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आयोजन

मुम्बई के मंच पर विष्णु खरे की बोलती बंद

Bodhi Sattva : निराला जी की सरस्वती वंदना का मजाक बनाया खरे जी ने…. कौन कहता है कि कविवर विष्णु खरे जी को नियंत्रित और संयमित या दबा कर बैठाया नहीं जा सकता। 27 फरवरी 2015 को मुंबई विश्वविद्यालय में आयोजित मंगलेश डबराल जी के काव्यपाठ के एक आयोजन में विष्णु खरे को अपनी बोलती बंद रख कर मंच पर काफ़ी समय निर्गुण-निर्विकार संत की तरह मौन बैठना पड़ा। या यूँ कहें कि दबंगई भूल कर दबे रहना पड़ा…. कार्यक्रम के दौरान कवि विष्णु खरे ने अपनी चिरपरिचित दबंग या असंत मुद्रा का विकट प्रदर्शन किया.. अपना रौद्र रूप भी दिखाया। लेकिन संचालन कर रहे गीतकार-कवि देवमणि पाण्डेय जी ने ज़रा भी भाव न खाते हुए उनसे मंच पर अध्यक्षीय गरिमा के साथ और नियंत्रित और संयमित तरीके से यानी का़यदे से बैठने को कहा।

Bodhi Sattva : निराला जी की सरस्वती वंदना का मजाक बनाया खरे जी ने…. कौन कहता है कि कविवर विष्णु खरे जी को नियंत्रित और संयमित या दबा कर बैठाया नहीं जा सकता। 27 फरवरी 2015 को मुंबई विश्वविद्यालय में आयोजित मंगलेश डबराल जी के काव्यपाठ के एक आयोजन में विष्णु खरे को अपनी बोलती बंद रख कर मंच पर काफ़ी समय निर्गुण-निर्विकार संत की तरह मौन बैठना पड़ा। या यूँ कहें कि दबंगई भूल कर दबे रहना पड़ा…. कार्यक्रम के दौरान कवि विष्णु खरे ने अपनी चिरपरिचित दबंग या असंत मुद्रा का विकट प्रदर्शन किया.. अपना रौद्र रूप भी दिखाया। लेकिन संचालन कर रहे गीतकार-कवि देवमणि पाण्डेय जी ने ज़रा भी भाव न खाते हुए उनसे मंच पर अध्यक्षीय गरिमा के साथ और नियंत्रित और संयमित तरीके से यानी का़यदे से बैठने को कहा।

मंगलेश डबराल जी के काव्यपाठ में विष्णु खरे जी नागपुर से विशेष रूप से आमंत्रित थे। लेकिन उन्हें शुद्ध साहित्यिकों के मंच पर गीतकार देवमणि पाण्डेय जी का काव्यपाठ करना सहन नहीं हुआ और उन्होंने देवमणि पांडेय का काव्यपाठ रोकने के लिए अध्यक्षीय शक्ति का शस्त्र के रूप में उपयोग करना चाहा…उनके रोकने पर भी जब देवमणिजी नहीं रुके तो विष्णु खरे जी ने लगभग चीखते हुए धमकी भरे अंदाज़ में कहा कि अगर आप नहीं रुकेंगे तो मैं मंच से उतर जाऊँगा… इस पर संचालन कर रहे कवि देवमणि जी ने पलट कर माइक पर ही आक्रामक मुद्रा में उन्हें जवाब दिया- …आप अध्यक्ष हैं तो चुपचाप बैठिए और डिसिप्लिन में रहिए… विष्णु खरे जी को ऐसे पलटवार की उम्मीद नहीं थी। वे सन्नाटे में आ गए। इसके बाद देवमणि जी ने सामने बैठे आयोजक डॉ.करुणा शंकर उपाध्याय जी से कहा कि …मैं कविता पढ़ूँ या चला जाऊँ… करुणा शंकर जी ने विनम्रता पूर्वक कहा कि आप कविता पढ़ कर मंच का संचालन करते रहें… देवमणि ने श्रोताओं और छात्र-छात्राओं को न सिर्फ मंच से जोड़ा बल्कि पूरा मंच ही दख़ल कर लिया। मंच से उतरने की बात करके भी विष्णु खरे जी मंच पर सिमटे हुए संयमित होकर संत मुद्रा में विराजते रहे… लोग बता रहे हैं कि कार्यक्रम के लिए खास तौर पर नागपुर से हवाई यात्रा करके आए विष्णु जी को तब तक यात्रा और अन्य भत्तों की धनराशि प्राप्त नहीं हुई थी…इसलिए वे दबंग की बजाय दबैले रूप में बैठे रह गए।

