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सियासत

जज को जबरन रिटायर करने वाले कोलकाता हाईकोर्ट ने खुद पर लगाया एक लाख का जुर्माना

जेपी सिंह

क्या आपने कभी सुना है कि किसी हाईकोर्ट ने खुद पर जुर्माना लगाया हो। शायद नहीं, लेकिन ये हक़ीक़त है। कोलकाता हाईकोर्ट ने न केवल स्वयं पर एक लाख का जुर्माना लगाया यह तल्ख टिप्पणी भी की कि अक्सर लोग जब सामने गलत या कोई अपराध होते हुए देखते हैं तो मुंह फेर लेते हैं। कारण कि वे पुलिस और कोर्ट-कचहरी के चक्कर से बचना चाहते हैं। ऐसे में एक न्यायिक अधिकारी (रेलवे मजिस्ट्रेट) ने ट्रेन लेट होने के मामले जब कदम उठाया तो उन्हें जबरन रिटायर करने जैसी बड़ी सजा मिल गई।

यह काफी हैरान करने वाला फैसला था। कोलकाता हाईकोर्ट ने यह टिप्पणी निचली अदालत के एक न्यायिक अधिकारी (रेलवे मजिस्ट्रेट) को अनिवार्य सेवानिवृत्ति देने के हाईकोर्ट प्रशासन के ही एक आदेश को रद्द करते हुए दी। साथ ही रेलवे मजिस्ट्रेट की तत्काल बहाली के निर्देश दिए हैं।

जस्टिस संजीब बनर्जी और जस्टिस सुर्वा घोष की पीठ ने अपने निर्णय में यह भी कहा कि जुर्माने की रकम अपीलकर्ता रेलवे मजिस्ट्रेट मिंटू मलिक को दी जाएगी। उनका सेवाकाल भी अनवरत माना जाएगा। मिंटू मलिक सियालदह अदालत में रेलवे मजिस्ट्रेट थे। पांच मई 2007 को वह बजबज-सियालदाह लोकल ट्रेन का इंतजार कर रहे थे, लेकिन ट्रेन लेट थी। उन्होंने रोजाना के यात्रियों से पूछताछ की तो पता चला कि ट्रेन अमूमन लेट ही आती है।

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ट्रेन आने पर उन्होंने ड्राइवर से इसकी वजह पूछी, जो जवाब नहीं दे पाए। उन्होंने ड्राइवर और गार्ड को रेलवे मजिस्ट्रेट के समक्ष रिपोर्ट करने के लिए कहा, ताकि मामले पर विस्तृत सुनवाई हो सके। दोनों ने अपनी रिपोर्ट रखी, लेकिन रेलवे मजिस्ट्रेट कोर्ट के बाहर बड़ी संख्या में रेलकर्मी जमा हो गए और नारेबाजी व गाली-गलौच करने लगे। ड्राइवरों के प्रदर्शन में शामिल होने से रेल संचालन तीन घंटे रुका रहा। उच्च न्यायालय ने मामले की जांच करवाई।

प्राथमिक रिपोर्ट के आधार पर मलिक को 2007 में निलंबित कर दिया गया। जांच पूरी होने पर 2013 में उन्हें प्रशासन ने अनिवार्य सेवानिवृत्ति दे दी। मलिक ने राज्यपाल के समक्ष अपील की, लेकिन इसे अस्वीकार कर दिया गया। 2017 में हाईकोर्ट की एकल पीठ ने भी कार्रवाई को यथावत रखा। इस पर उन्होंने खंडपीठ में अपील की, जिसने जिसने उक्त आदेश पारित किया है।

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पीठ ने अपने निर्णय में कहा कि रेलकर्मियों द्वारा दी जा रही धमकियों और अपमान से जज को बचाने के बजाय उन्हें किनारे लगा दिया गया, जबकि वह केवल जनता के हित में सुधार लाना चाहते थे। हो सकता है कि उन्होंने एक गलती को सुधारने के लिए अपनी शक्ति का गलत उपयोग किया हो। खुद प्राथमिक जांच रिपोर्ट मानती है कि उन्होंने दुर्भावना में आकर ऐसा नहीं किया, उन्हें जो सजा दी गई, वह हैरत में डालने वाली है।

प्रयागराज के वरिष्ठ पत्रकार और कानूनी मामलों के जानकार जेपी सिंह की रिपोर्ट.

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