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मजीठिया : सुप्रीम कोर्ट के फरमान ने श्रम विभाग को सरपट दौड़ाया

  चौथे स्तंभ की बुनियाद के जीवों-प्राणियों में एक नई ऊर्जा, एक नए आत्मविश्वास, एक नए साहस-हिम्मत का संचार हो आया है। वे इठलाने-इतराने लगे हैं। उनकी उम्मीदें-आशाएं-आकांक्षाएं एक तरह से कुलांचे भरने लगी हैं। वे अरमानों के एक ऐसे परवान से खुद को लैस-सुसज्जित महसूस करने लगे हैं कि मानों मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों के मुताबिक उनका हक-अधिकार पाने-लेने से फिलहाल अब कोई रोक नहीं सकता। हालांकि यह हरकत-गतिविधि इन नींव-आधारों के कुछ ही तबकों में खुलकर दिखाई पड़ रही है लेकिन बाकी तबका भी अपना कुनमुनाना-कसमसाना छिपा-दबा नहीं पा रहा है। वह भी अपनी दबी-कुचली या दबा-कुचल दी गई चाहत-इच्छा को अब गाहे-बगाहे नहीं, बल्कि अक्सर व्यक्त करने से खुद को रोक नहीं पा रहा है। इस तबके को, जो अपेक्षाकृत सबसे बड़ा-व्यापक  है, कहीं न कहीं लगने लगा है कि- अभी नहीं तो कभी नहीं। 

<p>  चौथे स्तंभ की बुनियाद के जीवों-प्राणियों में एक नई ऊर्जा, एक नए आत्मविश्वास, एक नए साहस-हिम्मत का संचार हो आया है। वे इठलाने-इतराने लगे हैं। उनकी उम्मीदें-आशाएं-आकांक्षाएं एक तरह से कुलांचे भरने लगी हैं। वे अरमानों के एक ऐसे परवान से खुद को लैस-सुसज्जित महसूस करने लगे हैं कि मानों मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों के मुताबिक उनका हक-अधिकार पाने-लेने से फिलहाल अब कोई रोक नहीं सकता। हालांकि यह हरकत-गतिविधि इन नींव-आधारों के कुछ ही तबकों में खुलकर दिखाई पड़ रही है लेकिन बाकी तबका भी अपना कुनमुनाना-कसमसाना छिपा-दबा नहीं पा रहा है। वह भी अपनी दबी-कुचली या दबा-कुचल दी गई चाहत-इच्छा को अब गाहे-बगाहे नहीं, बल्कि अक्सर व्यक्त करने से खुद को रोक नहीं पा रहा है। इस तबके को, जो अपेक्षाकृत सबसे बड़ा-व्यापक  है, कहीं न कहीं लगने लगा है कि- अभी नहीं तो कभी नहीं। </p>

  चौथे स्तंभ की बुनियाद के जीवों-प्राणियों में एक नई ऊर्जा, एक नए आत्मविश्वास, एक नए साहस-हिम्मत का संचार हो आया है। वे इठलाने-इतराने लगे हैं। उनकी उम्मीदें-आशाएं-आकांक्षाएं एक तरह से कुलांचे भरने लगी हैं। वे अरमानों के एक ऐसे परवान से खुद को लैस-सुसज्जित महसूस करने लगे हैं कि मानों मजीठिया वेज बोर्ड की संस्तुतियों के मुताबिक उनका हक-अधिकार पाने-लेने से फिलहाल अब कोई रोक नहीं सकता। हालांकि यह हरकत-गतिविधि इन नींव-आधारों के कुछ ही तबकों में खुलकर दिखाई पड़ रही है लेकिन बाकी तबका भी अपना कुनमुनाना-कसमसाना छिपा-दबा नहीं पा रहा है। वह भी अपनी दबी-कुचली या दबा-कुचल दी गई चाहत-इच्छा को अब गाहे-बगाहे नहीं, बल्कि अक्सर व्यक्त करने से खुद को रोक नहीं पा रहा है। इस तबके को, जो अपेक्षाकृत सबसे बड़ा-व्यापक  है, कहीं न कहीं लगने लगा है कि- अभी नहीं तो कभी नहीं। 

यह स्थिति पैदा की है सबसे मजबूत, एकमात्र आशादायी स्तंभ न्यायपालिका ने। सबसे बड़ी अदालत सुप्रीम कोर्ट ने 28-04-2015 के अपने आदेश से जिस तरह पूरे सरकारी तंत्र को सक्रिय-गतिशील कर दिया है, सभी लेबर कमिश्नरों, डिप्टी लेबर कमिश्नरों एवं असिस्टेंट लेबर कमिश्नरों को अपने पूरे लाव-लश्कर के साथ प्रदत्त काम-जिम्मेदारी-ड्यूटी को पूरी मुस्तैदी से, बिना कोई गड़बड़ी किए अंजाम देने को विवश किया है, उससे प्रिंट मीडिया के खासकर उन कर्मचारियों में एक नई आशा का संचार हुआ है जिन्होंने अपना सब कुछ दांव पर लगाकर इंसाफ के मंदिर की शरण ली है। 

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जी हां, इस व्यवस्था में उम्मीद के इकलौते स्तंभ के सख्त-कड़े रुख से कार्यपालिका एवं व्यवस्थापिका वह समवेत तंत्र भी बे-नींद, बेचैन हो गया है जो लोक की हकीकत-वास्तविकता को बिसार चुका है, भूल गया है, या कि भुला दिया है। आलम यह है कि कर्मचारियों-कामगारों-श्रमिकों-मजदूरों की हित रक्षा के लिए बना वह लेबर (श्रम) विभाग भी अचानक सक्रिय हो उठा है जो श्रमिकों के हकों-अधिकारों को मारने-हड़पने में मालिकों का ही साथ देता रहा है, देता  है। श्रम विभाग के इसी रुख-रवैए, कृत्य-कारनामे ने एक आम धारणा बना रखी है कि कुछ भी हो जाए, किसी भी कोर्ट का आदेश आ जाए, यह विभाग कुछ भी नहीं करने वाला, कर्मचारी के पक्ष में कोई भी कदम नहीं उठाने वाला, कोई भी कार्यवाही या कार्रवाई नहीं करने वाला। 

