आज सुप्रीम कोर्ट को इलेक्टोरल बांड पर सख्ती दिखानी थी, खानविलकर साब का शपथग्रहण था तो मुझे जज लोया की याद आई
संजय कुमार सिंह
आज जब इलेक्टोरल बांड से संबंधित जानकारी देने के लिए समय मांगने वाली एसबीआई की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई होनी है आज ही इलेक्टोरल बांड से संबंधित जानकारी समय पर नहीं देने के लिए एसबीआई के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई शुरू करने की मांग करने वाली याचिका भी सुनी जानी है तो सरकार से ईनाम पाये सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश एएम खानविलकर लोकपाल की शपथ लेंगे। यह बड़ा संयोग है कि आज ही सुप्रीम कोर्ट को तय करना था कि इलेक्टोरल बांड के मामले में कितनी सख्ती बरती जाये। इसमें जज लोया की याद आना स्वाभाविक है। मीडिया ने मुख्य न्यायाधीश की छवि मोदी विरोधी बना दी है जबकि हर बार फैसला सरकर विरोधी नहीं होता है और जब नहीं होता है तब आलोचना भी होती है। मीडिया को चाहिये कि फैसले को सरकार के समर्थन या विरोध में बताने की बजाय यह बताये कि फैसला कैसे सही है या उसे सही नहीं लगता है। सरकार का विरोधी बनकर रहना भी कम मुश्किल नहीं है। इसलिए ऐसी छवि बनाने से बचना भी मीडिया का काम है। दूसरे स्थिति को सामान्य करने या सामान्य नहीं होने का कारण बताना, उसकी ओर इशारा करना और उसे ठीक करने के उपाय आदि की चर्चा भी मीडिया में होती रह सकती है। पर मीडिया सब भूलकर, सरकार की सेवा में लगा है।
मुझे लगता है कि इस मुश्किल स्थिति से बचने और देश को बचाने का आसान तरीका है कि जो इसके लिए जिम्मेदार लगे उसके चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी जाये। इसके बाद हर कोई अपने विवेक से निष्पक्ष फैसला लेने के लिए स्वतंत्र होगा और किसी के जीतने पर दबाव पड़ने का डर नहीं होगा। यह झंझट ही नहीं रहेगा कि जो चुनाव लड़ेगा वही चुनाव आयुक्त नियुक्त करेगा तो चुनाव निष्पक्ष कैसे दिखेगा। पर आज अखबारों मे ऐसा कोई सुझाव, सवाल या चिन्ता नहीं है। आज के ज्यादातर अखबारों की लीड पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस के उम्मीदवारों की घोषणा और इस आधार पर दोनों के अलग होने से लेकर बंगाल में इंडिया को दफन कर दिये जाने (द टेलीग्राफ) तथा कांग्रेस को चौंकाया (टाइम्स ऑफ इंडिया) जैसे लीड के शीर्षक है। इंडियन एक्सप्रेस में यह लीड नहीं है पर शीर्षक ममता के एकला चलो और इंडिया की उम्मीदों को डुबा देने जैसा है। मेरी चिन्ता यह है कि आम चुनाव कराने के लिए देश के तीन चुनाव आयु्क्तों में से दो नियुक्ति होनी है और जो नियुक्ति करेगा वह चुनाव भी लड़ेगा, चुनाव जीतने का दावा कर चुका है और अब उसके एक नेता ने कहा है कि संविधान बदलने के लिए लोकसभा ही नहीं राज्यसभा में भी बहुमत की जरूरत है और 400 पार की बात नरेन्द्र मोदी इसीलिए कर रहे हैं।
