कन्हैया शुक्ला (प्रबंध संपादक, भड़ास)-
हसदेव अभ्यारण मामले में कभी मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने भी किए थे ऐसे ट्वीट… आख़िर क्यों पलट गए भूपेश बघेल…
अब ऐसी क्या मजबूरियां आ गई कि आवाज़ निकलना तो दूर अपने राज्य के आदिवासियों की आवाज़ को सुनना भी नहीं चाहते मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ..
आइए आपको पूर्व मामला सिलसिलेवार समझाते हैं ..कि सत्ता पाने और सत्ता पा जाने के बाद राजनेता कैसे असंवेदनशील और अपनी ही किए वादों से मुकर जाते हैं ..किसी ने सच कहा है कि ऐसे ही कोई बेवफ़ा नही होता जब तक कोई मजबूरी न हो ..तो क्या छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल एक मजबूर मुख्यमंत्री के रूप में राज्य की जनता के साथ वादाखिलाफी कर रहे हैं ..
छत्तीसगढ़ में आजकल एक मुद्दा बहुत गरमाया हुआ है पूरे देश के कई राज्यों में हसदेव अभ्यारण को बचाने के लिए भूपेश बघेल सरकार की नीति और नीयत का विरोध हो रहा है ..यही नहीं इसी अभ्यारण को उजाड़ने के लिए पूरा आरोप कांग्रेस के ऊपर लग रहा है और भूपेश के साथ–साथ राजस्थान में कांग्रेस सरकार के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को भी छत्तीसगढ़ के आदिवासी और जनता कोस रही है ..
जिस हसदेव अभ्यारण की बात हो रही उसके लिए कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने चुनाव के पहले यहां के आदिवासियों से ये वादा किया था कि हसदेव अभ्यारण नहीं उजड़ने देंगे और किसी भी तरह से जल –जंगल–जमीन की लड़ाई में उनसे कंधा मिला के चलेंगे ..फिर क्या था… बहुत बड़े पैमाने पर आदिवासियों ने कांग्रेस को बहुमत में लाने के लिए जम के वोट कांग्रेस को दिया ..पर अब स्थितियां बदल चुकी है ..
माननीय मुख्यमंत्री जी आज कल हेलीकाप्टर से पूरे राज्य के दौरे में व्यस्त है और जगह–जगह जा के तत्काल अनिल कपूर स्टाइल में जनता के लिए फैसले ले रहे हैं ..कुछ अधिकारियों को तत्काल सस्पेंड कर रहे हैं पर मुख्यमंत्री जो मामला पूरे देश में गूंज रहा है वहां अपना हेलीकाप्टर नही ले जा रहे ..क्योंकी अभी चुनाव में वक्त है और तब तक जो भी रोना–गाना मचना है सब निपट जाएगा ..चुनाव तक हो सकता है इस मामले को उठाने वालों की आवाज़ या तो दबा दी जाए या फिर रो रो के लोगों के आंसू ही सूख जाए.. क्या फ़र्क पड़ेगा राजनेताओं को ..?
असल में छत्तीसगढ़ का हसदेव अरण्य उत्तरी कोरबा, दक्षिणी सरगुजा व सूरजपुर जिले का बहुत बड़ा जंगल है यहां की हसदेव नदी जांजगीर-चाम्पा, कोरबा, बिलासपुर जिले के लोगों की प्यास और उनके खेतो के लिए है…ये जंगल मध्यप्रदेश के कान्हा और झारखण्ड के पलामू के जंगलो से जुड़ा हुआ है ….