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क्या से क्या हो गया यह खरे जी के साथ…दर्शकों-श्रोताओं को विष्णु जी के इस सहनशील रूप से बहुत धक्का लगा…लोग तो उनसे गर्जना-तर्जना की प्रतीक्षा कर रहे थे। जो भी हो यह एक दबंग के दबा दिए जाने की खबर तो है ही… अंत में अपने अध्यक्षीय दायित्व का निर्वाह करनेविष्णु खरे जी माइक पर आए। उन्होंने अपने निराले अंदाज में निराला जी की सरस्वती वंदना वर दे का लगभग मख़ौल उड़ाते हुए उन्होंने ख़ुद की लिखी सरस्वती वंदना पढ़कर सुनाई। इसके बाद उन्होंने एक ग़ज़ल सुनाई जिसको उन्होंने लँगड़ी ग़ज़ल बताया। इसमें उन्होंने करौली, निंबौली, बिनौली आदि की तुकें जोड़ने की मशक़्क़त की थी। उनके काव्य पाठ के बाद इस लंगड़ी ग़ज़ल के सम्मान में संचालक देवमणि पांडेय ने मुनव्वर राना का शेर कोट करके दोबारा खरे जी को घायल किया तो सभागार ठहाकों से गूँज उठा-

गज़ल तो फूल से बच्चों की मीठी मुस्कराहट है
ग़ज़ल के साथ इतनी रुस्तमी अच्छी नहीं लगती

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कार्यक्रम की समाप्ति पर लोगों ने देखा कि परम आदरणीय विष्णु खरे लगभग अलग-थलग हो किसी के साथ कोने में समोसा खाते रहे। यह भी हुआ की कोई छात्र-छात्रा, रचनाकार या प्रोफेसर… उनके पास नहीं गया। कुछ लोगों को गुनगुनाते सुना गया….बड़े बे आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले।

(नोट- यह पूरी बात देवमणि जी और मुंबई के अन्य साहित्यिकों के एसएमएस के आधार पर है..)

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डॉ. बोधिसत्व के फेसबुक वॉल से. उपरोक्त स्टेटस पर आए कुछ कमेंट्स इस प्रकार हैं….

Raag Bhopali काल की पलटी। जीवन यही है। वैसे विष्णुजी किसी जीत हार में नहीं होते। वे खुद में बेखुद होते हैं। वे दुर्गम हैं।हम उनके कायल हैं।

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Anil Janvijay कार्यक्रम के लिए खास तौर पर नागपुर से हवाई यात्रा करके आए विष्णु जी को तब तक यात्रा और अन्य भत्तों की धनराशि प्राप्त नहीं हुई थी…इसलिए वे दबंग की बजाय दबैले रूप में बैठे रह गए। कार्यक्रम की समाप्ति पर लोगों ने देखा कि परम आदरणीय विष्णु खरे लगभग अलग-थलग हो किसी के साथ कोने में समोसा खाते रहे। यह भी हुआ की कोई छात्र-छात्रा, रचनाकार या प्रोफेसर उनके पास नहीं गया। कुछ लोगों को गुनगुनाते सुना गया….बड़े बे आबरू होकर तेरे कूचे से हम निकले।…मज़ा आ गया पढ़कर।

Anupama Tiwari ऐसा होना दुर्भाग्यपूर्ण है, इस स्तर के व्यक्तियों से एक सौहार्द्यपूर्ण और अनुशासित व्यवहार अपेक्षित हैं ……

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Prakash Chandra Giri भाई देवमणि जी को बधाई कि उन्होंने अशिष्टता का मुकाबला साहस के साथ किया।किसी की विद्वता और वरिष्ठता उसे बदतमीज़ी प्रदर्शित करने का लाइसेन्स तो कतई नही देती।

Santosh Mataprasad Prajapati Sanchalak ji ko adhyakshji ne hi adhikar diya hota hai … adhikar se yaad aaya…adhikar hi adhikar par jab shasan kare . Tab chhinana adhikar hi kartavya hai ….vishnuji ne apne kartvya ka nirvahan kiya …khair .raat gayi baat gayi…

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Vidya Chhabra Nirala ki vandana ka arrth unhe kahan samajh aane laga.

Vandana mein pehle aham ka tyag karma hota hai

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Vyomesh Shukla Bodhi Sattva जी : इस रिपोर्ट में कुछ बातें अस्पष्ट हैं. 1. विष्णु खरे संचालक महोदय का काव्यपाठ रोकना क्यों चाहते थे? मेरे ख़याल से यह तभी साफ़ होगा जब संचालक महोदय की पूरी कविता यहाँ उद्धृत की जाय. 2. विष्णु खरे ने निराला की कविता का मज़ाक़ कैसे बनाया? क्या सिर्फ़ अपनी कविता पढ़कर या निराला की कविता के बारे में कुछ कहकर, या दोनों के ज़रिये.

