरी बार सत्ता में आयेंगे – का नेतृत्व किया। प्रधानमंत्री ने पार्टी से कहा, 370 सीटें श्यामा प्रसाद मुखर्जी को श्रद्धांजलि होंगी। इस लीड के साथ कमलनाथ के कांग्रेस छोड़कर भाजपा में जाने की संभावना दो कॉलम में है। हालांकि पहले पन्ने पर जितनी खबर है और जो शीर्षक है तथा उपशीर्षक है उससे लगता है कि कमलनाथ ने इनकार किया है और कहा है, अगर कुछ होगा तो आपको बताउंगा (उपशीर्षक)।

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2. टाइम्स ऑफ इंडिया

पार्टी से प्रधानमंत्री : कमल हमारा उम्मीदवार है, जीतना सर्वोच्च प्राथमिकता है। इस खबर का इंट्रो इस प्रकार है, कहा – जम्मू और कश्मीर पर मुखर्जी के नजरिये के लिए ‘370’ लक्ष्य है। यहां एक छोटी खबर का शीर्षक है, भाजपा 161 सीटों पर फोकस करेगी जिनपर 2019 में हार गई थी। इसके साथ (नीचे) एक और खबर है। कमल, बेटा दिल्ली में, भाजपा में जायेंगे?

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3. हिन्दुस्तान टाइम्स

मोदी ने पार्टी से कहा, गरीब समर्थक के फलक पर चुनाव लड़िये। इस मुख्य खबर के साथ छपी खबर का शीर्षक है, प्रधानमंत्री राम राज्य लाये – भाजपा का प्रस्ताव। कमल नाथ की खबर यहां इस तथ्य के रूप में है कि वे भाजपा में प्रवेश की चर्चा के साथ दिल्ली पहुंचे। पहले पन्ने पर किसानों की भी चर्चा है। इसके अनुसार, आज की महत्वपूर्ण चर्चा से पहले किसानों ने एमएसपी अध्यादेश लाने की मांग की है। हिन्दुस्तान टाइम्स में आज सिंगल कॉलम में संदेशखली की खबर भी है। इसके अनुसार, टीएमसी नेताओं के खिलाफ बलात्कार के आरोप भी जोड़ दिये गये हैं। इन दिनों पश्चिम बंगाल के संदेशखली का यह मामला भी मीडिया में प्रिय बना हुआ है। गैर भाजपा शासित राज्यों में अगर कोई ऐसा अपराध हो जाये जिसका मुख्यअभियुक्त सत्तारूढ़ दल का नेता हो तो मीडिया के तेवर ही बदल जाते हैं। कायदे से कोई भी सरकार या पार्टी अपराध होने से रोक नहीं सकती है। मुद्दा अपराधी के खिलाफ कार्रवाई होना चाहिये और जब कार्रवाई चल रही है तो सामान्य है। इसमें अपराधी का नहीं मिलना शामिल है और देर तब माना जाये जब औसत से ज्यादा समय लगे या अपराधी सार्वजनिक तौर पर दिख रहा हो और पुलिस गिरफ्तार न करे। भाजपा से जुड़े नेताओं, अपराधियों के मामले में ऐसा होता है तो मीडिया म्यूट हो जाता है और सोशल मीडिया पर चर्चा हो तो सरकार समर्थकों को तकलीफ होती है। 

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4. अमर उजाला

370 सीटें आंकड़ा नहीं, भाजपा की भावना कमल का फूल ही हमारा उम्मीदवार : मोदी। उपशीर्षक है, प्रधानमंत्री ने राष्ट्रीय पदाधिकारियों की बैठक में दिया मंत्र, बोले, विकास गरीब कल्याण को बनाएं प्रचार का हथियार। इसके साथ की खबरों के शीर्षक हैं, क) हताश व निराश विपक्ष के जाल में न फंसे ख) विकसित भारत और ग) मोदी की गारंटी। 

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5. नवोदय टाइम्स

हर बूथ पर 370 वोट बढायें : मोदी। उपशीर्षक है, भारत मंडपम में भाजपा का दो दिवसीय राष्ट्रीय अधिवेशन शुरू। अखबार में कमल नाथ की खबर पांच कॉलम में बॉटम स्प्रेड है। शीर्षक है, कमलनाथ कमल की ओर, सांसद बेटे ने एक्स से कांग्रेस को हटाया।

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पाकिस्तान जैसा हिन्दुस्तान?  

