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साहित्य

यह महामारी एक अभूतपूर्व सांस्कृतिक संकट है जो हमारे संबंधों, सोचने के ढंग और मूल्यों को बदलकर रख देगा!

राजकमल प्रकाशन समूह फ़ेसबुक लाइव : शुक्रवार, 24 अप्रैल का दिन साहित्यकार विश्वनाथ त्रिपाठी, ईशमधु तलवार और इतिहासकार पुष्पेश पंत के साथ बहुत सारी पुरानी यादों के साथ बीता।

इस समय आदमीयत को आदमी से दूर नहीं रहना चाहिए…

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आजकल जब हम गर्मी की शांत और उजली दोपहर में घर में बंद हैं, ऐसे में पुरानी यादें फिर-फिर लौटकर हमारे पास आतीं हैं। लेकिन, वरिष्ठ आलोचक विश्वनाथ त्रिपाठी का कहना हैं कि, “हर तरह की यादें हर समय नहीं आतीं। वर्तमान की तात्कालिकता हमारी यादों को प्रेरित करती है, उसे जगाती है। मतलब, कुछ ख़ास स्थितियों में कुछ यादें आती हैं।“

शुक्रवार की शाम राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक पेज से लाइव बातचीत करते हुए विश्वनाथ त्रिपाठी ने आज के समय की उलझनों और मनुष्य की अदम्य इच्छाशक्ति पर अपने विचार बहुत ही सुविचारित ढंग से अभिव्यक्ति किए।

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उन्होंने कहा, “यह सिर्फ़ महामारी नहीं है, एक अभूतपूर्व सांस्कृतिक संकट भी है। यह हमारे संबंधों को, हमारे सोचने के ढंग को, हमारे मूल्यों को बदलकर रख देगा। यह ऐसा संकट है जब आदमी को आदमी से दूर होना जरूरी हो गया है। लेकिन आदमियत से आदमी दूर नहीं रह सकता।“

“तुम्हारी तहजीब आप ही अपने खंजर से खुदकुशी करेगी / जो शाख-ए-नाजुक पै आशियाना बनेगा”

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इक़बाल की इन पंक्तियों की विवेचना करते हुए उन्होंने कहा, “आदमी जब कोई बड़ा काम करता है तो वो काल से, ख़ुदा से टकराता है। वो वैज्ञानिक प्रगति करता है, और ख़ुदा से कहता है कि अगर दुनिया तुम्हारी है तो इसकी फिक्र हम क्यों करें। लेकिन यहीं उसकी हार होती है।“

कविता संघर्ष की साथी है। इस विचार पर विस्तार से बात करते हुए उन्होंने कहा कि मुझे जयशंकर प्रसाद की कामायनी इन दिनों बहुत याद आ रही है। उन्होंने इसी संबंध में कबीर के विचारों की भी विवेचना की।

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इस सांस्कृतिक संकट में कविता क्या काम कर सकती है?

इस सवाल पर बात करते हुए उन्होंने कहा, “ जब हम यह सवाल करते हैं तो यहाँ कविता का अर्थ सिर्फ़ शब्दों से नहीं होता। यहाँ कविता अपने विशालतम रूप में संस्कृति का प्रतीक बन जाती है, मानवीय करूणा का प्रतीक, जो भक्ति, साहित्य, संगीत, कला सभी जगह फैली हुई है। कविता संकट के समय साथ देते हुए भजन बन जाती है।“

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डूबते टाइटैनिक के डेक पर वायलिन बजाते संगीतकार की धुन, नाज़ियों की बंदूक की गोली खाती नर्स की प्रार्थना और गांधी के हे राम…इन सभी में जो स्वर है यही कविता है, भजन है, प्रार्थना है जिसने उन्हें शक्ति दी होगी, शांति दी होगी।

उन्होंने कहा, “यही वो समय है जब हम उन लाखों लोगों के लिए खडे हों जिन्हें दो जून की रोटी नसीब नहीं हो रही। यह समय अतिवाद का समय भी है। भूख हिंसा को भी जन्म देती है। ऐसे में मानवीय करूणा ही जीत का रास्ता दिखा सकती है।“

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उन्होंने कहा, “इस महामारी से औषधियाँ लड़ेंगी, डॉक्टर लडेंगे और कविता लड़ेगी। कविता के जिम्मे यह बहुत बड़ी जिम्मेदारी है। वो अपनी शक्तियों से लैस होकर इस लड़ाई में शामिल है। ये बुरे दिन हमारे लिए अच्छे दिनों के स्वप्न को वापिस सच करने की प्रेरणा हैं।“

जब आदमी अपने से कमज़ोर के पास जाकर उसे अपने साथ लाने की कोशिश करता है, तब मनुष्य भी नर से नारायण हो जाता है।

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भारत का अपना कटहल

‘स्वाद-सुख’ के कार्यक्रम में अब तक जितनी सब्ज़ियों या व्यंजन का जिक्र आया है उनमें ज्यादातर को भारत लाने का श्रेय पूर्तगालियों का था। लेकिन, भारत की अपनी संतान कटहल को देखकर पूर्तगाली भी चौंक गए थे। ये फल भी है, और सब्ज़ी भी। संस्कृत में इसे फडस कहते हैं। इसका जिक्र ह्वेनसांग ने भी अपने लेखों में किया है।

