Girish Malviya-
उत्तर प्रदेश चुनाव में बीजेपी के बहुमत में आने का रास्ता बीएसपी ने बनाया…… बसपा ने यूपी की कुल 122 सीटों पर ऐसे उम्मीदवार खड़े किए, जो सपा के उम्मीदवार की ही जाति के थे। इनमें 91 मुस्लिम बहुल, 15 यादव बहुत सीटें थीं। ये ऐसी सीटें थीं, जिसमें सपा की जीत की प्रबल संभावना थी। इनमें से अधिकतर सीटों पर भाजपा ही जीती।
अगर आप पिछले छह महीने की राजनीतिक सरगर्मियो को ध्यान से देखे तो बसपा जानबूझकर स्लीपिंग मोड में थी, जिस पार्टी को पिछले चुनाव में 22 प्रतिशत वोट मिला हो ऐसी उदासीनता दर्शाए !…. आमतौर पर यह संभव नहीं होता, इसका साफ मतलब यही था कि मायावती को अपना वोट शेयर बीजेपी की तरफ शिफ्ट करने मे कोई परेशानी महसूस नहीं हो रही थी……
संभव है इस मदद के बदले मायावती को अगला राष्ट्रपति बना दिया जाए.
Unmesh Gujarathi-
उत्तर प्रदेश चुनाव : बीजेपी की जीत में मायावती की गुप्त मदद
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के उम्मीदवारों ने 403 सीटों में से 273 सीटों पर जीत हासिल की है। हालांकि 2017 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले इस बार बीजेपी को 52 सीटों का नुकसान हुआ है। बीजेपी के लिए ये जीत इतनी आसान नहीं थी। इसलिए बीजेपी ने भी दलित और जातिगत आधारित राजनीति का कार्ड खुल कर खेला। भाजपा ने भी अपनी एक समय की दुश्मन बहुजन समाजवादी पार्टी के साथ अंदरखाने में गठबंधन बनाकर, समाजवादी पार्टी के मुस्लिम वोटों में सेंध लगा कर किसी तरह सत्ता हथिया ली है।
कभी उत्तर प्रदेश की ताकतवर नेता रहीं मायावती ने अपने कार्यकाल में काली कमाई से बेहिसाब संपत्ति बना ली है। इसलिए बीजेपी ने उन्हें ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स जैसी केंद्रीय जांच एजेंसी का डर दिखलाकर अपनी ओर कर लिया।
▪︎ यही वजह है कि इस बार के विधानसभा चुनाव में मायावती के नेतृत्व में बहुजन विकास पार्टी ने बीजेपी के साथ अंदर ही अंदर गुप्त गठबंधन किया था। और यहीं से समाजवादी पार्टी के घोड़े की लगाम कसने की रणनीति तैयार की गई थी।
▪︎ उत्तर प्रदेश की राजनीति में जाति सबसे बड़ा मुद्दा होता है। उत्तर प्रदेश में 20% यानी कि 4 करोड़ मुस्लिम मतदाता हैं। इनमें 143 सीटों पर मुसलमान वोटों का बहुमत है। 107 सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक साबित हुए। और इन सभी सीटों पर समाजवादी पार्टी का दबदबा था। सपा के इस किले में सेंध लगाने के लिए बीजेपी ने मायावती की मदद ली थी।
▪︎ बीजेपी ने अपने टिकट पर राज्य में एक भी मुस्लिम उम्मीदवार को मैदान में नहीं उतारा। बसपा ने 88 और समाजवादी पार्टी ने 61 मुस्लिम उम्मीदवार उतारे थे। जोकि स्वाभाविक रूप से मुस्लिम वोटों में विभाजन का कारण बना। समाजवादी पार्टी के मुस्लिम वोट बंट गए, इस कारण भाजपा की जीत का आंकड़ा बढ़ गया।