इस वक्त इसी चीज को मालिकान एवं उनके गुर्गे-चमचे-कारिंदे हवा देने में लगे हैं। वे बड़े दावे से कह रहे हैं कि उनका कुछ नहीं बिगड़ेगा, उन्हें मीडिया कर्मचारियों को कुछ भी नहीं देना है, कर्मचारी लाख कोशिश-जतन कर लें उन्हें बढ़ी सेलरी-सुविधा के नाम पर फूटी कौड़ी भी नहीं मिलने वाली है।  मालिकान-मैनेजमेंट बड़े घमंड से, घोर अहंकार में डूब कर कह रहे हैं, प्रचारित करा रहे हैं कि — वेे देंगे तभी न कर्मचारी कुछ पाएंगे! लेकिन ये धनपशु यह भूल रहे हैं कि कामगार जब अपनी पर आ जाता है तो किसी भी रण में बेखौफ कूद पड़ता है। इस युद्ध का अंजाम वह बखूबी जानता है-जीत या हार। जीतेंगे तो सब हमारा है, और हारने के लिए कुछ है नहीं।  

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बहरहाल, इस लड़ाई का एक बेहद अहम पड़ाव इस समय हमारे सामने है जिसमें हम श्रम विभाग के आला अधिकारियों की हड़बड़ाहट-बौखलाहट देख-सुन रहे हैं। ताजा नमूना-मिसाल हरियाणा के लेबर विभाग का है। उनके असिस्टेट लेबर कमिश्नर ने चंद रोज पहले ही इंडियन एक्सप्रेस चंडीगढ़ को नोटिस सर्व किया है। नोटिस देने वे स्वयं एक्सप्रेस के पंचकूला स्थित कार्यालय पहुंचे। मैनेजमेंट को इस नोटिस का जवाब तीन-चार दिन में देना है। यही स्थित चंडीगढ़, पंजाब, हिमाचल आदि की भी है। इन राज्यों के लेबर कमिश्नरों ने भी नोडल अफसरों/इंस्पेक्टरों की विशेष टीमें बना दी हैं और ये टीमें अपने काम में जुट गई हैं। 

उपलब्ध सूचना के अनुसार इसी तरह की सक्रियता दिल्ली के समीपवर्ती एवं आगे के राज्यों-प्रदेशों में भी है। वहां की सरकारें श्रम विभाग की मार्फत सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करने में जुट गई हैं। दिल्ली की केजरीवाल सरकार तो राजधानी के प्रिंट मीडिया संस्थानों में मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों को लागू कराने के लिए पूरी सख्ती एवं शिद्दत से जुटी हुई है। मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने यह जानकारी स्वयं 3 जून को जस्टिस जी.आर. मजीठिया से मुलाकात में दी। उन्होंने जस्टिस मजीठिया को आश्वासन दिया कि उनकी सरकार जल्द से जल्द वेज बोर्ड को लागू कराएगी। 

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बता दें कि जस्टिस जी.आर. मजीठिया वही हैं जो इस वेज बोर्ड के अध्यक्ष रहे हैं। जिस तरह से केजरीवाल ने मजीठिया साहब से मिल कर खुशी एवं सम्मान प्राप्ति का इजहार किया है, ठीक उसी तरह से हमारे सरीखे समस्त मीडिया कर्मियों में प्रसन्नता का संचार हो गया है कि मजीठिया साहब अपने वेज बोर्ड की संस्तुतियों को क्रियान्वित होते देखने के लिए कितने उत्सुक-उतावले हैं। शायद वे उस दिन-वक्त-घड़ी का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं जब वेज सिफारिशें कार्य रूप में दिखने में लगेंगी। काश, वह दिन जल्दी आए!

यहां, इस क्रम में एक बार फिर याद दिलाना मुनासिब होगा कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सक्रिय हो उठे श्रम विभाग के साथ हमें और भी ज्यादा सक्रिय होने की जरूरत है। हमारी सक्रियता-सतर्कता-सजगता से ही लेबर डिपार्टमेंट सही-सटीक रिपोर्ट सर्वोच्च न्यायालय को प्रेषित करेगा, भेजेगा। हमें चाहिए कि हम वेज-सेलरी से संबंधित सारी असलियत मुस्तैदी से विभाग के अफसरों के सामने रखें। और उन्हें बताएं कि किस प्रकार मैनेजमेंट मजीठिया वेज न देने के लिए तिकड़में-साजिशें कर रहा है, पैंतरेबाजी कर रहा है, फर्जी-जाली-नकली-गलत-झूठे आंकड़े पेश कर रहा है। 

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लेखक-पत्रकार भूपेंद्र प्रतिबद्ध, चंडीगढ़ से संपर्क : 9417556066

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0 Comments

  1. रानू

    June 6, 2015 at 4:21 am

    सभी राज्‍यों में भले ही श्रम विभाग लोगों को दौड़ा रहे हों, लेकिन महाराष्‍ट्र इकलौता राज्‍य हैं जहां किसी तरह की कोई सुगबुगाहट नहीं सुनायी पड़ रही हैै।

  2. save uni

    June 6, 2015 at 2:35 pm

    uni management slapped raid on dated 06/06/2015 by deputy labor commissioner office for non application majhethiya wage board application .

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