उत्तर प्रदेश के बरेली में बच्चों से अल्लामा इक़बाल की प्रार्थना ‘लब पे आती है दुआ’ का गायन कराने के ‘जुर्म’ में एक शिक्षामित्र वज़ीरउद्दीन और स्कूल की प्रधानाध्यापिका नाहिद सिद्दीक़ी के खिलाफ़ एफ़आईआर दर्ज हुई और कल शिक्षामित्र को मुअत्तल करने के साथ प्रधानाध्यापिका को निलंबित कर दिया गया। उनके खिलाफ़ विश्व हिंदू परिषद के स्थानीय नेता ने शिकायत की थी जिसमें एक ओर तो सरकारी स्कूल में मज़हबी प्रार्थना गवाकर बच्चों को इस्लाम की ओर आकर्षित करने का आरोप लगाया गया था, दूसरी ओर उनकी धार्मिक भावनाओं को आहत करने का भी आरोप लगाया गया था।
इक़बाल की यह प्रार्थना सांप्रदायिक तत्त्वों की दुरभिसंधि के कारण पहले भी विवाद में आ चुकी है। यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि जिस प्रार्थना में ‘ग़रीबों की हिमायत करने’, ‘दर्दमंदों और ज़ईफ़ों से मोहब्बत करने’ की बात है, जिसमें अल्लाह से ‘नेक राह पर चलाने और बुराई से बचाने’ की दुआ की गई है, उसे ‘अल्लाह’ शब्द के हवाले से धर्मांतरण के आह्वान के तौर पर पेश किया जा रहा है, और यह काम न सिर्फ़ विश्व हिंदू परिषद जैसा सांप्रदायिक संगठन कर रहा है बल्कि प्रदेश के प्रशासकों की उसके साथ पूरी सहमति भी है। कोई आश्चर्य नहीं अगर उन्होंने अल्लाह को संबोधित होने के कारण ही नहीं बल्कि उर्दू लफ़्ज़ों की बहुलता के कारण भी इस प्रार्थना को धर्म-प्रचार मान लिया हो! उनसे पूछा जाना चाहिए कि क्या वे सूर्यकांत त्रिपाठी निराला की ‘वर दे, वीणावादिनी वर दे’ को भी, देवी सरस्वती को संबोधित होने और संस्कृतनिष्ठ होने के आधार पर आपत्तिजनक मानने के लिए तैयार होंगे?
अल्लामा इक़बाल की जिस प्रार्थना को लेकर विवाद उठाया है, उसे पूरा पढ़कर लोगों को यह देखना चाहिए कि क्या यह किसी भी कोण से एतराज़ किए जाने लायक़ है?
लब पे आती है दुआ बन के तमन्ना मेरी
ज़िंदगी शम्अ की सूरत हो खुदाया मेरी
दूर दुनिया का मिरे दम से अँधेरा हो जाए
हर जगह मेरे चमकने से उजाला हो जाए
हो मिरे दम से यूँही मेरे वतन की ज़ीनत
जिस तरह फूल से होती है चमन की ज़ीनत
ज़िंदगी हो मिरी परवाने की सूरत या-रब
इल्म की शम्अ से हो मुझ को मोहब्बत या-रब
हो मीरा काम ग़रीबों की हिमायत करना
दर्द-मंदों से ज़ईफ़ों से मोहब्बत करना
मिरे अल्लाह! बुराई से बचाना मुझ को
नेक जो राह हो रह पे चलाना मुझ को
जनवादी लेखक संघ इक़बाल की इस कविता को विवादास्पद बनाने और इसके पाठ के आधार पर शिक्षकों पर कार्रवाई किए जाने की निंदा करता है तथा शिक्षामित्र वज़ीरउद्दीन को दुबारा बहाल किए जाने और प्रधानाध्यापिका नाहिद सिद्दीक़ी का निलंबन वापस लिए जाने की माँग करता है।
संयोग है, और नहीं भी है, कि जिस दिन यह कार्रवाई हुई, उसी दिन मथुरा की एक ज़िला अदालत ने 1991 के प्लेसेज़ ऑफ़ वर्शिप (स्पेशल प्रोविजन) एक्ट की अनदेखी करते हुए श्री कृष्ण जन्मभूमि-शाही ईदगाह मस्ज़िद विवाद में शाही ईदगाह परिसर के आधिकारिक निरीक्षण की इजाज़त दी। 1991 का क़ानून स्पष्ट निर्देश देता है कि अयोध्या के एक मामले को छोड़कर अन्य सभी उपासना स्थल उसी स्थिति में रहेंगे जिस स्थिति में वे 15 अगस्त 1947 को थे। ऐसे में पहले काशी और अब मथुरा के मामले में अदालतों का ऐसा रवैया दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा जो बहुसंख्यक समुदाय की राजनीति करनेवालों के दबाव में संवैधानिक प्रावधानों के उल्लंघन जैसा प्रतीत होता है।
विविधताओं से भरे इस देश की साझा सांस्कृतिक विरासत को नष्ट करने की ऐसी कोशिशों का हर स्तर पर विरोध होना चाहिए।
संजीव कुमार (महासचिव)
बजरंग बिहारी तिवारी (संयुक्त महासचिव)
नलिन रंजन सिंह (संयुक्त महासचिव)
संदीप मील (संयुक्त महासचिव)
(25/12/2022)
प्रेस रिलीज़
Mkd
December 26, 2022 at 6:40 pm
नितांत जाहिल लोग पत्रकारिता कर रहे हैं। मुग़लों क युग गया है। जागिये!, निराला जी और अल्लामा इकबाल की तुलना। सारे जहाँ से अच्छा लाइन वाला व्यक्ति, पाकिस्तान के अग्रणी प्रस्तावकों मे कैसे बदल गया, वह किस्सा भी पढ़ लिया जाना चाहिए।
A K Prasad
December 31, 2022 at 4:10 pm
जब हम यह कहतें हैं कि संगीत की कोई सरहद नहीं होती और उसका कोई मज़हब नहीं होता तो फिर कविता या शायरी ( चाहे उसे शायर इक़बाल ने ही क्यों न लिखा हो जिसके दिमाग़ की उपज से ‘ पाकिस्तान’ की पैदावार हुई । हम मानते हैं ।) को किसी देश या मज़हब में बॉंध कर देखना कितना उचित है ? रावण ने सीता का हरण किया था तो क्या हम रावण रचित शिव तॉंडव स्त्रोत का पाठ नहीं करते हैं ?
रावण की विद्वता को प्रभू श्री राम ने भी स्वीकार किया था फिर शायर इक़बाल को हम एक पहुँचे हुए शायर के तौर पर क्यों नहीं स्वीकार कर सकते हैं ?