चुनाव प्रचार और चुनाव जीतने के लिए प्रधानमंत्री ने पार्टी नेताओं और कार्यकर्ताओं से क्या कहा है और अखबारों ने जिस ढंग से उसका प्रचार किया है उसका मतलब है। देश का मीडिया आम आदमी, प्रचारक या कार्यकर्ता नहीं है। उसे यह छूट नहीं दी जा सकती है कि वह सब कुछ समझ नहीं रहा है। वह जो करता है वह आम आदमी की राय बनाने के लिए करता है और सही या गलत जो भी कर रहा है उसकी चर्चा तो मैं रोज करता हूं आज नवोदय टाइम्स के एक शीर्षक या खबरों की समग्र प्रस्तुति ध्यान खींचती लगी। देश में जो सब हो रहा है उससे कई बार लगता है कि भारत हिन्दू पाकिस्तान या वास्तव में हिन्दूस्तान जैसा कुछ हो सकता है। विपक्षी गठबंधन का नाम इंडिया रखे जाने के बाद जिस तरह Bharat कर दिया गया उससे लोकतांत्रिक ढंग से निर्वाचित प्रधानमंत्री की तानाशाही प्रवृत्ति उद्घाटित हुई।

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तब मेरे दिमाग में यह आया था कि तानाशाही ही करनी होगी तो निर्वाचित, लोकतांत्रिक, निहत्था (या शाखा वाला) करेगा या कोई फौजी। पता नहीं यह चिन्ता किसी और को हुई थी या नहीं पर आज यह शीर्षक और प्रस्तुति देखकर लग रहा है कि भारत में भी ऐसी खबरें हो सकती हैं। पता नहीं तब ऐसे छपे या नहीं है। वह विकास होगा या पतन या फिसलन यह सब अलग बात है। मुद्दा यह है कि उसपर चर्चा नहीं होती है। ऐसी संभावना या आशंका हम नहीं देखते हैं। पर खबर तो खबर है। आज यहां की कल वहां की। जैसे आज इजराइल पर भारत की राय स्पष्ट हुई वैसे ही कुछ समय बाद यहां की स्थितियां स्पष्ट हो सकती हैं। खबरों और न्याय के मामले में देरी का अपना महत्व है।

न्याय यात्रा की खबर

राहुल गांधी की जो खबरें नहीं छपीं उसका पता कांग्रेस के इस दो ट्वीट से चलता है – (एक) आज सुबह राहुल गांधी जी ने काशी में बाबा विश्वनाथ के दर्शन किए। वहां हमारे कैमरे की अनुमति निरस्त कर बताया गया कि मंदिर के पीआरओ तस्वीरें साझा कर देंगे, पर हमें दर्शन की कोई फोटो नहीं दी गई। भाजपा की ऐसी ओछी हरकतों से यह न्याय का महासंग्राम और मजबूत होगा।  (दो) आज सवेरे करीब 10.30 बजे राहुल गांधी जी ने काशी में बाबा विश्वनाथ मंदिर में दर्शन और अभिषेक किया। अंतिम क्षण पर मंदिर में जाने के लिए हमारे कैमरा को मिली अनुमति निरस्त कर दी गई। ज़िला प्रशासन ने आश्वस्त किया कि मंदिर के कैमरापर्सन द्वारा फोटो साझा की जाएगी। साढ़े तीन घंटे तक लगातार प्रयास करने पर भी फोटो उपलब्ध नहीं कराई गई। फिर कुछ 7 तस्वीरें भेजी गईं, जिनमें से एक भी दर्शन करने की नहीं हैं – जबकि मंदिर के कैमरापर्सन ने फोटो खींची थीं। ऐसा करके वाराणसी के जिला प्रशासन ने एक बार फिर यह साबित कर दिया कि वह दिल्ली में बैठे ‘कैमराजीवी’ के मुलाजिम से ज़्यादा और कुछ नहीं। यह राजनीति और चाटुकारिता नहीं ओछापन है — पर याद रहे शिव के भक्त को न उनके संकल्प से, न न्याय के इस महासंग्राम से कोई ताकत रोक सकती है। बाबा विश्वनाथ सबका भला करें, दुष्टों को सन्मति दें।

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इस पर भाजपा समर्थकों का कहना हो सकता है कि, धर्म तो व्यक्तिगत होता है। हम क्यों बतायें कि हम कब मंदिर जाते हैं हम चुनावी भक्त नहीं हैं, यही तो कांग्रेस बताती थी। अब वहाँ कैमरे का क्या काम? इसका जवाब यह है कि, वैसे मंदिर जाना या नहीं जाना निजी हो सकता है। पर जब यात्रा सार्वजनिक है, एक उद्देश्य के लिए है तो किसी शहर जार वहां के मिंर में नहीं जाना आस्था का मामला है और जब आस्था चुनावी मुद्दा है तो बताना जरूरी है। इसलिए जाना और फोटो दोनों जरूरी है क्योंकि बाद में आरोप लगाया जाता है कि गये नहीं, सम्मान नहीं है, आस्था नहीं है आदि। पिछली बार यात्रा शुरू हुई थी तो ऐसा आरोप लगा था और तब फोटो काम आई थी। भले यह रणनीति के तहत किया गया हो और अब खिसियानी बिल्ली खंभा नोच रही हो। वैसे भी, मंदिर नहीं जायें तो यह प्रचार कौन करता है कि नेता और पार्टी दोनों हिन्दू विरोधी हैं? और फिर मंदिर जाने से रोकने का मतलब भी तो बताइये।

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