मुझे इसमें बहुमत के दुरुपयोग और संविधान बदलने की तैयारी जैसे गंभीर मु्ददों के बीच निष्पक्ष चुनाव को प्रभावित करने के प्रयास और उसमें मीडिया का सहयोग भी नजर आ रहा है। दुर्भाग्य से तीन में से एक चुनाव आयुक्त का पद खाली होने तथा नियुक्ति से पहले ही दूसरे के इस्तीफा देने तथा राष्ट्रपति द्वारा उसे स्वीकार किये जाने के बाद की स्थिति कई अखबारों के लिए पहले पन्ने पर चर्चा के लायक नहीं है। द हिन्दू में चार कॉलम की लीड है तो इंडियन एक्सप्रेस में दो कॉलम की खबर। इंडियन एक्सप्रेस में विपक्ष का सवाल है और संभव है विपक्ष को भी बराबर महत्व देने की आपचारिकता पूरी करने का भाग हो। मेरे सात अखबारों में अकेले द हिन्दू ने आज इस मुद्दे पर चर्चा को लीड बनाया है। मुख्य शीर्षक है, सीईसी से मतभेद गोयल के इस्तीफे का कारण हो सकता है। उपशीर्षक है, राजीव कुमार के साथ मतभेद इस महीने के शुरू में चुनाव की तैयारियों को देखने के लिए हुए; विपक्ष ने चुनाव आयोग के अधिकारी के इस्तीफे पर सवाल उठाया।
आप जानते हैं कि नरेन्द्र मोदी 2014 का चुनाव कैसे जीते, 2019 में पुलवामा का सहारा मिला और सरकार ज्यादा ताकतवर हो गई या मनमानी की। पहली बार प्रधानमंत्री ने संसद भवन की सीढ़ियों पर माथा टेका था, दूसरी बार संविधान के आगे और अब संविधान बदलने की बात हो रही है। उसके पालन पर जो विवाद है वह अपनी जगह। ऐसे में यह याद करने वाली बात है कि दूसरी बार अमित शाह गृहमंत्री बने जो पूर्व तड़ी पार हैं, कांग्रेसी गृहमंत्री पी चिदंबरम जेल में रहे, उनके खिलाफ क्या मामला था और क्या हुआ। दूसरे विपक्षी नेताओं की क्या स्थिति है और भाजपा कैसे वाशिंग मशीन पार्टी में तब्दील हो गई है। उसी सरकार के समर्थक अब संविधान बदलने की बात कर रहे हैं और उसके लिए बहुमत की मांग और उसकी जरूरत बताई जा रही है। झारंखड के आदिवासी मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन एक पुराने मामले में जेल में हैं और उनकी गिरफ्तारी से पहले सुनावई के लिए बनी सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने दलीलें सुनी ही नहीं।
ऐसे में अखबारों का काम सरकार का प्रचारक या भोंपू होना नहीं, पाठकों को सच बताना है और सच यह है कि 2014 में यह प्रचारित किया गया था देशवासियों के भ्रष्टाचार का पैसा स्विस बैंक में रखा हुआ है। इतना ज्यादा है कि वापस लाया जाये तो हर किसी को 15 लाख मिलेंगे और 100 दिन में वापस लाया जा सकता है। अब हालात यह हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की इलेक्टोरल बांड की योजना को देर से ही सही, असंवैधानिक करार दिया है और एसबीआई उसकी जानकारी देने के लिए 100 दिन से ज्यादा मांग कर रहा है। जाहिर है वह दबाव में है और डिजिटल इंडिया के मोदी सरकार के दावे के बावजूद। यह संयोग हो सकता है पर अमर उजाला ने दोनों खबरों को एक साथ छापा है। होना यह चाहिये था कि आज जज बृजगोपाल हरकिशन लोया पर भी खबर होती। जज लोया की मौत पर संदेश निराधार हो सकता है लेकिन उसका फायदा जिसे मिला उसे मंत्री बनाना क्यों जरूरी था और था तो फिर पुरस्कार क्यों दिये जा रहे हैं और एक क्लिक पर दी जा सकने वाली जानकारी देने के लिए 100 दिन से ज्यादा क्यों मांगे