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मजीठिया वेतनमान : इन जानकारियों से लैस होकर अब बेखौफ लड़ाई लड़ें पत्रकार

प्रिंट मीडिया के सभी पत्रकार और गैर पत्रकार कर्मचारियों की मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों के अनुसार वेतन एवं सुविधाएं पाने की ललक-लालसा-ख्वाहिश-इच्छा-तमन्ना इस वक्त निश्चित रूप से सातवें आसमान पर पहुंची हुई है। सभी चाहते हैं कि मजीठिया उन्हें मिले। पर इसके लिए उनकी अभिव्यक्ति के तरीके अलग-अलग हैं- कोई दबे-छिपे ढंग से तो कोई थोड़ा खुलकर तो कोई सीना ठोंक कर मजीठिया की मांग कर रहा है।

प्रिंट मीडिया के सभी पत्रकार और गैर पत्रकार कर्मचारियों की मजीठिया वेज बोर्ड की सिफारिशों के अनुसार वेतन एवं सुविधाएं पाने की ललक-लालसा-ख्वाहिश-इच्छा-तमन्ना इस वक्त निश्चित रूप से सातवें आसमान पर पहुंची हुई है। सभी चाहते हैं कि मजीठिया उन्हें मिले। पर इसके लिए उनकी अभिव्यक्ति के तरीके अलग-अलग हैं- कोई दबे-छिपे ढंग से तो कोई थोड़ा खुलकर तो कोई सीना ठोंक कर मजीठिया की मांग कर रहा है।

यह स्वाभाविक भी है क्योंकि मजीठिया ने उनमें एक ऐसी आस जगाई है जिसकी अतीत में वे कल्पना भी नहीं कर सकते थे। इस सच्चाई को उन अखबार कर्मियों से संदर्भित करना ज्यादा मुनासिब होगा जो काम तो देश क्या, दुनिया के सबसे बड़े कथित मीडिया प्रतिष्ठानों में करते हैं लेकिन सेलरी इसके उलट पाते हैं। यानी इतनी कम सेलरी उन्हें मिलती है कि ठीक से गुजारा करना क्या होता है, वे जानते ही नहीं। अगर मजीठिया उन्हें मिल जाए तो उनकी जीवन दशा में सुधार आ जाए। उनकी काबिलियत, उनके हुनर, उनकी कला, उनके ज्ञान-समझ में निखार आ जाए। उनके काम करने की ऊर्जा में इजाफा हो जाए। उनकी चिंता का बोझ थोड़ा कम हो जाए। 

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अच्छे दिन के लुभावने-मोहक नारे की छांव में पलती-पुसती, फलती-फूलती भीषण महंगाई के इस आलम में निश्चित रूप से मजीठिया संस्तुत वेज उनके जीवन में थोड़ी सी खुशियां ला देगा। लेकिन इसके लिए उन्हें सजग-सचेत और मजीठिया से जुड़ी हर जानकारी से संपन्न होना अनिवार्य है। इसके बगैर अपना यह हक पूरी तरह से हासिल कर पाना आसान नहीं है। क्योंकि अखबार मालिकों और उनके गुर्गों ने मजीठिया के खिलाफ जितने कुचक्र रच रखे हैं उनसे पार पाना, उन्हें भेद पाना अज्ञानता के भोथरे हथियार से संभव नहीं है। 

ज्ञान-जानकारी हासिल करने के लिए सभी कर्मचारियों को उन साथी कर्मचारियों के संपर्क-सान्निध्य में निरंतर सक्रिय रूप से रहना बेहद जरूरी है जो मजीठिया की लड़ाई खुलकर लड़ रहे हैं, जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अवमानना के केस कर रखे हैं और जो इस मुश्किल दौर में भी डटकर खड़े हैं। उपरोक्त सारी बातों का खुला आशय यह है कि मजीठिया पाना है तो आपसी मेल-जोल, एकता को बनाना एवं बढ़ाना है। ऐसा करने से ही जानकारी-ज्ञान-समझ समेत हर तरह की ताकत बढ़ेगी। इसी से लडऩे और अपना हक पाने-लेने-अर्जित करने का हौसला-हिम्मत-साहस बढ़ेगी। 

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स्मरण करा दें कि शुरुआती सुनवाई में ही न्यायाधीश न्यायमूर्ति रंजन गोगोई ने केस करने वालों और दूसरे अखबारी कर्मचारियों की आपसी एकता, यूनिटी, यूनियन पर जोर दिया था। उन्होंने अपरोक्ष रूप से मजीठिया के लिए मिलकर लडऩे, यूनियन बनाकर लडऩे का सुझाव दिया था। अभी 28 अप्रैल 2015 की सुनवाई में न्यायमूर्ति रंजन गोगोई की बेेंच ने जो आदेश दिया है, उसका साफ मतलब कि नोडल अफसरों, इंस्पेक्टरों को अपनी समस्याएं सामूहिक रूप से खुलकर बताएं-लिखाएं, लिखकर दें। यानी इस आदेश में भी यूनिटी-यूनियन, आपसी एकता का संदेश दिया गया है। क्यों कि सारे अखबारी मालिकान अपनी व्यावसायिक लड़ाई से इतर मजीठिया के मुद्दे पर एक हैं। सर्वोच्च न्यायालय में कर्मचारियों के विरुद्ध उनकी एकता-एकजुटता खुलकर सामने आ गई है। मजीठिया न देने के लिए वे मिलकर कर्मचारियों पर हर तरह के प्रहार कर रहे हैं। 