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स्वाद पारखी पुष्पेश पंत ने कहा, ”कटहल जब पक जाता है तो इसका इस्तेमाल फल के रूप में करते हैं। कच्चे कटहल की सब्ज़ी भारत में लगभग हर प्रांत में बनाई जाती है।“

कुछ लोग इसे पकाने से इसलिए कतराते हैं क्योंकि इससे निकलने वाला लिसलिसा पदार्थ हाथों में चिपक जाता है। इसे पकाने में तेल भी बहुत खर्च होता है। उत्तर भारतीय, कटहल की सूखी सब्ज़ी ज्यादा बनाते हैं। यहाँ, तेज़ मसालेदार, तला-भुना कटहल रोटी के साथ खाने की परंपरा है। महाराष्ट्र में कटहल के बीजों की भी सब्ज़ी बनाईं जाती है। उन्होंने कहा कि “उत्तर भारतीयों ने कटहल की तरी वाली सब्ज़ियों को लगभग बिसरा दिया है, वहीं दक्षिण इससे तरी वाले भिन्न व्यंजनों को बनाने के लिए मशहूर है।“

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कश्मीर में आलू मिलाकर दम कटहल बनाते हैं। कटहल दो प्याज़ा भी पारंपरिक व्यंजन के तौर पर बनाया जाता है। गोवा में ‘पिकांते जैकाफ्रूट’ व्यंजन बनाया जाता है जिसमें कच्चा नारियल और खोपरा दोनों मिलाए जाते हैं। इसमे इमली पड़ती है और इसका स्वाद खट्टा मीठा होता है।

बंगाल में छोटे कटहल से तरी वाली सब्ज़ी ‘एचोरेर कलिया’ बनाई जाटी है। इसमें बंगाली मसालों का मिश्रण होता है। बंगाल के बॉर्डर से लगे मेघालय में कटहल बहुत ज्यादा मात्रा में उगाया जाता है। जाहिर है कि वहाँ के कटहल के व्यंजनों में बंगाली प्रभाव देखने को मिल जाता है।

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लाइव बातचीत में पुष्पेश पंत ने बताया कि, “आंध्र प्रदेश में ‘चक्का कोरोमा’ बनाया जाता है, जिसे हम तो कोरमा ही मानते हैं लेकिन वे इसे कोरोमा कहते हैं। इसमें कुछ पिसी हुई दाल, नारियल का दूध और तेज मिर्च का प्रयोग होता है।“

दक्षिण में कर्नाटक के उडूपी इलाके में बिना प्याज़ और लहसुन के कटहल बनाने का रिवाज़ है। यह नारियल. गुड, इमली और बहुत कम मसालों के साथ तरी वाली सब्ज़ी होती है।

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दक्षिण भारत में कटहल के बीजों को सुखाकर तल लेते हैं और नाश्ते के रूप में इसका उपयोग किया जाता है। वहीं केरल में आकर्षक एवं पारंपरिक सब्ज़ी ‘चक्का मडल’ बनाया जाता है जिसमें कटहल की कांटेदार ऊपरी छाल का प्रयोग तरी बनाने के लिए किया जाता है।

मीठे कटहल की मिठाई तो पहले से ही बनती आ रही है, दक्षिण में कटहल का हलवा भी बनाया जाता है। पुष्पेश पंत ने कहा कि, “आजकल अगर कटहल की सब्ज़ी का आनंद लेना चाहते हैं तो दक्षिण भारतीय स्टाइल की सब्ज़ी बहुत किफायती और स्वादिष्ट हो सकती है। इसमें तेल की मात्रा बहुत कम होती है और इसे ज्यादा तलने की भी जरूरत नहीं होती।“

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इन दिनों अगर समय हो तो कटहल की इन जानी-अनजानी पाक विधियों का प्रयोग किया जा सकता है।

यादों का बक्सा : रिनाला खुर्द

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शुक्रवार की दोपहर आभासी दुनिया के रास्ते लेखक ईश मधु तलवार के साथ पुरानी बातों की यात्रा में बीती। राजकमल प्रकाशन समूह के फ़ेसबुक लाइव से जुड़कर उन्होंने अपने उपन्यास ‘रिनाला खुर्द’ के संबंध में बात करते हुए बताया, “ रिनाला खुर्द लाहौर के पास एक गाँव है। मेरी माँ का गाँव, जहाँ उनकी यादों के बक्से रखे हुए थे। यह उपन्यास उनकी ज़मीन की तलाश है। यह एक नदी की तलाश है – सरस्वती नदी, बॉर्डर पार करते ही इसका नाम हाकड़ा नदी हो जाता है। यह एक प्रेम कहानी भी है, राजस्थान के मेवात की धरती से पाकिस्तान के रिनाला खुर्द तक फ़ैली एक कहानी।“

लाइव कार्यक्रम में ईशमधु तलवार ने अपने उपन्यास से सुंदर अंश पाठ कर आभासी दुनिया में जैसे जान डाल दी। बातचीत में उन्होंने मेवात के इलाकों की कई यादें लोगों से साझा कीं। उन्होंने बताया कि भारत और पाकिस्तान के साधारण लोगों में कोई आपसी मनमुटाव नहीं दिखता। बॉर्डर के दोनों ओर लोग एक-दूसरे की इज़्ज़त करते हैं। एक-दूसरे से प्यार करते हैं।

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ईशमधु तलवार का उपन्यास रिनाला खुर्द राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित है।

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