राष्ट्रीय राजधानी की सियासत इन दिनों खासी चर्चा में है। यहां अभी राष्ट्रपति शासन लगा हुआ है। विधानसभा चुनाव के आसार कभी भी बन सकते हैं। इसको लेकर भाजपा, ‘आप’ व कांग्रेस तीनों उलझन में फंसे हैं। दिल्ली में सरकार बनाने को लेकर भाजपा के भीतर असमंजस का दौर जारी है। इस पार्टी के पास सबसे अधिक 29 विधायक हैं। भाजपा नेतृत्व यह फैसला कर पाने की स्थिति में नहीं है कि दिल्ली विधानसभा में जोड़-तोड़ कर सरकार बनाई जाए या नहीं? अक्टूबर-नवंबर में महाराष्ट्र और हरियाणा में चुनाव होने हैं। ऐसे में, भाजपा के आला नेताओं का मानना है कि अगर दिल्ली में ‘जुगाड़ तंत्र’ से सरकार बना ली गई, तो इसका खराब असर अन्य राज्यों के विधानसभा चुनावों पर पड़ सकता है। दिल्ली के मौजूदा सियासी हाल को लेकर आम आदमी पार्टी के 24 विधायकों ने पिछले दिनों उपराज्यपाल (एलजी) नजीब जंग से मुलाकात की थी। पार्टी ने एलजी से दिल्ली विधानसभा भंग करने की अपील की। विधायकों ने एलजी को अवगत कराया कि सरकार बनाने के लिए बहुत बड़े स्तर पर खरीद-फरोख्त का घिनौना खेल चल रहा है। ‘आप’ के वरिष्ठ नेता और दिल्ली के पूर्व मंत्री मनीष सिसौदिया का कहना है कि भाजपा के दावे के मुताबिक जिस नरेंद्र मोदी की हवा पूरे देश में चली, उसका असर अब दिल्ली से गायब क्यों हो गया है? राजनीति में आने से पहले मनीष पत्रकार और समाजिक कार्यकर्ता की भूमिका में थे। दिल्ली सहित देश के हालिया सियासी माहौल पर हमारे संवाददाता सूरज सिंह ने मनीष सिसौदिया से खुलकर बातचीत की।
दिल्ली में सरकार गठन को लेकर भाजपा का राजनीतिक खेल वाकई में क्या समझ रहे हैं?
भारतीय जनता पार्टी इस दौरान बुरी तरह से घबराई हुई है। इस पार्टी का आत्मबल टूट गया है। यही वजह है कि इनका नेतृत्व दिल्ली में चुनाव नहीं करा पा रहा है। वरना, क्या वजह है एक इतनी बड़ी राष्ट्रीय पार्टी, जिसको लोकसभा चुनाव में प्रचंड बहुमत मिला हो, वो विधानसभा चुनाव से बच रही है। दरअसल, सरकार बनाने के लिए जितने विधायकों की जरूरत है, उतने उनके पास है नहीं। भाजपा के साथ अगर कोई आएगा, तो बिना पैसे लिए तो नहीं आएगा। इन्होंने आम आदमी पार्टी को भी कुरेदने की कोशिश की थी। लेकिन, नाकाम हो गए। ऐसा भी सुना जा रहा है कि कांग्रेस के साथ इनकी कुछ डील हुई थी। इसकी मीडिया में खबरें भी आने लगीं। नेताओं के नाम तक अखबारों में छपने लगे। बहरहाल, जो भी हो दिल्ली में भाजपा की ईमानदारी से तो सरकार नहीं बनने जा रही।
वैकल्पिक सरकार को लेकर उंगलियां तो आपकी पार्टी पर भी उठी हैं। कांग्रेस के कई विधायकों ने दावा किया कि आप के लोगों ने उनसे समर्थन मांगने के लिए चुपके-चुपके संपर्क साधा था। इस प्रकरण में सच्चाई क्या समझी जाए?