Bodhi Sattva Vyomesh भाई संचालक महोदय की पूरी कविता यहाँ उद्धृत हो जाने के बाद भी किसी को रोकना, फिर यह कहना कि रुको नहीं तो मैं चला जाऊँगा और फिर बैठे रह जाने की व्यथा कथा कैसे साफ होगी ? निराला की कविता का मजाक कैसे उड़ाया और किन प्रयत्नों से उड़ाया इस पर पूरा प्रकाश तब पड़ेगा जब वीणा वादिनी के साथ विष्णु जी की वह कविता यहीं प्रकाशित हो…साथ ही विष्णु जी का वह समूचा वक्तव्य भी उजागर हो….मैं संचालक जी से आग्रह करता हूँ कि वे पूरे परिदृश्य को यहाँ रखें…और अपनी उक्त कविता भी यहाँ रखें, जिसे सुन पाने में पहले विष्णु जी को असमर्थ और फिर विवश श्रोता होना पड़ा…

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Devmani Pandey प्रिय भाई बोधिसत्व एवं सभी दोस्तों का शुक्रिया। विलम्ब के लिए क्षमा। जयपुर की तर्ज़ पर मुम्बई के सर जे.जे.स्कूल ऑफ आर्ट में लिट-ओ-फेस्ट चल रहा है। आज भी वहाँ व्यस्त हूँ। पहले एक महिला का ईमेल जिससे मेरी जान-पहचान नहीं है- … Good evening Devmani Pandey …. Sir jee…I admire your liveliness and more your patience …..today for the first time I heard you doing the compeering of the Hindi dept. program in Marshall Hall at Mumbai University and the way you responded to an old man who tried to stop you in the mid of your reading of the poem…Your response wan graceful sir jee. I would like to meet you some day. I am in the dept. of English in Mumbai University and my name is Bhagyashree Varma. Khush rahe aap aur aap ki khushmizaji yun hi bani rahe….!
*bhagyashree* 27.2.2015

Jai Prakash Tripathi बड़े साहित्यकार के लिए रचना ही नहीं, व्यवहार का भी संतुलन साधते रहना जरूरी होता है। विष्णु जी अक्सर विफल रहते हैं ऐसा करने में। बड़ा दुखद रहा।

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Devmani Pandey दरअसल हुआ यूँ कि चार कवियों के पाठ के बाद जब मंगलेश डबराल के काव्य पाठ की बारी आई तो विष्णु खरे जी टॉयलेट में चले गए। उनकी वापसी के इंतज़ार में वक़्त के गैप को भरने के लिए मैंने अपनी कविताएं सुना दीं। साफ़ कहूँ तो उन्होंने मेरी कविताएं सुनी ही नहीं। आते ही हुक्म सुना दिया…आप बैठ जाइए। शायद उन्होंने सोचा था कि मुझे बैठा कर वो हीरो बन जाएंगे। हुआ उलटा, वे ज़ीरो बन गए। पूरा सभागार मेरे पक्ष में हो गया। लोगों को लगा कि मेरे साथ अन्याय हो रहा है। मुम्बई के एक वरिष्ठ कवि ने बताया कि खरे जी को कोई मनोवैज्ञानिक प्रॉब्लम हैं। वे कई आयोजनों में ऐसा अभद्र व्यवहार कर चुके हैं। कवि मित्र प्रतापराव कदम (खंडवा) का कल फ़ोन आया था। उन्होंने बताया कि ज्ञानरंजन जी के सम्मान समारोह में उन्होंने ज्ञानजी की ही खटिया खड़ी कर दी थी।

Pankaj Dubey बोधिसत्वजी का लेख या कहें रपट पढ़ कर मजा आया सेर को सवा सेर मिल हि जाते हैं. सर देवमणि पांडेजी को बधाई. पहाड़ पर सुबह और पहाड़ पर शाम पढ़ने को मिली. धनयवाद सर प्रणाम.

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राजन ‘विरूप’ का सर इतने छोटे से काम के लिए इतनी मशक्कत। ई काम तो हम 1 रुपये का सेन्टाफ्रेस खिला कर कर सकते थे।

Bodhi Sattva Devmani Pandey जी खरे जी को मनोवैज्ञानिक प्रॉब्लम है या नहीं लेकिन उन्हें सामाजिक प्रॉब्लम तो है…वे अपने को सर्वोपरि समझते हैं..समाजोपरि…

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Bodhi Sattva Vyomesh भाई आप विष्णु जी की सरस्वती संदर्भित कविता भी यहाँ प्रकाशित कर देते तो निराला जी की कविता से तुलना करने में सहूलियत होती…जिसका उन्होंने कैसे भी मजाक बनाया…

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