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सियासत

किसान आंदोलन को खूनी संघर्ष की ओर धकेल रही मोदी सरकार!

-चरण सिंह राजपूत-

मोदी सरकार के कृषि बिलों के खिलाफ दिल्ली को घेरने आये पंजाब और हरियाणा के किसानों के साथ हरियाणा-अंबाला के नजदीक सिंध बॉर्डर पर जिस तरह से पुलिस उनके साथ ज्यादती कर रही है, किसानों को तितर-बितर करने के लिए आंसू गैस का इस्तेमाल कर रही है, उससे किसान आंदोलन के हिंसक होने की आशंका गहरा गई है। जिस तरह से पुलिस प्रशासन ने किसानों को रोकने के लिए लगाए गये बैरिकेडिंग को पुल के नीचे फेंकने के लिए विवश किया है, इससे आंदोलन भटकाव की ओर जा रहा है। किसानों को हाथों में लाठी-डंडे और तलवारें लेकर चलने के लिए विवश करने वाली भाजपा शासित सरकारें किसानों और पुलिस को खूनी संघर्ष की ओर धकेल रही हैं।

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दरअसल केंद्र सरकार के कृषि कानून के विरोध में पंजाब-हरियाणा के किसान दिल्ली को घेरने के लिए एक बार फिर अंबाला के सिंध बॉर्डर पर आकर डट गये हैं। बॉर्डर सील होने के बावजूद जिस तरह से किसान वहां पर डट गये हैं उसे देखकर लगता है कि इस बार किसान आर-पार की लड़ाई के मूड में हैं। सरकार की मंशा को भांपते हुए इस बार पंजाब के किसान हजारों ट्रैक्टर ट्रॉलियों में राशन, पानी, डीजल और दवाएं साथ लेकर दिल्ली को घेरने के लिए आए हैं। ये किसानों के तेवर ही हैं कि उन्हें रोकने के लिए अंबाला-कुरुक्षेत्र नैशनल हाइवे पर लगाए गये बैरिकेडिंग को उठाकर उन्होंने फ्लाइओवर से नीचे फेंक दिया।

सरकार द्वारा किसानों के आंदोलन को अनदेखा करने पर किसान भारी आक्रोश में हैं। प्रदर्शनकारियों का पत्थर फेंकना शासन प्रशासन के प्रति उनके गुस्से को दर्शा रहा है। आंदोलित किसानों के रुख को देखकर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि कि यदि सरकार उनकी आवाज को अनसुना कर उनके साथ ऐसे ही ज्यादती कराती रही तो किसान आपा भी खो सकते हैं। इन परिस्थितियों में ही पुलिस और किसानों की झड़पें खूनी संघर्ष में बदल जाती हैं।

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मोदी सरकार के बनाये गये किसान कानून के खिलाफ देश में कितना बड़ा आंदोलन होना वाला है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सिंध बॉर्डर पर किसानों के भारी जमावड़े को देखते हुए मदद के लिए आस-पास के गांवों के लोग भी उनके लिए दूध और दूसरा जरूरी सामान लेकर पहुंच रहे हैं।

दरअसल देश के शीर्षस्थ पूंजीपतियों की निगाहें अब किसानों की खेती पर है। पूंजीपतियों के बल पर सत्ता का मजा लूट रहे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी मनमानी दिखाते हुए ये किसान कानून जबर्दस्ती बनवाए हैं। यही वजह किसान आंदोलन के बड़ा रूप लेने से पहले ही मोदी सरकार इस आंदोलन को कुचल देना चाहती है। किसी भी सूरत में किसानों को दिल्ली में प्रवेश नहीं होने देने का आदेश दिल्ली पुलिस को दिया गया है। सरकार को लगता है कि यदि किसान दिल्ली में घुस गये तो दिल्ली से किसान आंदोलन पूरे देश में फैल सकता है। यही वजह है कि पंजाब-हरियाणा के किसानों को दिल्ली प्रवेश की इजाजत नहीं है। सरकार ने किसानों को रोकने के लिए दिल्ली पुलिस के 1200 जवान तैनात किए गए हैं। किसानों को काबू में करने के लिए पैरामिलिट्री फोर्स भी तैनात की गई है। जो मोदी सरकार अपने को किसान हितैषी होने का दावा कर रही है उसी सरकार ने किसानों को दिल्ली में घुसने से रोकने के लिए पूरी तरह से नाकेबंदी करा दी है।

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मोदी सरकार को यह बात भलीभांति समझ लेनी चाहिए कि देश के करीब 500 अलग-अलग संगठनों ने मिलकर संयुक्त किसान मोर्चे का गठन किया है। मतलब सरकार 500 संगठनों की आवाज को भी अनसुना कर रही है। सरकार ने किसान आंदोलन को कूचलने के लिए पहले से ही तैयारी कर ली थी। मोदी सरकार ने किसानों को रोकने के लिए पहले ही खट्टर सरकार को लगा दिया था। किसानों को रोकने के लिए हरियाणा सरकार ने 26 और 27 नवंबर को सीमा सील करने का आदेश दिये हैं। कल यानी बुधवार को भी हरियाणा के अंबाला और कुरुक्षेत्र में किसानों को रोकने के लिए पुलिस ने बल प्रयोग किया और आंसू गैस के गोले छोड़े थे।

इस किसान आंदोलन का केंद्र हरियाणा हो गया है। यह सरकार की किसानों के साथ ज्याददती ही है कि एक ओर जहां उन्हें खुले में सड़क पर रहकर कड़ाके की ठंड का सामना करना पड़ रहा है वहीं दूसरी ओर सरकार उन पर पानी की बौछारें कर रही हैं। करनाल के करना झील के पास भी भारी संख्या में किसान इकट्ठे हो गये हैं।

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देखना यह भी होगा कि किसानों और पुलिस की झड़पें गत तीन दिनों से चल रही हैं । हरियाणा में अंबाला, करनाल, झज्जर, सोनीपत और भिवानी में बैरिकेडिंग लगाकर पुलिस किसी भी तरह से किसानों को रोक लेना चाहती है। हालांकि कल अंबाला में किसान बैरिकेड्स तोड़कर आगे बढ़ गये। एक ओर सरकार का किसानों की आवाज को अनसुना करना और दूसरी ओर पुलिस प्रशासन का उन पर केस दर्ज कराने की धमकी देना किसानों के आक्रोश को और बढ़ा रहा है। हरियाणा में इकट्ठा हो रहे किसानों की आवाज पर ध्यान न देते हुए यदि सरकार ने इस तरह से आंदोलन को कुचलने का रास्ता अख्तियार कर रखा तो यह आंदोलन खूनी आंदोलन में तब्दील होने से रोका जाना मुश्किल लग रहा है।

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