हाल ही में लखनऊ में पैदा हुआ एक चैनल इस क्षेत्र के शुरुआती दौर के पत्रकारों के लिए एक अच्छा प्लेटफ़ार्म बनके उभरा, लेकिन चैनल के मालिक और प्रबंधन की दादागिरी यहां भी चरम पर है। अपने चैनल के माध्यम से दुनिया को नियम कानून याद दिलाने वाले गोमती नगर के लाइव टुडे चैनल ने खुद कितने नियम माने, ये यहां के कर्मियों से पूछा जाए तो बेहतर। यहां लेबर लॉ को तो ऐसे तोड़ा जाता है मानो ये कानून इनके बाप की बपौती है। यहां कर्मचारियों को कभी भी बिना किसी नोटिस के निकाल दिया जाता है। अगर कोई इसका विरोध करे तो उसको यहां की एचआर व्हाट्सएप्प मैसेज भेज कर उसकी औकात बताती है।
वैसे तो नियम ये कहता है कि किसी कर्मचारी को जिसने 3 महीने से ज्यादा वक़्त तक उसी संस्था में काम किया हो उसे बिना नोटिस के नहीं निकाला जा सकता। मगर यहां की एक एम्प्लोयी जो कि यहां 6 महीने से कार्यरत थी, उसे बिना किसी पूर्व सूचना के एक शाम निकाल दिया गया। उसे एक सप्ताह तो छोड़िये, एक मिनट पहले तक भी कोई नोटिस नहीं मिला। घर जाते वक़्त वहां की एच आर ने पूरा अनप्रोफेशनल रवैया दिखाते हुए अगले दिन से ना आने का फरमान सुना दिया। एम्प्लोयी ने जब प्रबंधन से हक़ की बात की तो कैसा जवाब उसे मिला, ये आप सब भी ज़रूर देखें।
यहां तो माहौल ऐसा है जैसे चैनल के मालिक हैं और पैसे की ताकत है तो नियम कानून अपनी जेब में रखकर चलेंगे। यहां से जा चुके कई कर्मचारी आज भी अपने पीएफ के पैसे के लिए भटक रहे हैं। पीएफ का पैसा तो काट लिया जाता है पर आज तक न किसी को पीएफ का अकाउंट नंबर मिला है न कोई पैसा। यहां फायर एनओसी चैनल के पास नहीं है। निकलने के लिए यहां एक ही गेट है, अगर कभी आग लग जाए तो सारे कर्मचारी दम घुटने के कारण मर जाएंगे। यहां किसी भी कर्मचारी का स्वास्थ्य बीमा नहीं है। कुछ कर्मियों का कहने के लिए पीएफ कटता है, और ज्यादातर का तो पीएफ ही नहीं कट रहा। कुछ का कट भी रहा तो उसके खाते का कुछ अता पता ही नहीं हैं।
बहुत से कर्मी चुप हो कर ये सब बर्दाश्त करके चले गए। गलत को सही समझ कर चले गए। पर माफ़ कीजिए गलत बर्दाश्त करने वाले, गलत करने वालों से ज्यादा गलत होते हैं। इसलिए ये लेख है कि कम से कम आप साहस तो करें अपनी बात रखने का, आगे तो सब राम भरोसे। मगर ऐसे चैनल जो नियमों को नहीं मानते, उन्हें नियम कानून याद दिलाना पड़ेगा ताकि कमजोरों का शोषण करने का रिवाज़ खत्म हो मीडिया जगत से।
एक मीडियाकर्मी द्वारा भेजे गए पत्र पर आधारित.
Nivedita Singh <[email protected]>