देखिए, अब हमारे किन लोगों ने उनसे संपर्क किया, ये तो हमें भी नहीं पता है। ऐसे तो मुझे भी बहुत लोग कहते रहते हैं कि जी मैं कांग्रेस से बात कर लूं, भाजपा से बात कर लूं, पर हम लोग इस तरह की राजनीति पर कतई विश्वास नहीं करते हैं। सबसे बड़ी उंगली उठी ओखला से विधायक मोहम्मद आसिफ के एक झूठ से। वो बहुत बड़ा झूठ बोल रहे हैं। जब यह खुलासा हो गया कि ये लोग 20-20 करोड़ रुपए में बिक रहे हैं, तो उस वक्त इनको और कुछ नहीं सूझा। तब जाकर इन लोगों ने झूठ बोलना शुरू किया। आसिफ कहते हैं कि मैंने उनको एसएमएस भेजा, मुझे नोएडा बुलाया वगैर-वगैर पता नहीं और क्या-क्या बोला उन्होंने। इसके बाद कांग्रेसी विधायक मतीन अहमद से मुलाकात की चर्चा हुई। हां, मैं मतीन अहमद से जरूर मिला। लेकिन, सरकार बनाने को लेकर उनसे कोई चर्चा नहीं हुई थी। जब बनारस में अरविंद केजरीवाल चुनाव लड़ रहे थे, तो मैं भी वहीं था। उस दौरान मतीन का फोन मेरे पास आया था। उन्होंने मुझसे कहा कि कुछ जरूरी बातें करनी हैं। उस समय मैंने उन्हें कहा कि यह तो 15-20 दिनों बाद संभव हो पाएगा। उसके बाद हम दोनों मिले और बात की। इस मुलाकात में बहुत ही सामान्य बातचीत हुईं। उन्होंने कहा कि आप हमारे साथ ऐसा व्यवहार क्यों करते थे, सरकार क्यों छोड़ दी? बनारस में चुनाव लड़ना आपकी बड़ी गलती है। मतलब, वो मुझे अपने अनुभव के आधार पर कुछ राय दे रहे थे। लेकिन, इस दौरान सरकार बनाने को लेकर कोई बात नहीं हुई।
आप लोग लगातार यह आरोप लगाते आए हैं कि भाजपा के लोग कांग्रेस के कुछ विधायकों को 20-20 करोड़ रुपए में खरीद रहे हैं। इस आशय के आप लोगों ने पोस्टर भी लगवा दिए। अहम सवाल यह है कि क्या इतने गंभीर आरोप का कोई साक्ष्य आप लोगों के पास हैं?
तो, भाजपा अपने रेट खुद बता दे। भई, अगर हम गलत रेट बता रहे हैं, तो वो बताएं कि कितने में खरीद रहे हैं? ईमानदारी से तो कांग्रेस के लोग सरकार नहीं बनवा रहे हैं। इस पार्टी के लोग जो कल तक भाजपा को गाली दे-देकर चुनाव लड़े थे, वो अगर अपनी पार्टी से टूट कर सरकार बनवाएंगे, तो क्या भजन करने के लिए सरकार बनवांगे? रही बात दिल्ली भर में पोस्टर लगवाने की, तो हमने सिर्फ लोगों के सामने हकीकत रखी है। हमारे पास इतना पैसा तो नहीं है कि टीवी, रेडियो व अखबार में विज्ञापन दे सकें।
इस संदर्भ में भाजपा के कुछ लोगों ने आपकी पार्टी के नेताओं पर मानहानि की कानूनी कार्रवाई भी कर दी है। इसका मुकाबला कैसे करेंगे?