इसलिए साथियों गुजारिश है कि आप एक हो जाएं, एकता-यूनिटी बनाएं। देखें न! किस प्रकार दैनिक जागरण के साथियों ने तमाम अवरोधों के बावजूद अपनी यूनियन बना-खड़ी कर ली है। 

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जानें क्या है सेक्शन 17(बी):

जानकारी करने और उसे बढ़ाने के संदर्भ में सबसे अहम एवं प्राथमिक बात वर्किंग जर्नलिस्ट एंड अदर न्यूजपेपर इंप्लाईज (कंडीशन ऑफ सर्विस एंड मिस्लेनियस प्रॉविजन्स एक्ट 1955) का सेक्शन 17(बी) है। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में इसी का जिक्र किया है जिसके तहत नोडल अफसरों/इंस्पेक्टरों की नियुक्ति राज्य सरकारें करेंगी जो अखबार प्रतिष्ठानों में जाएंगे और मैनेजमेंट/मालिकान से सभी जरूरी कागजात लेकर उनकी जांच-पड़ताल करेंगे। साथ ही कर्मचारियों से भी उनकी स्थिति, उनकी सेलरी एवं प्राप्त होने वाली अन्य सुविधाओं-असुविधाओं की जानकारी लेंगे। सेक्शन 17(बी) ने इन नोडल अफसरों/इंस्पेक्टरों को न्यूजपेपर संस्थानों में बेधडक़ आने-जाने और कर्मचारियों से संबंधित किसी भी बुक, रजिस्टर, डाक्यूमेंट की जांच-पड़ताल, छानबीन करने, जानकारी लेने का पूरा अधिकार है। ऐसा करने से उन्हें कोई नहीं रोक सकता, उनके काम में किसी तरह की कोई भी खलल-बाधा-व्यवधान नहीं डाल सकता। कर्मचारियों से मिलने और उनकी समस्याएं जानने की ड्यूटी है।  

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सेक्शन 17(बी) के बारे में पूरी जानकारी की मूल प्रति इस प्रकार है:-

WORKING JOURNALISTS AND OTHER NEWSPAPER EMPLOYEES (CONDITION OF SERVICE) AND MISCELLANEOUS PROVISIONS ACT, 1955

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17-B. Inspectors.- (1) The State government may, by notification in the official Gazette , appoint such persons as it thinks fit to be inspectors for the purposes of this Act and may define the local limits within which they shall exercise their functions. (2) Any Inspector appointed under sub-section(1) may for the purpose of ascertaining whether any of the provisions of this Act or of the Working Journalists (fixation of Rates of Wages)Act, 1958 (29 of 1958), have been complied with in respect of a newspaper establishment,- (a) require an employer to furnish such information as he may consider necessary; (b) at any reasonable time enter any newspaper establishment or any premises connected therewith and require any one found in charge thereof to produce before him for examination any accounts, books, registers and other documents relating to the employment of persons or the payment of wages in the establishment; (c) examine with respect to, or any matter relevant to, any of the purposes aforesaid, the employer, his agent or servant or any other person found in charge of the newspaper establishment or any premises connected therewith or any person whom the Inspector has reasonable cause to believe to be or to have been any employee in the establishment; (d) make copies of or take extracts from any book, registers or other documents maintained in relation to the newspaper establishment; (e) exercise such other powers as may be prescribed. (3) Every Inspector shall be deemed to be a public servant within the meaning of the Indian Penal Code, 1860 (45 of 1860) (4) Any person required to produce any documents or thing or to give information by an Inspector under sub-section (2) shall be legally bound to do so]

ऐसे में कर्मचारियों को निडर होकर, खुलकर अपनी समस्याएं नोडल अफसरों/इंस्पेक्टरों  को बतानी चाहिए। हो सके तो लिखित में देनी चाहिए। क्योंकि इन्हीं जानकारियों से तैयार रिपोर्ट लेबर कमिश्नर के माध्यम से सीधे सुप्रीम कोर्ट को भेजी जाएगी। रिपोर्टों के अध्ययन के बाद सुप्रीम कोर्ट सुनवाई की अगली तारीख तय करेगी। 

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चंडीगढ़ के पत्रकार एवं लेखक भूपेंद्र प्रतिबद्ध से संपर्क : 9417556066

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