जा रहे हैं। मुझे एक पार्टी की व्यवस्था और चुनाव जीतने की इच्छा कारण लगती है। अगर किसी के चुनाव लड़ने और जीतने के लिए ढेर सारी जायज-नाजायज व्यवस्था की जा रही है, जनादेश के दुरुपयोग के मामले लग रहे हैं तो क्या ऐसे व्यक्ति को चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित नहीं किया जाना चाहिये? मुझे लगता है कि देश को वापस पटरी पर लाने का यह सबसे आसान और गलत होने पर भी न्यूनतम नुकसान वाला तरीका है। लेकिन इसकी तो छोड़िये सिर्फ प्रचार वाली खबरें छपी हैं।
प्रचार वाली आज की सभी खबरें एक साथ पहले पन्ने पर अमर उजाला में है। यहां देखने का फायदा यह भी है कि अनुवाद नहीं करना पड़ेगा और जो भी कहा गया है खुलकर। लीड है, बंगाल में भी विपक्षी गठबंन नहीं, सभी 42 सीटों पर ममता ने उतारे उम्मीदवार। उपशीर्षक है, कांग्रेस के अधीर रंजन के सामाने क्रिकेटर युसूफ पठान को उतारा, महुआ को फिर टिकट। टॉप पर छह कॉलम में शीर्षक है, “एफटीए : भारत में 15 साल में 100 अरब डॉलर निवेश करेंगे चार यूरोपीय देश”। तीसरी खबर है, मोदी के दखल से पुतिन ने टाला था परमाणु हमला, अमेरिकी अधिकारियों के हवाले से सीएनएन ने किया दावा। इसके अलावा, सिंगल कॉलम की खबर से बताया है, चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति के लिए 15 को होगी समिति की बैठक। मनी लांड्रिंग में लालू का करीबी सुभाष गिरफ्तार।
नवोदय टाइम्स
इंडिया से टीएमसी अलग – लीड है। उपशीर्षक है, बंगाल की सभी 42 सीटों पर घोषित किये प्रतयाशी। यहां इसके साथ पहले पन्ने पर दूसरी खबर का शीर्षक है, 40 फीट गहरे बोरवोल में गिरा शख्स, नहीं बच सकी जान। यह खबर अमर उजाला में सिंगल कॉलम में सबसे आखिरी की खबर थी। नवोदय टाइम्स में एक खबर ऐसी भी है जो अमर उजाला में पहले पन्ने पर नहीं है, बृजेन्द्र सिंह ने भाजपा छोड़ कांग्रेस का दामन थामा। आप पूर्व केंद्रीय मंत्री बीरेन्द्र सिंह के पुत्र और हिसार से भाजपा सांसद हैं।
हिन्दुस्तान टाइम्स – अंग्रेजी अखबारों में हिन्दुस्तान टाइम्स में आज किसानों के रेल रोको आंदोलन की खबर लीड है जो हिन्दी अखबारों में पहले पन्ने पर नहीं है। इसका कारण समझना मुश्किल नहीं है। इसका शीर्षक है, किसानों ने रेल रोको का आयोजन किया चार घंटे तक ट्रेन की आवाजाही बाधित रखी। यहां पहले पन्ने की एक खबर का शीर्षक हिन्दी में कुछ इस तरह होगा, “तुष्टीकरण का जहर कमजोर हो रहा है : आजमगढ़ के कार्यक्रम में मोदी”। यहां याद आता है कि दिल्ली की एक सड़क पर नमाज पढ़ रहे लोगों को एक पुलिस वाले ने वर्दी में लात मारी और उसका वीडियो वायरल हुआ तो यह सवाल उठ रहा था कि ऐसा उसने क्यों किया होगा? क्या इससे हमारे विचारों, मान्यताओं या विकास का पता चलता है? इस तरह लात मारना क्या है? मुझे लगता है कि प्रधानमंत्री का ऐसा कहना और इसका शीर्षक बनना ही पुलिस वाले के उस व्यवहार का कारण रहा होगा। वैसे भी, प्रधानमंत्री जब कह चुके हैं कि आग लगाने वाले कपड़ों से पहचाने जाते हैं तो वर्दी वाला, ड्यूटी पर आखिर ऐसा क्यों करेगा?