ठीक है। हम जवाब देंगे। हमारे पास नोटिस आएंगा, तो हम जरूर अदालत को बताएंगे। भई, हमारे विधायकों से भी तो संपर्क किया गया था। हमारे विधायकों को भी 20-20 करोड़ रुपए की पेशकश की गई थी। इतना ही नहीं, हमारे पास तो और भी डिटेल हैं। इन लोगों ने तो यह भी कहा था कि 20 फीसदी नकद ले लो और बाकी 80 फीसदी की प्रॉपर्टी ले लो। ये तक हमारे लोगों से बोला गया है। हम कोर्ट में अपनी बात को रखेंगे। जो कुछ भी साक्ष्य हमारे पास है, उसको समय आने पर सामने लेकर जरूर आएंगे।
आप लोगों ने उपराज्यपाल नजीब जंग से मुलाकात की है। उनसे विधानसभा भंग कराने का अनुरोध किया है। आपको क्या लगता है कि उपराज्यपाल आम आदमी पार्टी की मांग पर कोई कारगर कदम उठाएंगे?
उपराज्यपाल के पास विकल्प क्या हैं? उनका काम है इस वक्त दिल्ली में सरकार बनवाना। सरकार भाजपा के मात्र 29 विधायकों के दम पर तो नहीं बन सकती। 27 विधायकों की हमारी पार्टी सरकार बनाने के लिए मना कर रही है। कांग्रेस मना कर रही है, तो बचता कौन है?
मोदी सरकार के कामकाज और उसकी राजनीतिक शैली का आकलन किस तरह से कर रहे हैं?
मोदी सरकार तो कुछ नहीं कर रही है। यह सरकार तो अपने आप में एक छलावा है। बहुत बड़े-बड़े ढोल बजाकर ये लोग सत्ता में आए हैं। इनकी पोल एक महीने में ही खुलनी शुरू हो गई। चुनाव से पहले कहते थे कि महंगाई कम करेंगे, बहुत हो गई महंगाई की मार, अब की बार मोदी सरकार। आते ही रेल किराया बढ़ा दिया। दिल्ली में बिजली महंगी कर दी गई। बिना किसी घोषणा के चुपचाप पानी के दाम भी बढ़ा दिए गए। एक न्यूज चैनल पर खुलासा हुआ कि सरकारी डॉक्टर कैसे टेस्ट के नाम पर मरीजों से पैसा खाते हैं? लैब वालों से मोटा कमीशन फिक्स होता है। सरकारी अस्पतालों में गरीब मरीजों को 50 रुपए के टेस्ट के लिए 250 रुपए तक भुगतान करने होते हैं।
नरेंद्र मोदी ने चुनावी दौर में ‘अच्छे दिन’ लाने का जुमला जमकर उछाला था। क्या, अच्छे दिनों के आगाज का वाकई में कुछ आभास हो रहा है?
अच्छे दिन तो नरेंद्र मोदी के आ गए हैं। इनके अलावा किसी के अच्छे दिन आए हों, तो बताएं? कुछ दलालों के भी अच्छे दिन आ गए हैं। महंगाई बढ़ा-बढ़ा कर जो लोग कमाई करते हैं, उनके अच्छे दिन आ गए हैं। आम आदमी के किसी भी रूप में अच्छे दिन नहीं आए हैं। बुलेट ट्रेन और लेट ट्रेन, इसमें लेट ट्रेन की ओर इनका ध्यान नहीं है, बुलेट ट्रेन पर ध्यान है। बुलेट ट्रेन बेचने वाले जापान और बुलेट बेचने वाले इजराइल दोनों देशों की ओर इनकी नजर है। लेकिन, गरीब आदमी को सस्ता अनाज, सस्ती सब्जी, सस्ती दवाइयां, सस्ता परिवहन व सस्ती शिक्षा कैसे मिले? इस पर इनका ध्यान नहीं है।
एक दौर में आम आदमी पार्टी और उसकी राजनीति का उभार एक नए राजनीतिक विकल्प के रूप में दिखाई पड़ने लगा था। लेकिन, अब आम जनता में आपकी पार्टी की रीति-नीति को लेकर काफी मायूसी देखने को मिल रही है। इस हकीकत को क्या स्वीकार करना चाहेंगे?
