विदर्भ हो या दौसा, तेलंगाना हो या बुंदेलखंड, अगर भारतीय मीडिया की रिपोर्ट्स पर यक़ीन किया जाए तो फांसी लगाकर आत्महत्या करने वाले किसान गजेंद्र सिंह को ‘आपदा पीड़ित’ किसान कहना मुश्किल है. राजस्थान स्थित उनके गाँव का दौरा करने वाले पत्रकारों के अनुसार उनके परिवार के पास 10 एकड़ ज़मीन है. उनका परिवार गेहूँ, आँवला और टीक की खेती करता है. भारत में 65 प्रतिशत किसानों के पास एक एकड़ या उससे कम ज़मीन है. वहीं, राजस्थान में 70 प्रतिशत खेती योग्य ज़मीन ऐसे किसानों के पास है जो मझोले या बड़े किसान हैं यानी जिनके पास 15 एकड़ या उससे ज़्यादा खेती की ज़मीन है.
गजेंद्र सिंह का परिवार छह कमरों वाले एक मंजिल के मकान में रहता है. एक रिपोर्ट के अनुसार, “टीक और आँवले के पेड़ों के घिरे मैदान के बीच स्थित उनके पक्के और बड़े घर से वो समृद्ध परिवार के प्रतीत होते हैं.”
गजेंद्र ने मरने से पहले एक कथित नोट छोड़ा था जिसमें कहा गया है कि ख़राब मौसम के कारण फ़सलें ख़राब होने के बाद उन्हें ‘घर से निकाल दिया गया’ था. हालाँकि उनके परिवार वाले इस नोट से सहमत नहीं हैं.
स्थानीय किसानों ने पत्रकारों के बताया कि उनके इलाक़े में फ़सलों को दूसरे इलाक़ों की तुलना में कम नुक़सान हुआ है.
गजेंद्र सिंह के तीन भाइयों में सबसे बड़े भाई पुलिस में नौकरी करते हैं. उनके दूसरे भाई जयपुर स्थित एक निजी कंपनी में काम करते हैं. ऐसा लगता है कि गजेंद्र सिंह खेती को लेकर बहुत इच्छुक नहीं थे.
दिल्ली स्थित सेंटर फ़ॉर स्टडी ऑफ़ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के साल 2014 के एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में खेती से जुड़े 76 प्रतिशत नौजवान कोई दूसरा काम करना चाहते हैं और 60 प्रतिशत से ज़्यादा शहर में नौकरी.
इन नौजवानों के अनुसार खेती में तनाव और जोखिम ज़्यादा है और फ़ायदा कम.
बेरोज़गार युवक गजेंद्र सिंह अपने पिता के खेतों में काम करते थे. वो प्रसिद्ध राजस्थानी पगड़ी बांधने का काम भी करते थे.
उन्होंने दो बार चुनाव लड़ने की कोशिश की थी लेकिन उन्हें पार्टी टिकट नहीं मिला था. उनके फ़ेसबुक प्रोफ़ाइल में 66 दोस्त हैं और एक तस्वीर में वो टोयोटा सेडान के साथ दिखाई दे रहे हैं.
उनके गाँव का दौरा करने वाले एक पत्रकार ने लिखा है, “उनका दिल खेती में नहीं लगता था.”
गजेंद्र सिंह आम आदमी पार्टी की दिल्ली में आयोजित किसान रैली में संभवतः पार्टी नेता अरविंद केजरीवाल से मिलने आए थे. उनके पड़ोसियों ने पत्रकारों से कहा, “संभव है कि वो किसानों की समस्या की तरफ़ ध्यान दिलाना चाह रहे हों और इसीलिए आत्महत्या की कोशिश की हो.”
गजेंद्र सिंह रैली के दौरान एक पेड़ पर चढ़ गए और अपने गले में एक गमछा बांध लिया. उसके बाद उन्होंने कथित तौर पर आत्महत्या कर ली.
एक रिपोर्ट में आशंका जताई गई है कि कहीं ऐसा तो नहीं कि वो पेड़ से फिसल गए हों और दुर्घटनावश ये हादसा हुआ हो. बहरहाल, पुलिस मामले की जाँच कर रही है.
गजेंद्र का मक़सद जो भी रहा हो उनकी मौत ने भारतीय किसानों की समस्या को चर्चा के केंद्र में ला दिया है.
अजय जाखड़ नामक किसान ने बताया, “पिछले दस सालों में मैंने किसानों की ऐसी त्रासद स्थिति नहीं देखी. यह समस्या बहुत गंभीर है.”
कर्ज़ में डूबे सैकड़ों किसानों की आत्महत्या की ख़बरें मीडिया में आती रही हैं. गाँवों में मज़दूरी की दर पिछले 10 साल में सबसे निचले स्तर पर है.
ट्रैक्टरों की बिक्री से खेती की स्थिति का अच्छा जायज़ा मिलता है. भारत में ट्रैक्टरों की बिक्री में पिछले 10 साल में एक तिहाई की कमी आई है. पिछले तीन साल में खेती के लिए क़र्ज़ लेने की दर में तेज़ बढ़ोतरी हुई है.
विशेषज्ञों के अनुसार भारतीय किसानों की वर्तमान दुर्दशा के लिए फ़सलों की कम क़ीमत और ख़राब मौसम की दोहरी मार ज़िम्मेदार है.
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कमोडिटी की कीमतें पिछले 10 साल के सबसे निचले स्तर पर है. कपास, आलू और रबर पैदा करने वाले भारतीय किसान इसके सबसे बड़े शिकार बने हैं.
भारत सरकार गेहूँ को विशेष क़ीमत पर ख़रीदती है, लेकिन बेमौसम की बरसात ने फ़सल को बर्बाद कर दिया. ऐसे ख़तरों के निपटने के अपर्याप्त उपायों से किसानों की समस्या और बढ़ जाती है.
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार भारत में किसानों के लिए मौसम के पूर्वानुमान, ख़ास तौर पर मध्यम समय के अनुमानों को काफ़ी बेहतर बनाने की ज़रूरत है.
यह भी महत्वपूर्ण है कि सत्ताधारी भाजपा नेतृत्व वाली सरकार के विवादित भूमि अधिग्रहण अध्यादेश पर हुए विवाद से किसानों की मौजूदा त्रासदी का ज़्यादा लेना-देना नहीं है. विपक्षी दल इस अध्यादेश का विरोझ कर रहे हैं.
एक किसान ने कहा, “हम भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के बारे में सोच भी नहीं रहे हैं. हमारे सामने एक दूसरी समस्या खड़ी है.”
बहुत से लोगों का मानना है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को किसानों में भरोसा पैदा करना चाहिए ताकि ये समस्या और न बढ़े. जाखड़ कहते हैं, “नरेंद्र मोदी की सरकार नज़रिए की लड़ाई में मात खा रही है. भाजपा को किसान विरोधी पार्टी के रूप में देखा जा रहा है.”
नरेंद्र मोदी अपने अगले मासिक रेडियो संबोधन में एक बार फिर किसानों से बात करें तो इसमें किसी को आश्चर्य नहीं होगा.
बीबीसी हिंदी से साभार सौतिक बिस्वास की रिपोर्ट