▪︎ बसपा ने 28 विशेष सीटों पर मजबूत मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारने की भी कोशिश की, जिन्हें समाजवादी पार्टी का गढ़ माना जाता है और वहां मुस्लिम मतदाताओं का वर्चस्व है। इतना ही नहीं, उन्हें भाजपा द्वारा आर्थिक मदद भी दी गई। यही कारण रहा कि सपा के उम्मीदवारों को वहां हार का मुंह देखना पड़ा।
▪︎ बसपा-भाजपा के इस गठजोड़ के चलते जहां भाजपा के दमदार उम्मीदवार खड़े थे वहां मायावती ने कमजोर उम्मीदवार उतारे और भाजपा की जीत की राह आसान बनाई। खास बात यह कि इस चुनाव में एमआईएम ही ऐसी अकेली पार्टी थी जो बिना किसी गठबंधन के अकेले चुनाव मैदान में खड़ी थी। वैसे भी, देश भर में उनका बीजेपी के साथ गुप्त गठबंधन है। बेशक, उत्तर प्रदेश में उनकी ताकत न के बराबर है मगर उन्होंने इस बार 103 सीटों पर चुनाव लड़ा था। उन्हें ज्यादा वोट नहीं मिले लेकिन उन्होंने समाजवादी पार्टी के लिए शत्रुतापूर्ण माहौल बनाने और सपा उम्मीदवारों के वोट काटने का काम किया।
Dilip Khan-
कालेधन पर तक़रीबन हर राजनीतिक पार्टी चलती है, लेकिन बसपा इसका सिरमौर है. 2007 में जब बहनजी की सरकार बनी थी, तो अगले साल बसपा पूरे देश में सबसे ज़्यादा चंदा पाने वाली पार्टी बन गई. नंबर वन. आधिकारिक तौर पर कांग्रेस और बीजेपी से भी ज़्यादा चंदा बसपा को गया.
फिर साल दर साल गुज़रते गए और बसपा ने राजनीतिक चंदे का हिसाब देना बंद कर दिया. क़ानून के मुताबिक़ अगर कोई भी व्यक्ति निजी तौर पर कैश में भी 20 हज़ार रुपए से ज़्यादा चंदा देता है, तो राजनीतिक पार्टियों को उसका ब्योरा चुनाव आयोग को सौंपना पड़ता है.
आप जाकर चेक कर लीजिए. बीते कई साल से बसपा ने कोई हिसाब-किताब ही नहीं दिया है. राष्ट्रीय पार्टियों में वह इकलौती है, जो यह दावा करती है कि उसे सारे डोनेशन 20 हज़ार रुपए से कम के मिलते हैं. यानी 1 रुपए से लेकर 19,999 तक.
मायावती यह भी दावा करती रहती हैं कि उनके समर्थक ग़रीब हैं और उन्हीं के चंदे से पार्टी चलती है. आपको यक़ीन है इस बात पर कि बसपा ग़रीबों के चंदे से चलती है? कई बार देश के सबसे बड़े राज्य की सत्ता में रहने के बाद यह दावा पहली नज़र में ही झूठ लगता है. लेकिन दावा है.
टिकट का सेल सबसे ज़्यादा किस पार्टी में लगती है, कौन नहीं जानता? अगली बार से सेल का रेट भी टूट जाएगा. मायावती ने ख़ुद अपनी पार्टी के टिकट का रेट कम कर लिया. इस कालेधन से कौन ऐश कर रहा है?
नोटबंदी ने पिछले चुनाव में बसपा का सबसे ज़्यादा नुक़सान किया था. इस चुनाव में बसपा की बुनियाद ही हिल गई है.
बाक़ी, हाथी अब सचमुच का गणेश बन चुका है. ये अलग बात है कि गणेश पूजक जाति के सिरमौर के 1 फ़ीसदी वोटरों ने भी इस बार बसपा की तरफ़ पलटकर देखा तक नहीं.
झपट्टामार समर्थकों को अब भी लगता है कि मायावती आंदोलन में जुटी हैं!! जाकर देखिए कि बसपा ने कितने संसाधनविहीन उम्मीदवारों को इस सदी में टिकट दिया है?
सिंहासन चौहान
March 12, 2022 at 2:52 pm
इनको राष्ट्रपति का ही प्रलोभन दिया गया है