इंडियन एक्सप्रेस ने यूरोप से करार और उससे निवेश तथा रोजगार की संभावनाओं वाली खबर को लीड बनाया है जो अमर उजाला में टॉप पर है। इस समय रोजगार सबसे बड़ा मुद्दा है और आम समझ है कि यह विदेशी निवेश से बढ़ेगा इसलिये सरकार की विदाई की बेला में इंडियन एक्सप्रेस ने इस खबर को प्रमुखता दी है। हालांकि 15 साल की योजना 10 साल के शासन के बाद की है और गारंटी भी नहीं है तो आप समझ सकते हैं कि क्या है। हालांकि अंतरराष्ट्रीय करार का अपना महत्व है और इसमें सरकार को बहुत कुछ करना नहीं होता है। दोनों की अपनी जरूरत का मामला होता है। इंडियन एक्सप्रेस में पहले पन्ने पर आधा विज्ञापन है इसलिए भाजपा के प्रचार और इंडिया गठबंधन के विरोध वाली सारी खबरें छोटी करके भी समायोजित की गई लगती हैं।
टाइम्स ऑफ इंडिया में इंडिया को छोड़कर तृणमूल के उम्मीदवार घोषित करने की खबर तो लीड है पर सेकेंड लीड एक ऐसी खबर भी है जो दूसरे अखबारों में इतनी प्रमुखता से पहले पन्ने पर नहीं मिली। यह खबर दिल्ली के पास मुरथल में एक कारोबारी की हत्या की है और इसके बारे में कहा गया है कि पुर्तगाल के एक गिरोह ने इस हत्या की जिम्मेदारी ली है। इससे आप समझ सकते हैं कि दिल्ली और आस-पास कानून व्यवस्था की क्या स्थिति है। आम आदमी के खिलाफ पेगासस के उपयोग के मामले तो हैं पर विदेश में बैठा कोई यहां हत्या करवा दे और सरकार कुछ नहीं कर पाई। और यह खबर भी नहीं है।
द हिन्दू के बारे में मैं पहले ही लिख चुका हूं। इसमें एक और खबर है जो दूसरे अखबारों में नहीं है और अब अखबारों में जनहित-मजदूर हित की ऐसी खबरें नहीं होती हैं। एक अध्ययन के हवाले से इसमें बताया गया है कि भिन्न ऐप्प और प्लैटफॉर्म के लिए स्वतंत्र रूप से काम करने वाले अस्थायी और गिग मजदूर सामाजिक सुरक्षा और नियमन न होने से परेशान और पीड़ित हैं। इसके अनुसार ओला-उबर जैसे ऐप्प आधारित कैब ड्राइवर रोज 14 घंटे काम करते हैं। यह अध्ययन 10 बजार से ज्यादा भारतीय कैब ड्राइवर के बीच किया गया है।
द टेलीग्राफ में तृणमूल पार्टी द्वारा उम्मीदवारों की घोषणा की खबर लीड है और चुनाव आयोग के मामले में कांग्रेस का कहा पहले पन्ने की दूसरी प्रमुख खबर है। इसके अनुसार विपक्ष ने कहा है कि वह चुनाव आयोग में क्या चल रहा है उसे लेकर अंधेरे में है और स्पष्टता की मांग की है। सिंगल कॉलम की खबरों में सबसे ऊपर एएम खानविलकर के लोकपाल के रूप में शपथग्रहण की खबर सबसे ऊपर है। यह पद 27 मई 2022 से खाली था और श्री खानविलकर को यह पद ईनाम के रूप में मिला है।