अभिषेक श्रीवास्तव-
जिन्हें मंत्रालय वितरण समझ नहीं आया, उनके लिए ये है ये पीस…
सूचना एक खेल है। खेल-खेल में सूचना फेक हो सकती है। खेल इस देश में सबसे लोकप्रिय सूचना है। खेल-खेल में जीत या हार हो सकती है। उसके हिसाब से हेडलाइन बदल जाती है। सूचना और खेल दोनों के सबसे बड़े उपभोक्ता नौजवान हैं। नौजवानों को खेल में बझाये रख के अपने हिसाब से खेल-खेल में सूचना दी जाएगी तो अपने हिसाब का राष्ट्र बनेगा। इसीलिए अनुराग ठाकुर को युवा, खेल, सूचना, प्रसारण, सब कुछ मिला है। इसे कहते हैं गवर्नेंस का कन्वर्जेन्स।
सूचना के खेल में टीवी और डिजिटल केंद्रीय हैं आजकल। टीवी समाचार का मामला अब टीआरपी घोटाले तक जा चुका है और डिजिटल माध्यम सरकार के लिए बवासीर बन चुका है। ऐसा आदमी चाहिए था जो पहले से इलेक्ट्रॉनिक और डिजिटल मामले का खिलाड़ी रहा हो। इंटेल में रह चुके राजीव चंद्रशेखर रिपब्लिक टीवी लांच कर के अर्नब को सौंप चुके हैं, बहुत काबिल हैं। इसलिए आईटी और इलेक्ट्रॉनिक्स मंत्रालय उन्हें मिला है। दूसरे नम्बर पर इसलिए रखा गया है ताकि ज़्यादा हल्ला न हो, बलि का बकरा अश्विनी बनें, प्रमोशन की गुंजाइश रहे।
धर्मेंद्र प्रधान विद्यार्थी परिषद से आते हैं। उन्हें पता है शिक्षा कैसी हो कि अपने हिसाब का राष्ट्र बनाने के लिए वैसी उद्यमिता और कौशल भी युवाओं में विकसित किये जा सकें। कोरोनाकाल के बाद स्वास्थ्य आज की तारीख में वैश्विक राजनीति का सबसे बड़ा मोर्चा है, लिहाजा स्वास्थ्य मंत्रालय पोलिटिकल साइंस वाले मनसुख भाई को देना भी बुरा नहीं है। महाराजा सिंधिया को महाराजा के पास भेजा गया है उड्डयन मंत्रालय में, एकदम फिट फैसला है। क्लास इंटरेस्ट के हिसाब से। वन पर्यावरण आदि मध्य प्रदेश वालों को देना सही है, मध्य भारत में अभी कई जंगल बचे हुए हैं। भूपेंद्र यादव सब निपटा लेंगे। ईरानी मैडम को बच्चों से बहुत प्रेम है, जेएनयू वाले मामले में हमने देखा था। इसलिए महिला और बाल विकास उनके पास।
बाकी रेल वेल, जहाजरानी, स्टील विस्टील, लोहा वोहा, कपड़ा सपड़ा, पेट्रोल वेट्रोल, मकान वकान सब बिकाऊ आइटम है। सिक्का उछाल के निपटा दिया गया होगा इन सब को। कोई काम पड़ा भी तो गृह मंत्रालय है ही, जिसके भीतर सारे मंत्रालयों को चुपके से सहकारिता के रास्ते घुसा के शाहकारिता में बदल दिया गया है। सहकार का पाठ वैसे भी घर से ही शुरू हो तो बेहतर। घर सहकारिता की बुनियादी इकाई है। इसलिए शाह जी इसके लिए परफेक्ट हैं।
जिसे मंत्रालय बंटवारा और कैबिनेट विस्तार अब भी नहीं समझ आ रहा, वे संक्षेप में समझें कि संविधान द्वारा तय सरकार का ढांचा अब बुनियादी रूप से बदलने जा रहा है। कुछ दिन में मंत्री, सांसद और ज़्यादा होंगे, लेकिन विभाग और मंत्रालय कम। एकीकरण शुरू हो चुका है सहकार के नाम पर। जैसे ‘1984’ में केवल तीन मंत्रालयों में सबको खपा दिया गया था, कुछ-कुछ वैसे ही। उसके लिए बहुत बड़ी बिल्डिंग की ज़रूरत होगी, सेंट्रल विस्टा इसीलिए बन रहा है। यह कैबिनेट विस्तार और पद वितरण संघ के प्रोजेक्ट के तीसरे चरण की असमय हुई मुनादी है। इसे दरअसल 2022 के बाद होना था, पर कोरोना जो न करवा दे। ये जो हुआ है, महामारी से भी बड़ी मार है। भारत घोड़े पर सवार है। टक बक टक बक…
Prabhat
July 9, 2021 at 2:37 am
Bada bakwas tha…aapki to sahi me kuch nahi pata. Or lekh likh diye