वर्ष 2010 में स्वयं केन्द्रीय वन पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने सम्पूर्ण हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन को प्रतिबंधित रखते हुए नो-गो (No – Go) क्षेत्र घोषित किया था…पर कॉर्पोरेट के दवाब में इसी मंत्रालय के वन सलाहकार समिति (FAC) ने खनन की अनुमति नहीं देने के निर्णय से विपरीत जाकर परसा ईस्ट और केते बासन कोयला खनन परियोजना को वन स्वीकृति दी थी..जिसे वर्ष 2014 में ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने निरस्त भी कर दिया…
छत्तीसगढ़ में इस जंगल को बचाने के लिए पिछले दिनों से बहुत संघर्ष जारी है .. देश के 12 राज्यों में इसके लिए प्रदर्शन हुए हैं ..सोशल मीडिया पर #savehasdev के नाम से लाखों पोस्ट लोग कर चुके हैं ..पर फिर भी कांग्रेस सरकार आदिवासियों के साथ नही खड़ी हुई ..दिल्ली में कांग्रेस मुख्यालय के बाहर ‘SAVE हसदेव’ के नारे लोगों ने लगा दिए पर राहुल गांधी को अपना दिया हुआ वादा याद नही आया ..आधी रात सैकड़ों पेड़ों को काट दिया गया पर राजधानी रायपुर में मुख्यमंत्री की नींद में कोई खलल नही पड़ा ..वो चैन की नींद में सो रहे थे …
यहां तक कि इस मामले में छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से ये तक पूछा था कि पेड़ों की कटाई को लेकर इतनी हड़बड़ी क्यों की जा रही है…अदालत ने कहा था कि अगर कोयला खनन के लिए आवंटित ज़मीन का अधिग्रहण ही रद्द हो जाए तो क्या वे पेड़ों को पुनर्जीवित कर पाएंगे..?
राजस्थान सरकार को आवंटित और अडानी को MDO के द्वारा सौंप दिए गये परसा कोयला खदान के लिए कांग्रेस की भूपेश सरकार पूरी तरह से यहां के लाखों पेड़ों को काटने के लिए अग्रसर हैं …जिस अडानी–अंबानी का विरोध देश की पूरी कांग्रेस और इसके बड़े नेता राहुल गांधी से ले के सभी कांग्रेसी करते हैं जिसके लिए मुख्यमंत्री भूपेश बघेल सरकार बनने के पहले लगातार सोशल मीडिया पर आरोप लगाते नजर आते थे यहां इस मामले में चुप्पी साध लिए हैं ..सही मायने में ये सब झूठ बोलते हैं और खुद उनके लिए ही काम करते हैं ..अगर ऐसा नही है तो ये अभ्यारण वाली बात से कांग्रेस के मुख्यमंत्री अपनी जुबान से कैसे बदल गए ..? क्यों नहीं यहां के आदिवासियों के दर्द को समझने की कोशिश करते हैं ..?
इस हसदेव अरण्य में प्रस्तावित परसा कोयला खदान परियोजना की अंतिम स्वीकृति राज्य सरकार द्वारा जारी की गई है…चुनाव से पहले इसी इलाके में आ कर कांग्रेस पार्टी के नेता राहुल गांधी ने आदिवासियों को भरोसा दिया था कि वे उनके संघर्ष में साथ हैं…पिछले एक दशक से हसदेव अरण्य के आदिवासी हसदेव अरण्य जैसे सघन वन क्षेत्र में प्रस्तावित कोयला खनन परियोजनाओं का विरोध करते आ रहे हैं…जो बीजेपी सरकार के होते संभव नही हुआ वो कांग्रेस सरकार के आने पर हुआ ..
इस जंगल को बचाने के लिए आदिवासी 300 किलोमीटर पैदल चल के राजधानी में आए थे , जंगल में अपने कल्चर से पूजापाठ करके इसको बचाने के लिए अपील कर रहे हैं ..पेड़ों से चिपक के काटने से रोकने के लिए एकजुट हो रहे हैं पर क्या मज़ाल की सरकार के मुखिया और उनके मुखिया इस बात पर ध्यान दें ..
हर राजनीतिक पार्टी जनता को धोखा ही क्यों देती है जब को यही जनता ही उस पार्टी को चुन कर सत्ता देती है ..और पार्टियां फिर पूंजीवादियों के साथ मिल के आम जनता को रौंदती हैं ..