मैं इससे सहमत नहीं हूं। क्योंकि, हम राजनीति को बदलने आए थे और राजनीति बदल रही है। अब तो दिल्ली में लोग हमारी सरकार को याद करने लगे हैं कि यार! सरकार तो वही थी। 49 दिनों में आम आदमी पार्टी के लोगों ने कुछ करके तो दिखा दिया था। मुझे पूरा विश्वास है कि लोग कतई मायूस नहीं हैं। बल्कि, वो तो और उत्साह से इंतजार कर रहे हैं कि दिल्ली में चुनाव हों, तो आम आदमी पार्टी को बहुमत देकर दिल्ली की सरकार में वापस लाएं। लोगों के बीच कांग्रेस और भाजपा के शासन की तुलना आम आदमी पार्टी के 49 दिनों की सरकार से हो रही है। दिल्ली वाले हमें एक मौका जरूर देंगे।
आप की पार्टी दिल्ली सहित देश के विभिन्न हिस्सों में किन खास मुद्दों पर संघर्ष की रणनीति बना रही है?
देखिए, हमारी पार्टी बनी है, भ्रष्टाचार के खिलाफ। हमारा मुख्य मुद्दा यही है कि देश से भ्रष्टाचार का सफाया हो। मुद्दे तो पहले से ही बहुत हैं। इसके साथ ही और भी नए मुद्दों की जरूरत पड़ी, तो उन्हें भी शामिल कर लिया जाएगा। इसके अलावा भ्रष्टाचार से जुड़े जो भी मुद्दे हैं, उनके लिए हम लड़ते ही रहेंगे। देश में पुलिस व्यवस्था और न्यायिक क्षेत्र में सुधार की बहुत आवश्यकता है। शिक्षा और स्वास्थ्य में बड़े क्रांतिकारी कदम उठाए जाने की जरूरत है। हमें लगता है कि देश के बजट का सबसे बड़ा हिस्सा शिक्षा पर खर्च होना चाहिए। मैं मानता हूं कि रक्षा मामलों से अधिक ध्यान बेहतर शिक्षा की ओर देना होगा।
क्या, आप लोग मोदी सरकार के खिलाफ किसी राजनीतिक मोर्चे में शामिल होना चाहेंगे या ‘एकला चलो’ की रणनीति पर ही डटे रहेंगे?
आप ही बताइए, किसके साथ हों? लगभग सभी सियासी दल तो अपने-अपने राज्यों में वैसे ही काम कर रहे हैं, जैसे भाजपा और कांग्रेस करती आई हैं। वैसे भी अभी इस दिशा में हमारा कोई इरादा नहीं है। हम लोग अकेले ही मोदी सरकार के खिलाफ राजनीतिक मोर्चा संभालने की हिम्मत रखते हैं। देश की जनता हमारे साथ है। रही बात लोकसभा में हमारे सिर्फ चार सांसदों की, तो मैं कहे देता हूं कि भ्रष्टाचार की ‘मय्यत’ को उठाने के लिए चार ही काफी हैं।
दिल्ली में यदि अभी चुनाव होते हैं, तो इस बार पार्टी के नए चुनावी मुद्दे क्या होंगे?
पार्टी का मुख्य चुनावी मुद्दा वही भ्रष्टाचार को खत्म करना होगा। दिल्ली के ज्यादातर लोग बिजली, पानी, साफ-सफाई, स्कूल व अस्पतालों आदि में होने वाले भ्रष्टाचार से दुखी हैं। यह मुद्दे पहले भी रहे हैं। लेकिन, अभी तक इनका निदान नहीं हो सका है। जब तक लोगों को इन सामान्य दिक्कतों से छुटकारा नहीं मिल जाता, तब तक आम आदमी पार्टी जनता के हितों के लिए लड़ती रहेगी। ये मुद्दे लोगों की जिंदगी से जुड़े हुए हैं। हमें इन्हीं पर काम करना है।
वरिष्ठ पत्रकार और डीएलए (दिल्ली) के संपादक वीरेंद्र सेंगर के बलॉग से साभार।